श्राद्ध के नियमों और अनुशासन में निहित हैं गूढ़ संदेश
पितृपक्ष में हम अपने पितरों को खीर, पूरी, पानी और उनके पसंदीदा व्यंजनों का भोग लगाते हैं। इसके पीछे यही सामान्य सोच है कि पितर तृप्त रहें और धरती पर हमें आशीर्वाद प्रदान करें। पितृपक्ष में पितरों की पूजा और अन्य परंपराओं के पीछे कुछ वैज्ञानिक और सामाजिक संदेश भी निहित हैं।
पौराणिक कथा से सीख
इसके पीछे एक पौराणिक कथा है-
- युद्धभूमि में बेहाल कर्ण प्यास से तड़प रहा था।
- उसने मृत्यु के देवता यमराज से कहा, मुझे पानी दो, कुछ खाने को दो।
- यमराज ने कहा, तुम्हें वही मिलेगा जो तुमने लोगों को दान में दिया है- सोने-चांदी के आभूषण, स्वर्ण मुद्राएँ।
- इस कहानी से यह सीख मिलती है कि किसी को दान दो तो उसकी सबसे बुनियादी जरूरत को पूरा करो।
- भिखारी को पैसे देने की बजाय भोजन दो; क्योंकि भिखारी भूख से बेहाल होने की स्थिति का परिचायक है।
- इसीलिए पितृपक्ष में पितरों को याद करने और उन्हें जरूरी चीजें मुहैय्या कराने की मान्यता है।
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अन्य नियम व परंपराएँ
- पितृपक्ष के साथ और भी कई नियम, परंपराएँ जुड़ी हैं लेकिन इन सभी नियमों और तरीकों में बुनियादी सीख संयम की ही है।
- इन पंद्रह दिनों में आस्थावान हिंदू कोई बड़ा सौदा नहीं करते सोना, चांदी, हीरे मोती, जमीन जैसी कोई बड़ी खरीदी नहीं करते।
- शुभ कामों की शुरूआत को टाल देते हैं।
- ये दिन पूरी तरह से संयम के होते हैं यहां तक कि दैहिक सहवास से भी परहेज किया जाता है।
- पितृपक्ष में देश के कारोबारी बाजारों में सन्नाटा छाया रहता है।
- मांस की खपत हिंदुओं के बीच लगभग न के बराबर हो जाती है।
- इन तमाम नियमों का पितृपक्ष से रिश्ता है।
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अनुशासन, साधना और विज्ञान
- पितृपक्ष अनुशासन और साधना का पखवाड़ा है।
- यह आने वाले नवरात्र के दिनों के लिए पूर्व पीठिका का काम करता है।
- यह पखवाड़ा बाद में नौ दिनों तक व्रत रहने का रिहर्सल है, लेकिन इसके पीछे भी एक विज्ञान है।
- उत्तर भारत में जहां पितृपक्ष के मानने का चलन है, वहां इस पखवाड़े का बहुत सघन वैज्ञानिक रिश्ता सेहत और संतुलित जीवनशैली से है।
- भाद्रपद खत्म होते-होते मौसम करवट लेने लगता है।
- साढ़े तीन महीने की बारिश के बाद मौसम संक्रमणकाल के दौर में पहुंच जाता है।
- दर्जनों संक्रामक बीमारियां माहौल में फल फूल रही होती हैं,
- इसलिए इस पखवाड़े भर के अनुशासन से, गरिष्ठ और तामस भोजन के सेवन से बचने के कारण शरीर का स्नायुतंत्र मजबूत होता है।
- पाचनतंत्र की सेहत सुधरती है और अनुशासन के चलते शरीर में फुर्ती आती है जो तमाम किस्म की बीमारियों से लड़ने की हमें ताकत देती है।
- इस तरह देखा जाए तो पितृपक्ष पुरखों के बहाने अपनी ही चिंता का विषय है।
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कब और कौन करें श्राद्ध?
