Saturday, December 6, 2025
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भगवान द्वारा गुरु मिलते हैं या गुरु द्वारा भगवान?  

भगवान द्वारा गुरु मिलते हैं या गुरु द्वारा भगवान?  

अध्यात्म में हमें ईश्वर की पूजा करनी चाहिए या गुरु की? इसका उत्तर भी हमें आध्यात्मिक गुरु द्वारा ही  प्राप्त हो सकता है। भगवान से हम सांसारिक सुख, संतान आदि मांगते रहते हैं और भगवान देते भी हैं। गुरु हमारी आध्यात्मिक और सांसारिक दोनों जिज्ञासाओं के समाधान करते हैं।
भगवान सांसारिक सुख की प्राप्ति के लिए मंत्र-जप, यज्ञ, तीर्थ, हवन, पूजा आदि पुरुषार्थ करवाते हैं।
गुरु पुरुषार्थ यानी पुरुष का सच्चा अर्थ जानने का ज्ञान देते हैं।

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गुरु और भगवान की भूमिका

पूजा-स्थल पर भगवान के दर्शन क्षण भर को होते हैं, परंतु गुरु न केवल जीवन भर साथ देता है,
अपितु शरीर छूटने पर भी वह साथ नहीं छोड़ता है।
गुरु हमसे हमारी पहचान कराता है।
भगवान हमारी इच्छाओं की पूार्ति करते हैं।
गुरु इच्छाओं से मुत्ति दिलाकर हमें आत्म स्वरूप की ओर ले जाते हैं।

कर्म बंधन से मुक्ति का माध्यम

भगवान कहते हैं कि कर्म करो और फल की इच्छा न करो। गुरु कर्म-बंधन से ही मुक्त करा देते हैं।
गुरु सभी कर्मों को क्रिया में परिवर्तित करवाकर कर्ता भाव समाप्त करके कर्मों से मुक्ति प्रदान कराते हैं।
पाप-पुण्य कर्म फल भोगने के लिए वे पुनर्जन्म के चक्रव्यूह से मुक्त करा देते हैं।
हमें सांसारिक इच्छाएं पूरी करनी हैं तो
पूजा, अर्चना, भक्ति, यज्ञ, तप आदि के द्वारा भगवान के मार्ग पर चलना होगा।
यदि जन्म और मरण के चक्रव्यूह से मुक्त होना है तो हमें समर्थ गुरु के पास जाना पड़ेगा।

ब्रह्म दर्शन का माध्यम

गुरु हमें चेतन स्वरूप के दर्शन कराकर सुख-दुःख से ऊपर उठा देता है और हर पल सबमें ब्रह्म के दर्शन कराता है।
एक सत्य यह भी है कि निःस्वार्थ पूजा से भगवान जब प्रसन्न होते हैं तो हमारे जीवन में गुरु का आगमन होता है।
इसलिए हमें हर पल ईश्वर का आभार प्रकट करना चाहिए, लेकिन पूजा-अर्चना तक ही नहीं रुकना चाहिए।

भक्त और गुरु का मिलन

ईश्वर स्वयं कहते हैं कि गुरु मेरा सबसे प्रिय और उत्तम माध्यम है।
जिसके द्वारा मैं अपने शुद्ध चेतन स्वरूप को प्रकट और अनुभव कराने के लिए भक्तों को गुरु से मिलाता हूं।
संसार और माया में रहते हुए निर्लिप्त रहने का ज्ञान गुरु के माध्यम से मिलता है।
गुरु आत्मज्ञान, ध्यान, प्रेम व निदिध्यासन द्वारा ईश्वर को हमारे भीतर प्रकट करता है।

कल्याण का द्वार हैं गुरु

जितना हम भगवान की पूजा और भक्ति करते हैं, उसका एक अंश भी यदि हम गुरु को समार्पित हो जाएं,
तो संसार में रहते हुए मोक्ष को परप्त हो सकते हैं।
भगवान, प्रकृति, सृष्टि, आत्मा, परमात्मा आदि के सच्चे अर्थ गुरु के सान्निध्य में प्रकट होते हैं।
भगवान शिव कहते हैं कि मैं जब भी किसी का अज्ञान दूर करके ज्ञान का प्रकाश करना चाहता हूं, तो गुरु के माध्यम से करता हूं।

मुक्ति का आधार हैं गुरु

गुरु शरीर धारण करके परब्रह्म के सभी कार्यों और रहस्यों को प्रकट करता है।
वह सबकी मुक्ति का आधार बनता है।
उनकी शरणागति आत्मज्ञान का अनुभव कराते हुए उसमें स्थित कर देती है।
वह गुरु जो बंधनों से मुक्त करके शुद्ध चेतना का ज्ञान दे,
उन्हें समर्पित होकर मोक्ष को प्राप्त होना ही हमारे जीवन का सर्वोच्च उद्देश्य होना चाहिए।
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