
शहादत से प्रेरित साहित्य का स्वरूप/Introduction: Literature Born from Martyrdom
“रक्त-ध्वज” एक ऐसा क्रांतिकारी हिंदी नाटक है जिसे 1931 में शहीद भगत सिंह की फांसी के बाद लिखा गया। यह नाटक युवाओं के अंतर्मन में देशभक्ति की चिंगारी सुलगाने के लिए रचा गया था। परंतु अंग्रेज़ी हुकूमत ने इसे 1932 में ज़ब्त कर लिया और अपने लंदन रिकॉर्ड में दर्ज कर दिया।
नाटक की कहानी: शांति बनाम क्रांति की दुविधा/ Dilemma Between Gandhian Peace and Revolutionary Fire
नाटक के मुख्य पात्र – रवि, केदार, शेर, मदन और बाबाजी – अंग्रेज़ों की दासता से भारत माता को मुक्त कराने के लिए तत्पर क्रांतिकारी युवक हैं। इन युवकों के साथ कुछ किसान और बेरोज़गार युवक भी जुड़ते हैं, जो सामाजिक और आर्थिक कुचक्र से त्रस्त हैं।
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नाटक की मूल टकराहट गांधी के अहिंसात्मक आंदोलन और भगत सिंह की क्रांति के मार्ग के बीच है।
- रवि और मदन गांधीवादी विचारधारा के समर्थक हैं।
- वहीं, केदार और शेर मानते हैं कि अब तलवार उठाने का समय है।
मुख्य संवाद: नैतिकता और विद्रोह की बहस/Morality vs. Armed Rebellion
नाटक का सबसे सशक्त हिस्सा इसके संवाद हैं। केदार का एक वाक्य युवाओं की मनोदशा को दर्शाता है –
“यदि धर्म की खातिर हमें करने पड़ें दुष्कर्म, तो फूंक दो उस धर्म को – वह धर्म पाप है।”
यह संवाद तत्कालीन समय में क्रांति और नैतिकता की परिभाषा पर प्रश्न उठाता है। शांति की बात करने वाले भी जब अत्याचारों से हार जाते हैं, तो अंत में ‘रक्त-ध्वज’ यानी क्रांति का लाल झंडा उठा लेते हैं।
रक्त-ध्वज: क्रांतिकारियों का प्रतीक/Rakt-Dhwaj: Symbol of Revolutionary Resolve
नाटक के अंत में सभी युवा “रक्त-ध्वज” के नेतृत्व में उठ खड़े होते हैं।
“यह वीरों का आभूषण है, शहीदों का श्रृंगार है, क्रांतिकारियों का उच्च आधार है।”
यह झंडा उनके लिए बलिदान, संघर्ष और आज़ादी की कामना का प्रतीक बन जाता है। वे बातों में समय गंवाने की बजाय एक्शन की राह चुनते हैं।
साहित्यिक महत्व और अंग्रेज़ी सत्ता का भय/Literary Relevance and British Censorship
इस नाटक का लेखन एक गुमनाम लेखक “अज्ञात” ने किया था। उसके अनुसार,
“हमें ऐसा साहित्य नहीं मिलता जिससे नवयुवकों के हृदय में देशभक्ति की गंगा प्रवाहित हो।”
इस प्रकार का साहित्य अंग्रेज़ी हुकूमत के लिए सबसे बड़ा खतरा था, क्योंकि यह युवाओं को जागरूक और संगठित करता था। यही कारण था कि 14 मार्च 1932 को इसे इंडिया ऑफिस लाइब्रेरी लंदन में ज़ब्त कर लिया गया।
राजवंती मान की खोज और पुनः प्रकाशन/Rediscovery by Dr. Rajvanti Mann
इतिहास ने इस क्रांतिकारी साहित्य को लगभग भुला दिया था। लेकिन डॉ. राजवंती मान – हरियाणा राज्य अभिलेखागार की उपनिदेशक – ने इंडिया ऑफिस, लंदन में शोध कर इसे पुनः खोज निकाला।
उनके प्रयासों से ‘रक्त-ध्वज’ और ‘ज़ख़्मी पंजाब’ जैसे दो महत्वपूर्ण नाटक मिले, जिनका प्रकाशन New World Publication, नई दिल्ली के सहयोग से हुआ।
भावनात्मक प्रभाव और आज की प्रासंगिकता/Emotional Depth and Modern Relevance
‘रक्त-ध्वज’ पढ़ते समय पाठक का मन किसानों की दुर्दशा, युवाओं की बेरोज़गारी और महिलाओं की असहायता से द्रवित हो जाता है। यह नाटक आज के दौर में भी राजनीतिक चेतना, सामाजिक न्याय और युवाओं की भूमिका को लेकर उतना ही प्रासंगिक है।
एक साहित्यिक हथियार की वापसी/ Revival of a Literary Weapon
‘रक्त-ध्वज’ केवल एक नाटक नहीं, बल्कि क्रांति की पुकार है। यह भगत सिंह और उनके साथियों की शहादत को शब्दों में जीवित करता है। यह नाटक हमारे इतिहास के उस पन्ने को रोशनी देता है, जिसे अंधेरे में रखा गया था।
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