Sunday, December 7, 2025
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माँ सरस्वती का जन्मदिवस Maa Saraswati ka Janmdiwas

 माता सरस्वती का जन्मदिन बसंत पंचमी को माना जाता है। इसी परम पावन तिथि में हिन्दी जगत के महान आदित्य महाप्राण सूर्यकांत त्रिपाठी ‘निराला’का भी जन्म हुआ था। बसंत ऋतु का स्वागत करने के लिए माघ महीने के पाँचवे दिन एक बड़ा जश्न मनाया जाता था। जिसमें विष्णु और कामदेव की पूजा होती, यह माता सरस्वती वसंत पंचमी का त्यौहार कहलाता था।

  •  जब फूलों पर बहार आ जाती है खेतों मे सरसों का सोना चमकने लगता है तो मानें माता सरस्वती का जन्मदिन वसंत आ गया।
  • तब जौ और गेहूँ की बालियाँ खिलने लगतीं हैं और आमों के पेड़ों पर बौर आ जाता  है। हर तरफ रंग-बिरंगी तितलियाँ मँडराने लगतीं हैं।माता सरस्वती का जन्मदिनआ गया।
  • माता सरस्वती का जन्मदिन बसंत ऋतु का स्वागत करने के लिए माघ महीने के पाँचवे दिन एक बड़ा जश्न मनाया जाता था।
  • जिसमें विष्णु औरमाता सरस्वती  कामदेव की पूजा होती, यह वसंत पंचमी का त्यौहार कहलाता था।
  • शास्त्रों में बसंत पंचमी को माता सरस्वती का जन्मदिन  से उल्लेखित किया गया है।
  • पुराणों-शास्त्रों तथा अनेक काव्य ग्रंथों में भी अलग-अलग ढंग सेमाता सरस्वती का जन्मदिन  इसका चित्रण मिलता है।
  • लेकिन बसंत पंचमी में विशेष तौर पर विद्या की देवी सरस्वती की पूजा करने का दिन माना गया  है।
  • इस दिन स्त्रियाँ पीले वस्त्र धारण करती हैं।माता सरस्वती का जन्मदिन मनाते हैं।

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बसन्त पंचमी से जुड़ी लोककथा

  • सृष्टि के प्रारंभिक काल में भगवान विष्णु की आज्ञा से ब्रह्मा ने जीवों, खासतौर पर मनुष्य योनि की रचना की।
  • अपनी सर्जना से वे संतुष्ट नहीं थे। उन्हें लगता था कि कुछ कमी रह गई है जिसके कारण चारों ओर मौन छाया रहता है।
  • तब विष्णु से अनुमति लेकर ब्रह्मा ने अपने कमण्डल से जल छिड़का।
  • पृथ्वी पर जलकण बिखरते ही उसमें कंपन होने लगा।
  • इसके बाद वृक्षों के बीच से एक अद्भुत शक्ति का प्राकटय़ हुआ।
  • यह प्राकटय़ एक चतुर्भुजी सुंदर स्त्री का था जिसके एक हाथ में वीणा तथा दूसरा हाथ वर मुद्रा में था।
  • अन्य दोनों हाथों में पुस्तक एवं माला थी। ब्रह्मा ने देवी से वीणा बजाने का अनुरोध किया।
  • जैसे ही देवी ने वीणा का मधुरनाद किया, संसार के समस्त जीव-जन्तुओं को वाणी प्राप्त हो गई।
  • जलधारा में कोलाहल व्याप्त हो गया। पवन चलने से सरसराहट होने लगी।
  • तब ब्रह्मा ने उस देवी को वाणी की देवी सरस्वती कहा।
  • माता सरस्वती का जन्मदिन मना कहा गया ।

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माँ सरस्वती के विभिन्न नाम

  • सरस्वती को बागीश्वरी, भगवती, शारदा, वीणावादनी और वाग्देवी सहित अनेक नामों से पूजा जाता है।
  • ये विद्या और बुद्धि प्रदाता हैं। संगीत की उत्पत्ति करने के कारण ये संगीत की देवी भी हैं।
  • बसन्त पंचमी के दिन को इनके जन्मोत्सव के रूप में भी मनाते हैं।
  • ऋग्वेद में भगवती सरस्वती का वर्णन करते हुए कहा गया है-प्रणो देवी सरस्वती वाजेभिर्वजिनीवती धीनामणित्रयवतु।
  • अर्थात ये परम चेतना हैं। सरस्वती के रूप में ये हमारी बुद्धि, प्रज्ञा तथा मनोवृत्तियों की संरक्षिका हैं।
  • हममें जो आचार और मेध है उसका आधार भगवती सरस्वती ही हैं।
  • इनकी समृद्धि और स्वरूप का वैभव अद्भुत है।

पुराणों के अनुसार

  • श्रीकृष्ण ने सरस्वती से खुश होकर उन्हें वरदान दिया था कि वसंत पंचमी के दिन तुम्हारी भी आराधना की जाएगी।  माता सरस्वती का जन्मदिन बसंत पंचमी को माना है।
  • इस तरह कई जगहों में वसंत पंचमी के दिन विद्या की देवी सरस्वती की भी पूजा होने लगी जो कि आज तक जारी है।

