
पर्युषण पर्व जैन धर्म के प्रमुख त्योहारों में से एक है। इसमें श्वेतांबर जैन समाज में पर्युषण महापर्व आठ दिनों तक चलने वाला त्योहार है, जबकि दिगंबर जैन समाज का दसलक्षण पर्युषण महापर्व के रूप में 10 दिनों तक मनाया जाता है। यह पर्व क्षमा, आत्म नियंत्रण और आत्मा की शुद्धि का प्रतीक माना जाता है। श्वेतांबर जैन समुदाय में इस त्योहार की शुरुआत 20 अगस्त से हो चुकी है और दिगंबर संप्रदाय के लोग 28 अगस्त से 6 सितंबर तक पर्यूषण पर्व मनाएंगे।
जैन धर्म के अनुयायियों के लिए पर्युषण पर्व आत्मनिरीक्षण, तपस्या और संयम की अवधि के रूप में मनाया जाता है। इसमें वे अपने मन, वचन और कर्म की शुद्धि करते हैं। पर्यूषण के शाब्दिक अर्थ को ‘अपने भीतर ठहरना’ से जोड़ा जाता है। धार्मिक मान्यताओं के मान्यताओं के अनुसार, इसका उद्देश्य इंद्रियों और इच्छाओं को नियंत्रित कर आत्मा की शुद्धि के लिए काम करना है।
इस पर्व का अंतिम दिन सबसे अहम होता है, जिसे संवत्सरी कहते हैं। इस दिन जैन धर्म के अनुयायी एक दूसरे से ‘मिच्छामी दुक्कड़म’ कहते हैं। इसका अर्थ है, ‘अगर मैंने जाने अनजाने में आपको दुख पहुंचाया हो, तो उसके लिए मैं आपसे क्षमा चाहता हूं।’ माना जाता है कि ये पर्व एक दूसरे के प्रति मन में आए वैर भाव को खत्म कर मेल-मिलाप करने और बीती बातें भुलाकर आगे बढ़ने की सीख देता है।
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पांच मुख्य सिद्धांतों का करते हैं पालन/follows five core principles
पर्यूषण पर्व के दौरान जैन धर्म के अनुयायी पांच मुख्य सिद्धांतों का पालन करते हैं। इन सिद्धांतों के पालन का मकसद आत्मा की शुद्धि और मोक्ष की प्राप्ति की ओर बढ़ना होता है।
- अहिंसा: किसी भी जीवित प्राणी को शारीरिक या मानसिक रूप से नुकसान न पहुंचाना।
- सत्य: हमेशा सच बोलना।
- अस्तेय (अचौर्य): चोरी न करना।
- ब्रह्मचर्य: आत्म-नियंत्रण और संयम का पालन करना।
- अपरिग्रह: सांसारिक वस्तुओं के प्रति आसक्ति (प्रेम) का त्याग करना।
10 दिनों के महापर्व की ये हैं मान्यताएं/These are the beliefs of the 10-day grand festival

- पहला दिन- पहला दिन क्रोध को खुद से दूर रखने पर आधारित है। किसी बात पर क्रोध आने पर भी, उसे धैर्य और शांति से नियंत्रित करना चाहिए।
- दूसरा दिन- व्यवहार में मधुरता और पवित्रता लाने की कोशिश की जानी चाहिए। इस दौरान मन में किसी के प्रति द्वेष या घृणा का भाव नहीं रखना चाहिए।
- तीसरा दिन- महापर्व के तीसरे दिन अपने लक्ष्यों को पाने की अहमियत पर ध्यान देने की सीख मिलती है।
- चौथा दिन- इस दिन कम बोलने की कोशिश करना चाहिए और जो भी बोलें उसमें अपनी वाणी पर संयम रखने का प्रयास करें।
- पांचवें दिन- मन में लालच या स्वार्थ आने से दूर रहना चाहिए, निस्वार्थ भाव से जीना चाहिए।
- छठा दिन- मन पर नियंत्रण रखते हुए संयम और धैर्य से काम लेना चाहिए।
- सातवें दिन- इस दिन मन के नकारात्मक विचारों को दूर करने के लिए खुद में संयम रखने की कोशिश करनी चाहिए।
- अष्टमी दिन- इस दिन जरूरतमंद लोगों को ज्ञान, भोजन जैसी जरूरी चीजों का दान करना चाहिए।
- नौवें दिन- स्वार्थ नहीं नि:स्वार्थ भाव से जीवन जीना चाहिए।
- दसवें दिन- इस दिन अच्छे गुणों को अपनाना और अपना मन शुद्ध रखना चाहिए।
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