Saturday, September 13, 2025
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बुद्ध दर्शन – आत्म दीवो भवः

गौतम बुद्ध ने किया

भारतीय सांस्कृतिक विरासत में नवाचार का संचरण

बुद्ध के दर्शन का सबसे महत्त्वपूर्ण विचार है- `आत्म दीपो भवः’ अर्थात `अपने दीपक स्वयं बनो’। अर्थात व्यक्ति को अपने जीवन का उद्देश्य या नैतिक-अनैतिक प्रश्न का निर्णय स्वयं करना चाहिये।

 

महात्मा गौतम बुद्ध ने अपने जीवन से समस्त मानव जाति को एक नई राह दिखाई।

अपने विचारों से दुनिया को नया मार्ग (मध्यम मार्ग) दिखाने वाले महात्मा बुद्ध भारत के एक महान दार्शनिक, समाज सुधारक और बौद्ध धर्म के संस्थापक थे।

भारतीय वैदिक परंपरा में पैठ कर गईं कुरीतियों को महात्मा बुद्ध ने ठीक किया।

बुद्ध ने वेदों और उपनिषदों में विद्यमान दार्शनिक सूक्ष्मताओं को अपने दर्शन में स्थान दिया लेकिन वैदिक परंपरा के कर्मकांडों पर कड़ी चोट की।

उन्होंने भारतीय सांस्कृतिक विरासत में नवाचार का संचरण किया।

मध्यकाल में कबीरदास जैसे क्रांतिकारी विचारक पर महात्मा बुद्ध के विचारों का गहरा प्रभाव दिखता है।

डॉ. अंबेडकर ने भी वर्ष 1956 में अपनी मृत्यु से कुछ समय पहले बौद्ध धर्म अपना लिया था।

उन्हें महात्मा बुद्ध शेष धर्म-प्रवर्तकों की तुलना में ज़्यादा लोकतांत्रिक नज़र आते थे।

आइए, बुद्ध के जीवन वृत्तांत, उनके दर्शन के सकारात्मक व नकारात्मक पहलूओं तथा बुद्ध की शिक्षाओं की प्रासंगिकता पर विमर्श करें।

महात्मा बुद्ध के जीवन की झलकी

जन्म-निर्वाण

  •   महात्मा बुद्ध का जन्म नेपाल की तराइयों में स्थित लुम्बिनी में 563 ईसा पूर्व  वैशाख पूर्णिमा के दिन हुआ था।
  • अपने यौवन में उन्होंने मानव जीवन के दुखों, जैसे- रोगी व्यक्ति, वृद्धावस्था एवं मृत्यु ने उनके अंतस को झिंझोड़ दिया था।
  •  फिर एक प्रसन्नचित्त संन्यासी से प्रभावित होकर बुद्ध 29 वर्ष की अवस्था में सांसारिक जीवन को त्याग कर सत्य की खोज में निकल पड़े।
  •  महात्मा बुद्ध ने 528 ईसा पूर्व में वैशाख पूर्णिमा के दिन बोधगया में एक पीपल वृक्ष के नीचे ध्यान करते हुए आत्म बोध प्राप्त किया।
  •  वैशाख पूर्णिमा के दिन ही 483 ईसा पूर्व में कुशीनारा नामक स्थान पर महात्मा बुद्ध को निर्वाण प्राप्त हुआ।

परिषद का आह्वान

  •  उनकी मृत्यु के पश्चात उनके शिष्यों ने राजगृह में एक परिषद का आह्वान किया।
  •  यहाँ बौद्ध धर्म की मुख्य शिक्षाओं को संहिताबद्ध किया गया।
  •  इन शिक्षाओं को पिटकों के रूप में समानुक्रमित करने के लिये चार बौद्ध संगीतियों का आयोजन किया गया।

त्रिपिटक

  •  जिसके पश्चात् तीन मुख्य पिटक बने।
  •  विनय पिटक (बौद्ध मतावंलबियों के लिये व्यवस्था के नियम), सुत पिटक (बुद्ध के उपदेश सिद्धांत) तथा अभिधम्म पिटक (बौद्धदर्शन),
  •  इन्हें संयुक्त रूप से त्रिपिटक कहा जाता है। इन सब को पाली भाषा में लिखा गया है।

बुद्ध दर्शन

आत्म दीपो भवः

  • बुद्ध के दर्शन का सबसे महत्त्वपूर्ण विचार है- `आत्म दीपो भवः’ अर्थात `अपने दीपक स्वयं बनो’।
  • अर्थात व्यक्ति को अपने जीवन का उद्देश्य या नैतिक-अनैतिक प्रश्न का निर्णय स्वयं करना चाहिये।
  • यह विचार इसलिये महत्त्वपूर्ण है क्योंकि यह ज्ञान और नैतिकता के क्षेत्र में बुद्धिजीवी वर्ग के एकाधिकार को चुनौती देता है।
  • यह ज्ञान और नैतिकता के क्षेत्र में हर व्यक्ति को उसमें प्रविष्ट होने का अवसर प्रदान करता है।
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मध्यम मार्ग

  • बुद्ध के दर्शन का दूसरा प्रमुख विचार `मध्यम मार्ग’ के नाम से जाना जाता है।
  • सूक्ष्म दार्शनिक स्तर पर तो इसका अर्थ कुछ भिन्न है।
  • किंतु लौकिकता के स्तर पर इसका अभिप्राय किसी भी प्रकार के अतिवादी व्यवहार से बचना है।
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संवेदनशीलता

