Friday, September 12, 2025
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बोनालू तेलंगाना का त्योहार/Bonalu is a festival of Telangana

बोनालू तेलंगाना का त्योहार/Bonalu is a festival of Telangana
बोनालू तेलंगाना का त्योहार/Bonalu is a festival of Telangana

तेलंगाना के खास उत्सवों में से एक है बोनालु उत्सव। जो हर साल आषाढ़ महीने में मनाया जाता है। इसमें देवी महाकाली की पूजा की जाती है। पूजा के द्वारा लोग भगवान को अपनी सारी मन्नतें पूरे होने के लिए आभार प्रकट करते हैं। इसके अलावा अगस्त माह में सबसे ज्यादा बीमारियां फैलती हैं तो लोग उससे बचने के लिए भी ये पूजा करते हैं।

बोनम शब्द का अर्थ भोजनम् से है जिसका मतलब खाना या प्रसाद होता है। नए बर्तन में चावल, दूध और गुड़ को मिलाकर प्रसाद बनाया जाता है और बर्तन को नीम की पत्तियों और हल्दी से सजाया जाता है। प्रसाद के साथ सिंदूर, चूड़ी और साड़ी रखकर इस बर्तन को औरतें सिर पर रखकर मंदिर तक ले जाती हैं और भगवान को चढ़ाती हैं।

बोनालु उत्सव का इतिहास / History of Bonalu festival

सन् 1813 में ट्विन सिटीज़ के नाम से मशहूर हैदराबाद और सिकंदराबाद में हैजा बीमारी फैलने से हजारों लोगों की जानें गई थीं। जिसके लिए हैदराबाद की आर्मी ने उज्जैन (मध्यप्रदेश) महाकाली मंदिर में प्रार्थना की थी साथ ही ये मन्नत भी मांगी थी कि बीमारी का संक्रमण पूरी तरह से खत्म हो गया तो वो अपने शहर में देवी महाकाली की मूर्ति भी स्थापित करेंगे।

जिसके बाद हैजा का संक्रमण धीरे-धीरे खत्म होने लगा और वापस लौटकर आर्मी के जवानों ने अपने शहर में देवी मां की प्रतिमा लगवाई और इसके बाद ही हर साल बोनालु उत्सव मनाया जाने लगा। इसके अलावा एक और कहानी जो इस उत्सव के बारे में कही जाती है वो ये कि अगस्त महीने में मां महाकाली अपने मायके यानि माता-पिता के घर आती हैं इसलिए ये उत्सव मनाया जाता है।

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इन रूपों में होती है महाकाली की पूजा / Mahakali is worshiped in these forms

तेलंगाना के अलग-अलग जगहों पर मां महाकाली को पेद्दम्मा, पोचम्मा, मैसम्मा, गंडिमैसम्मा, नल्लापोचम्मा, एल्लम्मा, पोलेरम्मा, महांकालम्मा आदि नामों से जाना जाता है। अच्छी सेहत के साथ-साथ अच्छी फसल और घर में सुख-शांति बनाए रखने के लिए पूजा और प्रार्थना की जाती है।

निकाली जाती है शोभा यात्रा 
उत्सव के दौरान शोभा यात्रा निकलती है। जिसमें चावल, दूध और गुड़ के बने प्रसाद को बर्तन में रख महिलाएं इस सिर पर रखकर मंदिर तक जाती हैं। इस खास मौके पर जहां महिलाएं ट्रेडिशनल साड़ी में नज़र आती हैं वहीं लड़कियां हाफ-साड़ी और लहंगा चोली में।

कहां से होती है बोनालु उत्सव की शुरुआत और कहां होता है समापन 
सबसे पहले हैदराबाद के गोलकोंडा में श्री जगदंबिका मंदिर में बोनालु अर्पित किया जाता है। इसके बाद सिकंदराबाद के उज्जैनी महांकाली मंदिर में और उसके बाद लाल दरवाजा माता मंदिर में बोनालु अर्पित होता है। इस तीन जगहों के बाद ही दूसरी जगहों पर बोनालु अर्पित किया जाता है। उत्सव का समापन गोलकोंडा के जगदंबिका मंदिर में बोनालु चढ़ाए जाने के बाद होता है।

बोनालू तेलंगाना और आंध्र प्रदेश में सबसे लोकप्रिय और व्यापक रूप से मनाए जाने वाले उत्‍सवों में से एक है। आषाढ़ के महीने में मनाया जाने वाला, महीने भर चलने वाला उत्सव देवी महाकाली को धन्यवाद देने के लिए होता है। इसमें राज्य भर की महिलाएं पारंपरिक पोशाक पहनती हैं और देवी को बोनम का प्रसाद चढ़ाती हैं। बोनम या भोजन में गुड़, दही और पानी के साथ पके हुए चावल होते हैं जिन्हें मिट्टी के बर्तन में रखा जाता है।

इनमें से प्रत्येक बर्तन को फूलों से सजाया जाता है और देवी को चढ़ाने के लिए महिलाएं अपने सिर पर रखती हैं। इस उत्‍सव की उत्पत्ति 19वीं शताब्दी में हुई थी जब हैदराबाद की सेना की एक बटालियन ने देवी से उस प्लेग को समाप्‍त करने के लिए प्रार्थना की थी जिसने शहर को तबाह कर दिया था। साथ ही वचन दिया था कि अगर देवी ने ऐसा किया तो बटालियन हैदराबाद में महाकाली की मूर्ति स्थापित करेगी।

ऐसा माना जाता है कि देवी ने उस प्लेग को खत्‍म कर दिया था और बटालियन ने मूर्ति की स्थापना की थी। इस उत्‍सव का बहुत महत्व है और इसलिए 2014 में, जब तेलंगाना राज्य का गठन किया गया था, बोनालु को राज्य महोत्सव घोषित किया गया था। उत्सव गोलकुंडा किले से शुरू होता है। महिलाएं बोनालू को लेकर चलती हैं और मंदिर तक पहुंचती हैं। बोनालू ले जाने वाली महिलाओं को देवी की आत्मा माना जाता है, इसलिए जैसे ही वे मंदिर के पास पहुंचती हैं, आत्मा को शांत करने के लिए भक्त गण पानी छिड़कते हैं। पोथराजू नृत्य जैसे पारंपरिक नृत्य राज्य के कई हिस्सों में किए जाते हैं।

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– सारिका असाटी

 

 

 

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