Saturday, December 6, 2025
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बैसाखी की शुभकामनाएँ खालसा पंथ की स्थापना

गुरू गोविंद सिंह ने किया वीरता का संचार

वर्ष था 1699, दिन था वैसाखी का, प्रातःकाल की बेला थी। आनंदपुर साहिब की पावन भूमि पर आसन सजा हुआ था। पंजाब ही नहीं वरन् संपूर्ण हिन्दुस्तान से आई सिख संगत श्री गुरू गोबिन्द सिंह जी का पैगाम सुनने के लिये उत्सुक थी। गुरू गोविंद अपने हस्तकमल में नग्न तलवार लिए खड़े थे।

यह घटना शायद अचानक घटित नहीं हो रही थी।

इसके पीछे उस सिख सिरजना की कठोर परीक्षा थी जो सिख कई वर्षों से पाठ या वाक द्वारा पढ़ सुन रहा था।

गुरू जी हाथ में तलवार लेकर खेमे में से बाहर आए।

तीन बार जोशीले आवाज़ में प्रेमपूर्वक कहा `मुझे एक सिख का शीश चाहिये।’

इतिहास साक्षी है कि पाँच सिख बारी-बारी उठते हैं।

कहते हैं, `गुरू जी हमारे शीश हाजिर हैं जो आपके किसी काम आ सके तो हम धन्य हो जायेंगे।’

पांच प्यारे

  • ये पांच सिख गुरू जी के पांच प्यारे बनते हैं।
  • जिनके नाम इस प्रकार हैं – खत्री दया सिंह, धर्म सिंह, हिम्मत सिंह, मुहकमचन्द, और पांचवां साहिब सिंह नाई।
  • इन पांचों को सुन्दर वस्त्रों से सुशोभित कर खेमे से बाहर लाया गया।
  • गुरूजी विराजमान हो गए।
  • लोहे के एक बर्तन में सरसा नदी का जल मंगवाया गया।
  • उसमें राजमाता से बतासे मंगवाकर डाला गया।
  • उन पांचों को जल पिलाकर पांच प्यारों का सम्मान दिया।
  • गुरूजी उनके पास बैठ गये। कहा, `हमें भी अमृतपान कराओ।’
  • पांचों संकोच करने लगे।
  • `संकोच मत करो, यह सब अकाल पुरख (प्रभु) की इच्छा से हो रहा है।’
  • इस प्रकार उन्होंने खालसा पंथ की स्थापना की।

उपदेश

  • उन्होंने कहा कि इन पाँचों सिक्खों में से एक-एक ऐसे हैं, जिन्हें मैं सवा लाख से लड़ा सकता हूँ।
  • जिस प्रकार कायरता संक्रामक होती है, उसी प्रकार वीरता भी संक्रामक होती है।
  • गुरु गोविन्द सिंह का यह मन्त्र संजीवनी शक्ति बन गया।
  • उन्होंने ‘खालसा पन्थ’ को बाह्य दृष्टि से शक्तिशाली बनाने के लिए कुछ सिद्धांत प्रतिपादित किए जो इस प्रकार है :
  •  सभी सिक्खों की एक ही जाति है ‘सिंह’, अतः सभी के नाम के आगे ‘सिंह’ लगाया जाय;
  • सभी एक ढंग से ‘सत् श्री अकाल’ कहकर नमस्कार करें;
  • ‘गुरु ग्रन्थ साहिब’ के अलावा किसी को न पूजा जाय;
  • ‘अमृतसर’ एक ही तीर्थ हो;
  • कोई तंबाकू का सेवन न करे;
  • प्रत्येक सिक्ख सिर पर पगड़ी और केश, कंधा, कृपाण, कड़ा और कच्छा धारण करे।
  • ‘वाह गुरुजी का खालसा, वाह गुरुजी की फतेह’ को उन्होंने सामूहिक संबोधन बनाया।
  • दीन-दुखियों की सेवा करना।
  • नित्य गुरवाणी का पाठ करना बताया।

पाँच चिह्न

गुरूजी ने सिखों के पांच चिह्न बताए-

  1. कच्छा
  2. कड़ा
  3. कंघा (लकड़ी का कंघा) केशों में रखना
  4. केश
  5. किरपाण धारण करना

गुरू ग्रंथ साहिब

गुरूजी ने `गुरू ग्रन्थ साहिब’ जी के सामने 5 पैसे और नारियल रख अरदास की

और कहा, `मेरे बाद `गुरू ग्रन्थ साहिब’ को ही अपना गुरू समझना।

इसमें सभी सूफी सन्तों, भत्तों और गुरूओं की वाणी संकलित है।

आज से तुम सब एक गुरू की संतान हो गये।

तुम्हारी जात-पात सब खत्म हो गई, तुम पांच परमेश्वर हो।

अमृतपान Amrit Ceremony

गुरू जी ने पांच प्यारों को अमृतपान कराने का आदेश दिया।

कहा कि जो लोग अमृतपान करना चाहें, उन्हें अमृतपान कराओ।

ऐसा कहा जाता है कि वैसाखी वाले दिन करीब 20 हजार लोगों ने अमृतपान किया।

उस समय वहाँ 80 हजार लोग वहां उपस्थित थे।

वैसे तो यह परंपरा गुरू नानक देव जी के समय से ही आगे के गुरू भी मना रहे थ।

परन्तु गुरू गोविन्दसिंह जी ने लोगों में भय और कायरता का नाश किया

और वीरता का संचार किया।

नए साल की शुरूआत

  • वैसाखी वाले दिन ही नये साल की शुरूआत होती है।
  • फसल पकने पर चारों ओर हरियाली छाई रहती है।
  •  गुरू गोविन्द सिंह ने वैसाखी वाले दिन सिखों में अमृतपान बांटा।
  • यह विवरण इतिहास में स्वार्णिम अक्षरों में लिखा गया।

 

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