पर्व का महत्व

  • वसंत ऋतु आते ही प्रकृति का कण-कण खिल उठता है। मानव तो क्या पशु-पक्षी तक उल्लास से भर जाते हैं।
  • हर दिन नयी उमंग से सूर्योदय होता है और नयी चेतना प्रदान कर अगले दिन फिर आने का आश्वासन देकर चला जाता है।
  • यों तो माघ का यह पूरा मास ही उत्साह देने वाला है, पर वसंत पंचमी (माघ शुक्ल 5) का पर्व भारतीय जनजीवन को अनेक तरह से प्रभावित करता है।
  • प्राचीनकाल से इस दिन ज्ञान और कला की देवी मां सरस्वती का जन्मदिवस माना जाता है।
  • जो शिक्षाविद भारत और भारतीयता से प्रेम करते हैं, वे इस दिन मां शारदे की पूजा कर उनसे और अधिक ज्ञानवान होने की प्रार्थना करते हैं।
  • कलाकारों का तो कहना ही क्या। जो महत्व सैनिकों के लिए अपने शस्त्रों और विजयादशमी का है,
  • जो विद्वानों के लिए अपनी पुस्तकों और व्यास पूर्णिमा का है, जो व्यापारियों के लिए अपने तराजू, बाट, बही खातों और दीपावली का है,
  • वही महत्व कलाकारों के लिए वसंत पंचमी का है।
  • चाहे वे कवि हों या लेखक, गायक हों या वादक, नाटककार हों या नृत्यकार,
  • सब दिन का प्रारम्भ अपने उपकरणों की पूजा और मां सरस्वती की वंदना से करते हैं।
  • ज्ञानाराधक समस्त प्राणी जगत अपनी आराधय देवी के जन्मोत्त्सव के रुप में इस उत्सव का भव्य आयोजन करते हैं,
  • जिसमें मां वाणी का पूजन अर्चन यज्ञ हवन एवं विभिन्न प्रकार के सांस्कृतिक आयोजन आयोजित किये जाते हैं।
  • पुरातन मान्यतानुसार इस दिन लोग बसंती रंग के नूतन वस्त्र धारण करते हैं, बसंती पुष्पों से माता की सज्जा एवं पूजन करते हैं।
  •  बसंती रंग के मिष्ठान से भोग लगाकर प्रसाद रुप में वितरण करते हैं तथा बसंती रंग की वस्तुओं यथा पीली धातु स्वर्ण या पीतल, पीले वस्त्र, पीला अन्न (चने की दाल), पीले पुष्प, पीला कंद (हल्दी) आदि का दान करते हैं।

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साहित्य जगत में महत्व

  • साहित्य जगत में भी बंसत पंचमी का विशेष महत्त्च माना जाता है, उसका प्रथम कारण तो माता सरस्वती का जन्मदिन ही है।
  • इसके अतिरिक्त इसी परम पावन तिथि में हिन्दी जगत के महान आदित्य महाप्राण सूर्यकांत त्रिपाठी ‘निराला’ का भी जन्म हुआ था।
  •  समस्त हिन्दी जगत के साहित्यकार कहीं सरस्वती पूजन तो कहीं निराला जयंती के रुप में उत्सव का आयोजन पूर्व मनोयोग के साथ करते हैं।
  • यदि हम बसंत शब्द की शाब्दिक संरचना पर ध्यान दें तो हमें आभास होता है-बस-अन्त,
  • अर्थात् बुराईयों विद्रपताओं, विकृतियों, प्राचीनताओं, रुढ़ियों, उदासीनता, आलस्य निष्क्रियता, दीर्ध सूत्रता, कुष्ठा आदि का अंत और सद्गुणों से युक्त नवीनताओं से सम्पन्न जीवन का शुभारंभ।
  • बसंत में यही सब कुछ तो हमें प्रकृति में देखने को मिलता है।

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पृथ्वी का आविर्भाव

  • एक और बात है जो बड़े सौभाग्य की है कि
  • हमारी पृथ्वी का प्रादुर्भाव एवं भारतीय नववर्ष का शुभारम्भ भी इसी काल में अर्थात् बसंत ऋतु में ही है- चैत्र शुक्ला प्रतिपदा।
  • जो हमें ‘पुनर्पुनर्नवीनोभव’ की प्रेरणा प्रदान करता है।
  • बसंत ही एक ऐसी सुहावनी ऋतु है जिसमें न सर्दी का कष्ट है न गर्मी का और न वर्षा की पीड़ा,
  • अपितु वातावरण की मन-मोहक छवि अति आनंद दायिक होती है। जीवन में नवीनतापरक प्रगति की द्योतक होती है।
  • अपनी असीमित विशिष्ट श्रेष्ठताओं के कारण ऋतुराज कही जाती है। जो पूर्णतः सार्थक एवं सिद्ध है।

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