योगासन के लिए निकालें समय

सांस हमारे शरीर, मन, एवं आत्मा को कनेक्ट करता है। शारीरिक व मानसिक रूप से स्वस्थ रहने के लिए प्रतिदिन प्राणायाम या ब्रीदिंग एक्सरसाइज़ के लिए समय निकालना ही चाहिए।
गहरी सांस लें, स्वस्थ रहें
- सांस लेना सभी जानते है; यहाँ तक कि नवजात शिशु भी।
- आजकल के व्यस्त जीवन में अकसर लोग कहते हैं कि मुझे तो सांस लेने तक की फ़ुरसत नहीं है।
- तब उनको याद दिलाना पड़ता है कि आप गहरी सांस लो…रिलैक्स करो।
- अर्थात् सांस हमारे शरीर, मन एवं आत्मा को कनेक्ट करता है, जोड़ता है।
- सांसों की गति शारीरिक व मानसिक परिस्थितियों के अनुसार बदलती रहती है।
- जैसे- दौड़ने पर, क्रोध आने पर सांसों की गति तेज़ होना।
- या आनंद व शांति की अनुभूति होने पर सांस की गति धीमी व गहरी हो जाना।
शारीरिक व मानसिक रूप से स्वस्थ रहने के लिए, प्रतिदिन योगासन के लिए समय निकालना ही चाहिए।
प्राणायाम का अर्थ
- संस्कृत का शब्द है प्राणायाम ।
- प्राण अर्थात सांस, ऊर्जा।
- आयाम अर्थात सांसों में दूरी बढ़ाना।
- प्राणायाम अर्थात सांस (इनहेल) और नि:श्वास (एक्सहेल) की गति को नियंत्रण में करना।
- गहरी सांस लेते हुए उसे नियंत्रित गति से छोड़ना ।
- अधिकतर हम अपने फेफड़ों को पूरा यूज़ नहीं करते बल्कि उसका कुछ हिस्सा ही यूज़ करते हैं।
- क्योंकि हम अधिकतर शैलो ब्रीदिंग करते हैं यानी पूरी तरह से सांस नहीं लेते हैं।
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तीन प्रकार की ब्रीदिंग
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वैसिकुलर ब्रीदिंग (सेक्शनल)
- इसमें सांस नासिका के द्वारा इनहेल करने पर फेफड़ों के ऊपरी हिस्सों में ही जाती है।
- जिससे कंधे और कैलर बोन ही ऊपर उठता है।
- ये शैलों ब्रीदिंग है।
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थोरैसिक ब्रीदिंग (चेस्ट ब्रीदिंग)
- इसमें सांस अंदर लेने (इनहेल) पर छाती फूलती है और सांस छोड़ने (एक्सहेल) पर सिकुड़ती है।
- फेफड़ों का मिडिल लोब इसमें पूरी तरह भाग लेता है।
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ऐबडोमिनल ब्रीदिंग (पेट)
- इसमें नाक से धीमी गति से गहरी सांस लेते हैं।
- इस दौरान यदि आसन में बैठ कर दोनों हाथों को पेट पर पास-पास रखें तो
- पेट फूलता है और दोनों हाथों की दूरी बढ़ जाती है।
- एक सेंकेंड सांस रोक कर धीमी गति से सांस छोड़ने पर दोनों हाथ पास आते हैं।
- इसमें फेफड़ों के निचले हिस्से तक सांस पहुँचती है।
प्राणायाम किस समय व कैसे करना उचित है –
- सुबह के समय ख़ाली पेट प्राणायाम करना सर्वोत्कृष्ट होता है।
- ज़मीन पर योगा मैट बिछाकर सुखासन, पद्मासन या अर्धपद्मासन में बैठकर प्राणायम करना चाहिए।
- यदि नीचे बैठने में मुश्किल हो तो कुर्सी पर बैठकर भी कर सकते हैं।
- खुली हवा में शांतिपूर्ण स्थान में प्राणायाम किया जाये तो बेहतर है।
- गहरी सांस अंदर लेना (इनहेल), रोकना (रिटेन) व छोड़ना (एक्सहेल) तीनों प्रक्रियाएँ धीमी गति से एक लय में होनी चाहिए।
प्राणायाम के प्रकार
कपालभाति
- फेफड़ों से हवा को प्रेशर से एक्सहेल करते हैं और सामान्य गति से इनहेल करते हैं।
अनुलोम विलोम
