जगन्नाथ से आशय है पूरे जगत के स्वामी। हर साल आषाढ़ माह के शुक्ल पक्ष की द्वितिया तिथि को भगवान जगन्नाथ की रथयात्रा निकाली जाती है। अपने बड़े भाई बलराम और बहन सुभद्रा के साथ मंदिर से बाहर आकर जगत का कल्याण करते हैं।
भगवान श्री जगन्नाथ की रथयात्रा है सदियों पुरानी परंपरा/ Rath Yatra of Lord Shri Jagannath is a centuries old tradition
- पूरे भारत वर्ष में यह यात्रा धूमधाम से निकाली जाती है।
- उड़िसा स्थित पुरी धाम में जगन्नाथ मंदिर से निकाली जाने वाली यह यात्रा पूरे विश्व में प्रसिद्ध है।
- आषाढ़ माह के शुक्ल पक्ष की द्वितिया तिथि को निकाली जाने वाली रथयात्रा की परंपरा सदियों पुरानी है।
- भगवान जगन्नाथ के साथ उनकी बहन सुभद्रा और भाई बलराम भी इस यात्रा में शामिल होते हैं।
- इस रथयात्रा की सदियों पुरानी परंपरा है।
Read this also – कांवड़ यात्रा 2024 शुभारंभ
जगन्नाथ पुरी की रथ यात्रा/ Rath Yatra of Jagannath Puri
- पौराणिक कथाओं में भी श्री पुरुषोत्तम क्षेत्र (जगन्नाथ पुरी) में होने वाली इस रथयात्रा का उल्लेख है।
- उसके अनुसार इसमें शामिल व्यक्ति के जाने, अंजाने किए गए सभी पाप खत्म हो जाते हैं और मृत्यु के बाद उसे मोक्ष मिलता है।
- इस साल यह विश्व प्रसिद्ध रथयात्रा 7 जुलाई 2024 ये शुरु हो कर 16 जुलाई 2024 को खत्म होगी।
- वैदिक पंचांग के मुताबिक 7 जुलाई को रथयात्रा सुबह 8 बजकर 05 मिनट पर शुरु होगी और 9 बजकर 27 मिनट तक निकाली जायेगी।
- फिर विश्राम लिया जायेगा इसके बाद यात्रा दोपहर 12 बजकर 15 मिनट से निकलेगी और 1 बजकर 37 मिनट पर विश्राम लेगी।
- इसके बाद शाम 4 बजकर 39 मिनट से यात्रा फिर शुरु होगी और 6 बजकर 01 मिनट तक चलेगी।
प्राचीन स्वरूप बरकरार/ retains its original form
- पुरी जगन्नाथ रथयात्रा आज जिस रूप में निकलती है, वैसी वह 12वीं शताब्दी से निकल रही है।
- कहते हैं पहली बार यह रथयात्रा स्वयं भगवान श्रीकृष्ण ने अपनी बहन सुभद्रा और बड़े भाई बलराम को रथ में बिठाकर घुमाने के लिए निकाली थी।
चार धामों में एक है जगन्नाथ पुरी धाम/Jagannath Puri Dham is one of the four Dhams
- भगवान जगन्नाथ का मंदिर वैष्णो सम्प्रदाय का मंदिर है।
- इसे हिंदुओं के चार धामों में से एक माना जाता है।
- माना जाता है कि भगवान जगन्नाथ में भगवान विष्णु के सभी अवतारों के गुण विद्यमान है।
- इनकी पूजा इनके बड़े भाई बलराम और बहन सुभद्रा की त्रई के हिस्से के रूप में की जाती है।
मूर्तियाँ बदली जाती हैं/ idols are changed
- हर 12 साल बाद जगन्नाथ मंदिर में भगवान जगन्नाथ, दाऊ बलभद्र और बहन सुभद्रा की मूर्तियों को बदला जाता है।
- पुरानी मूर्तियों से जो नई मूर्ति बदली जाती है, उसमें एक चीज वैसी की वैसी रहती हैं, जिसे ब्रह्म पदार्थ कहते हैं।
- भगवान जगन्नाथ की आंखें बड़ी बड़ी हैं, जो उनकी सर्वज्ञता और सर्वव्यापकता का प्रतीक हैं।
- दस दिनों की इस यात्रा में शामिल होने के लिए हर साल देश विदेश से लाखों लोग पुरी आते हैं।