  • बुद्ध दर्शन का तीसरा प्रमुख विचार संवेदनशीलता है।
  • यहाँ संवेदनशीलता का अर्थ है दूसरों के दुखों को अनुभव करने की क्षमता।
  • वर्तमान में मनोविज्ञान जिसे समानुभूति  कहता है, वह प्रायः वही है जिसे भारत में संवेदनशीलता कहा जाता रहा है।

इहलोकवाद

  • बुद्ध दर्शन का चौथा प्रमुख विचार यह है कि वे परलोकवाद की बजाय इहलोकवाद पर अधिक बल देते हैं।
  • गौरतलब है कि बुद्ध के समय चार्वाक के अलावा लगभग सभी दर्शन परलोक पर अधिक ध्यान दे रहे थे।
  • उनके विचारों का सार यह था कि इहलोक मिथ्या है और परलोक ही वास्तविक सत्य है।
  • बुद्ध ने जानबूझकर अधिकांश  पारलौकिक धारणाओं को खारिज किया।

अहंकार से मुक्त

  • पाँचवा प्रमुख विचार बुद्ध दर्शन का यह है कि वे व्यक्ति को अहंकार से मुक्त होने की सलाह देते हैं।
  • अहंकार का अर्थ है `मैं’ की भावना। यह `मैं’ ही अधिकांश  झगड़ों की जड़ है।
  • इसलिये व्यक्तित्व पर अहंकार करना एकदम निरर्थक है।

हृदय परिवर्तन

  • छठा प्रमुख विचार हृदय परिवर्तन के विश्वास से संबंधित है।
  • बुद्ध को इस बात पर अत्यधिक विश्वास था कि हर व्यक्ति के भीतर अच्छा बनने की संभावनाएँ होती हैं।
  • ज़रूरी यह है कि उस पर विश्वास किया जाए और उसे समुचित परिस्थितियाँ प्रदान की जाएँ।
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महात्मा बुद्ध के विचारों की प्रासंगिकता

  • भारतीय विरासत के एक महान विभूति हैं महात्मा बुद्ध।
  • उन्होंने संपूर्ण मानव सभ्यता को एक नयी राह दिखाई।
  • उनके विचार, उनकी मृत्यु के लगभग 2500 वर्षों के पश्चात् आज भी हमारे समाज के लिये प्रासंगिक बने हुए हैं।
  • वर्तमान समय में बुद्ध के स्व निर्णय के विचार का महत्त्व बढ़ जाता है।
  • दरअसल, आज व्यक्ति अपने जीवन के महत्त्वपूर्ण फैसले भी स्वयं न लेकर दूसरे की सलाह पर लेता है। अतः वह वस्तु बन जाता है।
  • बुद्ध का `आत्म दीपो भवः’ का सिद्धांत व्यक्ति को व्यक्ति बनने पर बल देता है।
  • मध्यम मार्ग सिद्धांत आज भी उतना ही प्रासंगिक है जितना बुद्ध के समय था।
  • उनके इन विचारों की पुष्टि इस कथन से होती है कि वीणा के तार को उतना नहीं खींचना चाहिये कि वह टूट ही जाए।
  • या फिर उतना भी उसे ढीला नहीं छोड़ा जाना चाहिये कि उससे स्वर ध्वनि ही न निकले।
  • दरअसल आज दुनिया में तमाम तरह के झगड़े हैं, जैसे- सांप्रदायिकता, आतंकवाद, नक्सलवाद, नस्लवाद तथा जातिवाद इत्यादि।
  • इन झगड़ों के मूल में बुनियादी दार्शनिक समस्या यही है कि कोई भी व्यक्ति देश या संस्था अपने दृष्टिकोण से पीछे हटने को तैयार नहीं है।
  • महात्मा बुद्ध के मध्यम मार्ग सिद्धांत को स्वीकार करते ही हमारा नैतिक दृष्टिकोण बेहतर हो जाता है।
  • हम यह मानने लगते हैं कि किसी भी चीज का अति होना घातक होता है।
  • यह विचार हमें विभिन्न दृष्टिकोणों के मेल-मिलाप तथा आम सहमति प्राप्त करने की ओर ले जाता है।
  • महात्मा बुद्ध का यह विचार कि दुःखों का मूल कारण इच्छाएँ हैं, आज के उपभोक्तावादी समाज के लिये प्रासंगिक है।
  • दरअसल, प्रत्येक इच्छाओं की संतुष्टि के लिये प्राकृतिक या सामाजिक संसाधनों की आवश्यकता पड़ती है।
  • ऐसे में अगर सभी व्यक्तियों के भीतर इच्छाओं की प्रबलता बढ़ जाए तो प्राकृतिक संसाधन नष्ट होने लगेंगे।
  • साथ ही सामजिक संबंधों में तनाव उत्पन्न हो जाएगा।
  • ऐसे में अपनी इच्छाओं को नियंत्रित करना समाज और नैतिकता के लिये अनिवार्य हो जाता है।
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सार

  • बुद्ध से जो सीखा जाना चाहिये, वह यह है कि जीवन का सार संतुलन में है।
  • उसे किसी भी अतिवाद के रास्ते पर ले जाना गलत है।
  • हर व्यक्ति के भीतर सृजनात्मक संभावनाएँ होती हैं।
  • इसलिये व्यक्ति को अंधानुकरण करने के बजाय स्वयं अपना रास्ता बनाना चाहिये।

 

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