- इसमें क्रमवार एक नासिका से सांस ली जाती है और दूसरी नासिका से सांस छोड़ी जाती है।
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भ्रामरी प्राणायाम
- इसमें अपनी तर्जनी उँगलियों से दोनों कानों को बंद करते हैं।
- फिर अपना मुंह बंद रखते हुए नाक से ही सांस लेते और छोड़ते हैं।
- सांस छोड़ने के दौरान ऊँ की ध्वनि गुंजारित कर सकते हैं।
उज्जयी प्राणायाम
- मुंह से सांस लेते और छोड़ते हैं।
- सांसों को छोड़ते समय अपने गले के पिछले हिस्से में सांसों को महसूस करें और सांसों को छोड़ते समय हल्की सी ‘अह्हा’ ध्वनि निकालें।
- इसके बाद जैसे ही आप इस प्राणायाम में लीन हो जाते हैं और आपका सारा ध्यान आपके सांसों की आवाजाही पर होता है,
- आपकी सांसों से निकलने वाली आवाज पूरी तरह से समुद्र में चलने वाली हवाओं की ध्वनि की तरह होने लगती है।
- अपनी सांसों से आने वाली ध्वनि को महसूस करने की कोशिश करें और अपने मन को शांत रखें।
- इसके बाद अपने फेफड़ों को श्वास के माध्यम से पूरी तरह से भर लें और फिर पूरी तरह से खाली भी कर लें।
- शुरुआत में यह प्राणयाम कम से कम 5 मिनट तक करें और इसके बाद इसे बढ़ाते हुए 15 मिनट तक लेकर जाएं।
भस्त्रिका प्राणायाम
- यह अभ्यास करते समय मुंह बिल्कुल भी न खुले, दोनों नाक के छिद्रों से गहरी सांस लें।
- सांस अंदर लेते समय फेफड़े पूरी तरह से फूलने चाहिए।
- इसके बाद अब एक झटके में दोनों नाक के छिद्रों के माध्यम से भरी हुई सांस को छोड़ना होगा।
- सांस छोड़ने की गति इतनी तीव्र हो कि झटके के साथ फेफड़े सिकुड़ जाएं।
- लेने से लेकर सांस छोड़ने तक भस्त्रिका प्राणायाम का एक चक्र पूरा होता है।
- शुरुआत में इस प्रक्रिया को धीमे-धीमे करते हुए करीब 10 से 12 चक्र पूरे करें।
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शीतली प्राणायाम
- यह प्राणायाम करते समय अपनी जीभ को बाहर की ओर निकालते हुए उसे रोल करें।
- अब धीरे-धीरे सांस अंदर खींचे और इसे कुछ सेकंड के लिए होल्ड करने के बाद फिर सांस छोड़ दें।
- इस प्रक्रिया को दोहराएं।
- यदि आप अपनी जीभ को रोल नहीं कर पाते तो जीभ को ऊपर की ओर ले जाएँ।
- फिर इससे मुंह के ऊपरी हिस्सों को छूएं और सांस अंदर-बाहर लें और छोड़ें।
प्राणायाम के फ़ायदे
- डीप ब्रीदिंग यानी गहरी सांस लेने से ब्लड में आक्सीजन की मात्रा बढ़ जाती है जिससे फेफड़े स्वस्थ रहते हैं।
- शुद्ध रक्त हृदय, मस्तिष्क, फेफड़े एवं नाड़ियों में पहुँचता है।
- नाड़ी शोधन करता है।
- अस्थमा के मरीज़ों को राहत मिलती है ।
- ब्रीदिंग एक्सरसाइज़ करने से ब्लड प्रेशर कंट्रोल में रहता है।
- सांसों पर ध्यान केंद्रित होने पर, बेकार के निगेटिव विचारों कम होते हैं। मन को शांत होता है।
- एकाग्रता बढ़ती है।
- मेमोरी (याददाश्त) बढ़ती है।
- डीप ब्रीदिंग करने से तनाव कम होता है, जिससे ऐंग्जाइटी, डिप्रैशन आदि से काफी हद तक छुटकारा मिलता है।
- अच्छे (हैप्पी) हार्मोनस सिरैटोनिन आदि रिलीज़ होते हैं, जिससे मूड अच्छा रहता है।
- नींद में भी सुधार होता है।
सावधानियाँ
प्राणायाम व आसन किसी योग टीचर की निगरानी में उनकी सलाह पर करना चाहिए।
यदि कोई बीमारी है तो डॉक्टर से सलाह ले लेनी चाहिए।