Thursday, September 11, 2025
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बारिश में मोर का नृत्य/Peacock dance in the rain

 

बारिश में मोर का नृत्य/Peacock dance in the rain
बारिश में मोर का नृत्य/Peacock dance in the rain

भारत का राष्ट्रीय पक्षी मोर (Indian Peacock – Pavo Cristatus) अपनी अद्वितीय सुंदरता और मनमोहक नृत्य के लिए जाना जाता है। खासकर मानसून के मौसम में वर्षा की रिमझिम बूंदों के बीच मोर का पंख फैलाकर नाचना एक अलौकिक दृश्य होता है।
लेकिन आज यह नज़ारा धीरे-धीरे दुर्लभ होता जा रहा है। लगातार बदलते वातावरण, शहरीकरण, खेती में रसायनों का बढ़ता उपयोग और सरकारी लापरवाही के चलते मोरों की संख्या घट रही है।

🦚 बारिश में मोर का नृत्य: प्रकृति का सबसे सुंदर दृश्य

बारिश के मौसम में मोर का श्रृंगार और भी निखर उठता है।

  • इस समय इसके पुच्छल पंख (tail feathers) अधिक लंबे और चमकदार हो जाते हैं।
  • कंठ से निकलने वाली मधुर ध्वनि सामान्य दिनों से कहीं अधिक दूर तक गूंजती है।
  • यह समय मोरों के लिए प्रणय और प्रजनन का मौसम होता है।
  • इंसानों की तरह जब मोर को खुशी मिलती है, तो वह पंख फैलाकर झूम उठता है।

भारत का राष्ट्रीय पक्षी: मोर का परिचय

भारत सरकार ने 1963 में मोर (Peacock) को राष्ट्रीय पक्षी घोषित किया।

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प्रमुख प्रजातियां

  1. भारतीय नीला मोर (Indian Blue Peacock – Pavo Cristatus)
    • भारत और श्रीलंका में पाया जाता है।
  2. हरा जावा मोर (Green Peacock – Pavo Muticus)
    • म्यांमार और जावा क्षेत्र में पाया जाता है।

राष्ट्रीय प्रतीक होने के साथ ही यह हमारी संस्कृति, कला और धार्मिक परंपराओं का अभिन्न हिस्सा है। भगवान कृष्ण की मोरपंख की मुरली इसका सबसे बड़ा उदाहरण है।

मानसून: मोरों का प्रणय और प्रजनन काल

बारिश में मोर का नृत्य/Peacock dance in the rain

भारतीय पारिस्थितिकी में मानसून सिर्फ बारिश नहीं, बल्कि व्यापक जीवनोत्सव है।

  • मोर इस मौसम में प्रणय करता है।
  • अपनी चंचल धुन और नृत्य के जरिए मोरनी को आकर्षित करता है।
  • कंठ से निकली प्रतिध्वनि कई किलोमीटर दूर तक सुनाई देती है।

📉 घटती संख्या: चिंताजनक स्थिति

70–80 के दशक तक दिल्ली, हरियाणा, पंजाब और गुजरात में वर्षा के मौसम में हर जगह मोर दिखाई देते थे।
लेकिन अब हालात बदल गए हैं—

  • दिल्ली के रिज एरिया और यमुना किनारे कभी मोर प्रचुर मात्रा में दिखते थे, अब केवल कुछेक ही रह गए हैं।
  • पंजाब और हरियाणा में कृषि विस्तार और शहरीकरण ने इनके आवास को नष्ट कर दिया।
  • गुजरात के खेती वाले क्षेत्र में भी इनकी संख्या लगातार कम हो रही है।

🏙️ लापरवाही और संकट के कारण

मोरों की घटती संख्या के पीछे कई कारण ज़िम्मेदार हैं—

  1. शहरीकरण और कृत्रिम रोशनी – दिन और रात में निरंतर रोशनी से मोर प्राकृतिक आवास छोड़ रहे हैं।
  2. वन कटाई और पहाड़ों का क्षरण – अरावली हिल्स में अवैध खनन और संसाधनों का दोहन।
  3. रसायनयुक्त खेती – कीटनाशकों के अंधाधुंध उपयोग से कीड़े-मकोड़े खत्म हो गए, जिससे मोरों का भोजन घट गया।
  4. शिकार और चोरी से व्यापार – पुच्छल पंख और सौंदर्य के कारण अवैध शिकार बढ़ा।

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🌿 संरक्षण और सुरक्षा: उम्मीद की राह

यदि हमें अपने जीवन और प्रकृति की सुंदरता को सुरक्षित रखना है तो पशुपक्षियों का संरक्षण अनिवार्य है।

  • सरकार और समाज को मिलकर कानूनी संरक्षण और प्राकृतिक आवास का पुनर्निर्माण करना होगा।
  • Organic खेती को बढ़ावा देना चाहिए ताकि मोरों के लिए भोजन (insects, छोटे कीड़े) उपलब्ध हो।
  • जागरूकता अभियान से ग्रामीण और शहरी क्षेत्रों में लोगों को शिक्षित करना होगा।
  • Wildlife Corridors और Protected Areas को विकसित करना होगा।

✍️ निष्कर्ष

मोर केवल भारत का राष्ट्रीय पक्षी ही नहीं, बल्कि हमारी सांस्कृतिक और पारिस्थितिक धरोहर है।
बारिश में झूमता मोर केवल प्रकृति की सुंदरता ही नहीं, बल्कि जीवन के उत्सव का प्रतीक है। हमें यह सुनिश्चित करना होगा कि आने वाली पीढ़ियां भी इस मनमोहक दृश्य का आनंद ले सकें। इसके लिए आवश्यक है कि मोर और उसके प्राकृतिक आवास की रक्षा की जाए।

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