- यह यात्रा जगन्नाथ मंदिर से शुरु होकर गुंडिचा मंदिर तक जाती है, जो उनकी मौसी का मंदिर है।
- इसे गुंडिचा बाड़ी भी कहते हैं।
- यहां भगवान जगन्नाथ, दाऊ बलभद्र और देवी सुभद्रा सात दिनों के लिए विश्राम करते है।
Read this also – डिजिटल होते रिलेशन/Relationships going digital
आड़प दर्शन/ Adap Darshan
- गुंडिचा मंदिर में भगवान जगन्नाथ के दर्शन को `आड़प दर्शन’ कहते हैं।
- इस तरह यह यात्रा मंदिर के मुख्यद्वार से शुरु होकर करीब 3 किलोमीटर तक की दूरी तय करती है।
- यात्रा दस दिनों तक चलती है।
- इस दौरान अलग-अलग रथों में सवार भगवान जगन्नाथ, बलभद्र और सुभद्रा शहर की मुख्य सड़कों से गुजरते हैं।
- लाखों भक्त इन रथों को खींचते हैं तथा अपार जनसमूह में लोग भगवान के दर्शन करने की कोशिश करते हैं।
- भगवान जगन्नाथ, दाऊ बलराम और देवी सुभद्रा तीनों के लिए अलग-अलग रथों का निर्माण होता है।
- सबसे आगे बलराम जी का रथ होता है, बीच में देवी सुभद्रा का रथ होता है
- और सबसे पीछे भगवान जगन्नाथ यानी भगवान श्रीकृष्ण का होता है।
- इनके रथों को इनके अलग-अलग रंगों और ऊंचाई से पहचाना जाता है।
- बलराम जी के रथ को तालध्वज कहते हैं, इसका रंग लाल और हरा होता है।
- देवी सुभद्रा के रथ को दर्पदलन या पद्म रथ कहते हैं, यह काले या नीले और लाल रंग का होता है>
- जबकि भगवान जगन्नाथ के रथ को नंदीघोष या गरुणध्वज कहते हैं।
- इसका रंग लाल और पीला होता है।
- भगवान जगन्नाथ का नंदीघोष रथ 45.6 फीट ऊंचा होता है, जबकि बलराम जी का तालध्वज रथ 45 फीट ऊंचा होता है।
- और देवी सुभद्रा का दर्पदलन रथ 44.6 फीट ऊंचा होता है।
- ये सभी रथ नीम की पवित्र और परिपक्व लकड़ियों से बनाया जाता है, इसे दारू कहते हैं।
- इसके लिए नीम के स्वस्थ और शुभ पेड़ों की पहचान कई माह पहले कर ली जाती है।
- यह काम मंदिर द्वारा गठित एक खास समिति करती है।
- इन रथों के निर्माण में किसी भी प्रकार की कील या कांटे अथवा किसी धातु का इस्तेमाल नहीं होता।
- रथों के निर्माण में सिर्फ काष्ठ का इस्तेमाल होता है।
- जिस लकड़ी से ये रथ बनते हैं, उसका चयन बसंत पंचमी के दिन शुरु होता है।
- और रथ का निर्माण अक्षय तृतीया से पररंभ होता है।
- जब तीनों रथ तैयार हो जाते हैं तो `छर पहनरा’ नामक अनुष्ठान किया जाता है।
- इसके लिए पुरी के गजपति राजा पालकी में आते हैं और इन तीनों रथों की विधिवत पूजा करते हैं।
- राजा सोने की झाड़ू से रथ मंडप और रास्ते को साफ करते हैं।
- अंत में आषाढ़ माह के शुक्ल पक्ष की द्वितीया को ढोल, नगाड़ों और तुरहई और शंख ध्वनि के साथ यह यात्रा शुरु होती है।
- जिसे इस रथ को खींचने का अवसर मिलता है, वह अपने को महाभाग्यवान समझता है।
- क्योंकि माना जाता है, जो रथ खींचता है, उसे मोक्ष प्राप्त होता है।
Read this also – सर्दी से बचाएं छोटे बच्चों को
यह लेख सामान्य जानकारियों पर आधारित है। यदि आपको पसंद आए तो अधिक से अधिक शेयर करें। अपने विचार और सुझाव कमेंट बॉक्स में जरूर लिखें।