- जिस मृत पिता के एक से अधिक पुत्र हों और उनमें पिता की धन-सम्पति का बंटवारा नहीं हुआ हो
- और सभी रहते एक ही स्थान पर हों तो ऐसी स्थिति में पिता का श्राद्ध और उसके पितृ कर्म सबसे बड़े पुत्र को ही करना चाहिए।
- सब भाइयों को अलग-अलग नहीं करना चाहिए।
- यदि मृत पिता की सम्पति के बंटवारे के बाद सभी पुत्र अलग हो चुके हों तो सभी को अलग-अलग श्राद्ध करना चाहिए। प्रत्येक सनातनधर्मी को अपने पहले की तीन पीढ़ियों- पिता, दादा और परदादा के साथ ही अपने नाना तथा नानी का भी श्राद्ध अवश्य करना चाहिए।
- इन सभी दिवंगत व्यत्ति की पुण्यतिथि के दिन उनका श्राद्ध करना चाहिए यानी जो तिथि शरीर छोड़ने के समय होती है। यह तिथियां चंद्र दर्शन के अनुसार ही मानी जाती हैं।
- श्राद्ध कर्म उस तिथि को दोपहर तक कर लेना चाहिए।
क्यों करना चाहिए श्राद्ध ?
- पितृपक्ष में किए गए श्राद्ध से पितृगण वर्ष भर संतुष्ट एवं प्रसन्न रहते हैं।
- श्राद्ध में अर्पित किया गया भोजन देवता बने पितरों को अमृत रूप में मिलता है।
- यह भोजन दैत्य बने पितरों को मांस रूप में, प्रेत बनें पितरों को रत्त रूप में मिलता है।
- सर्प बने पितरों को वायु रूप में तथा पशु रूप बने पितरों को घास आदि मिलता है।
- पितृपक्ष में पितर कुशा की नोक पर निवास करते हैं इसी कारण तर्पण करते समय अंगुलियों में धारण किया जाता है।
- जो भी हम तर्पण करते हैं वह इसी कुशा के द्वारा हमारे पितरों को प्राप्त होता है।
- सामान्यतः पुत्र को ही अपने पिता एवं पितामह का श्राद्ध करने का अधिकार है।
- किंतु पुत्र के न होने पर मृतक की पत्नी या उसके भी न होने पर पुत्री का पुत्र भी श्राद्ध कर सकता है।
- दत्तक पुत्र को भी श्राद्ध करने का अधिकार है।
- वंश में कोई पुरुष न होने की दशा में शास्त्रों में स्त्रियों को भी श्राद्ध करने का अधिकार दिया है।
- गरुड़ पुराण के अनुसार जिनके कुल में कोई भी न हो वह जीवित अवस्था में स्वयं अपना श्राद्ध कर सकता है।
- अमावस्या को पितृ विर्सजनी अमावस्या तथा महालय भी कहा जाता है।
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कहां करें श्राद्ध ?
- पितरों के श्राद्ध के लिए गया, हरिद्वार और बद्रीनाथ को अंतिम श्राद्ध के रूप में सर्वेत्तम माना गया है।
- माता के श्राद्ध के लिए काठियावाड़ में सिद्धपुर को फलदायक माना गया है।
- इसे मात्र गया के नाम से भी जाना जाता है।
- बद्रीनाथ धाम में श्राद्ध करने से हर वर्ष श्राद्ध करने की आवश्यकता नहीं रहती।
- श्राद्ध करने वाला परिवार सदा के लिए पितृऋण से मुक्त हो जाता है।
कैसे करें श्राद्ध
- श्राद्ध के लिए भोजन तैयार होने पर एक थाली में पांच जगह थोड़ा-थोड़ा सभी तरह का पका हुआ भोजन परोसें।
- हाथ में जल, अक्षत, पुष्प चंदन, लेकर पंचबली के लिए संकल्प करना चाहिए।
- पंचबली निकालकर कौवे के लिए निकाला गया अन्न कौवे को, कुत्ते का अन्न कुत्ते को तथा अन्य सभी अन्न गाय को देना चाहिए।
- इसके बाद ब्राह्मण को भोजन करना चाहिए।
- ब्राह्मण को भोजन कराने के पश्चात उन्हें अन्न, वत्र, दक्षिणा आदि देकर चरण स्पर्श करना चाहिए।
- श्राद्ध के लिए शालीन, श्रेष्ठ गुणों से युक्त शास्त्रों के ज्ञाता तथा तीन पीढ़ियों से यह काम कर रहे ब्राह्मण का ही चयन करना चाहिए।
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यह लेख सामान्य ज्ञान पर आधारित है। परंपराओं और मान्यताओं में क्षेत्र, काल, भाव के अनुसार विविधता हो सकती है।
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