बच्चों पर माता-पिता का प्रभाव सबसे ज्यादा
अगर आप चाहते हैं कि आपका बच्चा आपके सपनों के मुताबिक स्मार्ट हो, तो पहले आपको उसे पढ़ना और फिर उसे पढ़ाना सीखना होगा। बतौर पैरेंट्स इसके लिए आपको स्मार्ट पैरेंट्स बनना होगा।
स्कूली शिक्षा पर्याप्त नहीं
- अपने बच्चे का एडमिशन शहर के सबसे अच्छे स्कूल में करा देना नाकाफी होता है।
- सिर्फ इतना भर कर देने से जरूरी नहीं कि बच्चा पढ़ाई में बहुत स्मार्ट हो जाएगा।
- बल्कि इससे उसपर गलत उम्मीदों का दबाव हो जाता है।
- यह सोचना कि प्रसिद्ध या रेपुटेटिड स्कूल बच्चे को स्मार्ट बना देते हैं, उन्हें हर ज़रूरी ज्ञान सिखा देते हैं, कतई सच नहीं है।
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दबाव से ना हों प्रभावित
- दरअसल, आज सिर्फ पैरेंट्स पर ही नहीं, बच्चों पर भी उम्मीदों पर खरा उतरने का दबाव बहुत ज्यादा है।
- इसलिए ये उम्मीदें सिर्फ स्कूली एजुकेशन से पूरी होनी संभव नहीं हैं।
- माता-पिता को स्वयं और बच्चों को किसी भी दबाव से प्रभानित नहीं होना चाहिए।
पहले खुद को बदलें
- इसके लिए उन्हें खुद को बदलना होगा।
- अगर आप चाहते हैं कि आपका बच्चा आपके सपनों की माफिक स्मार्ट हो, तो आपको पहले उसे पढ़ना और फिर उसे पढ़ाना सीखना होगा।
- बतौर पैरेंट्स अगर आप चाहते हैं कि आपका बच्चा स्मार्ट बने, तो पहले आपको स्मार्ट पैरेंट्स बनना होगा।
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विशेषज्ञों की राय
- आज की तारीख में बच्चों के मानसिक और भावनात्मक विकास के लिए बहुत सारे इलेक्ट्रॉनिक साधन उपलब्ध हैं।
- लेकिन समाजशास्ति्रयों और शिक्षाशास्ति्रयों का सोचना आज भी भिन्न है।
- उनके अनुसार, बच्चों का विकास उनके और माता-पिता के साथ बिताए समय पर सर्वाधिक निर्भर करता है।
- उनके मस्तिष्क में उर्वरता तभी विकसित होती है, जब बच्चों के मां-बाप उनके साथ ज्यादा से ज्यादा वक्त बिताते हैं।
- उनके साथ ज्यादा से ज्यादा इंट्रैक्ट होते हैं।
- कोई भी तकनीक या कोई भी गैजेट अभी तक इस प्रक्रिया का विकल्प नहीं बना है।
बच्चों को दें समय
- इसलिए सबसे पहले तो बच्चों को समय दें।
- उनके साथ ज्यादा से ज्यादा खेलें। इंट्रैक्ट हों।
- उन्हें बिना कुछ कहे अपनी स्मार्टनेस दिखाएं ताकि वो आपकी नकल करके स्मार्ट बेबी बनने की कोशिश करें।
उम्र सीखने की
- कोई भी बच्चा 18 से 36 माह की उम्र में बहुत कुछ सीखता है।
- खासकर ध्वनियों के साथ तालमेल बिठाने के लिए यह उम्र सबसे महत्वपूर्ण होती है।
- विशेषज्ञ कहते हैं कि इस उम्र में मम्मी-पापा या दादी-दादा बच्चों से कई भाषाओं में संवाद करें।
- इससे बच्चे बड़ी सहजता से कई भाषाएं बोलना सीख लेते हैं।
- दरअसल, दिमाग में ध्वनियों के बैठने और उसके साथ अपना तालमेल बिठाने की यह सबसे अच्छी उम्र होती है।
- यही वह उम्र होती है, जब बच्चों को अगर अभिनय करते हुए कोई कहानी सुनाएं तो उनके दिलो-दिमाग में वह कहानी हमेशा-हमेशा के लिए चस्पां हो जाती है।
- यह मत सोचिए कि आप अच्छा अभिनय नहीं कर पाते या कर पातीं।
- यह भी मत सोचिए कि आपकी आवाज सुरीली होने की बजाय बेसुरी है।
- इससे कुछ फर्क नहीं पड़ता। आप सिर्फ उनसे बात करें।
- इस उम्र में बच्चे सिर्फ सीखते हैं।
- गुणवत्ता की परख इस उम्र में उनके पास नहीं होती।
स्कूल और समाज की भूमिका
- कुछ लोगों को लगता है कि एटीकेट या शिष्टाचार स्कूल और समाज सिखाते हैं।
- हां, इन दोनों की भी भूमिका होती है।
- लेकिन बच्चे एटीकेट या शिष्टाचार अपने घर से सीखते हैं।
- अपने मम्मी-पापा से सीखते हैं।
- अगर आप बहुत स्मार्टली झूठ बोलते हैं और सोचते हैं कि आपके बच्चों में इसका कोई असर नहीं पड़ेगा तो आप नासमझ हैं।
- झूठ चाहे कितने ही करीने से ही क्यों न बोला गया हो, वह झूठ ही होता है।
- सच बोलना, किसी की मदद करना, समाज के प्रति सकारात्मक रवैय्या रखना, ये महज आदतें या स्वभाव नहीं है।
- यह बहुत मेहनत से सीखा गया अनुशासन होता है।
- यह आपकी तपस्या होती है।
बच्चों पर माता-पिता का असर
- जब आप अपने इस अनुशासन में खरे उतरते हैं तो आपका यह असर सौ फीसदी आपके बच्चों में भी होता है।
- इसलिए अगर आप चाहते हैं कि आपका बच्चा लॉजिकल हो।
- समाज के प्रति सकारात्मक हो, झूठ न बोले।
- तो पहले ये सब गुण आपमें न सिर्फ होने चाहिए बल्कि दिखने चाहिए।
- तभी आपके बच्चों में ये गुण विकसित होंगे।
- कहने का अर्थ है कि आज के दौर में बच्चों से बहुत उम्मीदें रखी जा रही हैं।
- उनके जानकार होने की, उनके स्मार्ट होने की और उनके सफल होने की।
- लेकिन बच्चे इन उम्मीदों पर खरे तभी उतर सकते हैं, जब आप उन्हें खुद इन उम्मीदों पर पूरी तरह से खरा उतर कर दिखाएँगे।
- या कम से कम इसकी कोशिश करते हुए दिखेंगे।