जैन धर्मावलंबियों का महापर्व होता है पर्युषण पर्व। यह एक ऐसा पर्व है जब जैन धर्म को मानने वाले सभी लोग अपने जीवन पर चिंतन करते और उन लोगों से क्षमा मांगते हैं जिनके साथ उन्होंने गलत किया है। यह पर्व जैन धर्म के दिगंबर और श्वेतांबर दोनों संप्रदायों द्वारा मनाया जाता है। इस साल 31 अगस्त से 7 सितंबर तक पर्युषण पर्व मनाया जाएगा।
महत्वपूर्ण पर्व है पर्युषण पर्व /Is it an important festival or a Paryushan festival
पर्युषण पर्व जैन धर्म के सबसे महत्वपूर्ण पर्व में से एक है। जिस समय भगवान महावीर ने शिक्षा दी थी, उस समय पर्यूषण पर्व मनाया जाता है। इस समय जैन समाज के लोग पूरे भक्ति भाव के साथ अभिषेक, पूजा अर्चना, अराधना, तप, ध्यान आदि करते हैं। इस पर्व के दौरान जैन धर्म को मानने वाले लोग आत्मशुद्धि का प्रयास करते हैं। माना जाता है कि सालभर सांसारिक क्रिया-कलापों की वजह से उनके जीवन में जो भी दोष, त्रुटि आदि आ जाते हैं, उन्हें इस पर्व के दौरान दूर किया जाता है। पर्युषण का शाब्दिक अर्थ चारों ओर से धर्म की आराधना करना होता है। पर्युषण पर्व धार्मिक आस्था के साथ मनाया जाने वाला महापर्व है।
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दशलक्षण पर्व के दौरान इन जिनालयों में धर्म प्रभावना की जाती है:
कुंदलपुर, मध्य प्रदेश/ Kundalpur, Madhya Pradesh
मध्य प्रदेश का कुंदलपुर जैन धर्म का एक प्रमुख तीर्थ स्थल है। सतपुरा की पहाड़ी पर बसे कुंदलपुर में कई जैन धर्म के कई मंदिर भी मौजूद है। इसके साथ ही इस मंदिर में मौजूद है जैन धर्म के संस्थापक की सबसे ऊंची मूर्ति, जिन्हें ऋषभनाथ, आदिनाथ आदि नामों से जाना जाता है। इस मूर्ति की ऊंचाई करीब 15 फीट है, जिसे स्थानीय लोग बड़े बाबा के नाम से पुकारते हैं। बड़े बाबा का मंदिर कुंदलपुर का सबसे पुराना मंदिर है।
हनुमंतल, मध्य प्रदेश/ Hanumantal Jain Mandir, Jabalpur
मध्य प्रदेश के जबलपुर में मौजूद है हनुमंतल। यहां भी जैन मंदिर का बड़ा समूह मौजूद है। इस शहर का मुख्य जैन मंदिर हनुमंतल बड़ा जैन मंदिर है, जिसके बारे में दावा किया जाता है कि यह भारत में मौजूद अपनी तरह का सबसे बड़ा मंदिर भी है। इस मंदिर में कुल 22 शिखर और कई कमरें हैं जिनमें जैन तिर्थंकरों की मूर्तियां और तस्वीरें सजायी हुई हैं। ये सभी तस्वीरें मुगल, मराठा और ब्रिटिश शासनकाल की हैं। किलेनुमा यह मंदिर देश का एकमात्र मंदिर है, जहां जैन देवी पद्मावती की प्रतिमा स्थापित है। यहां से हर साल महावीर जयंती का जुलूस निकलता है। हनुमंतल में करीब 30 जैन मंदिर मौजूद हैं, जिनमें बहुरिबंद, बड़ा फुहारा और लॉर्डगंज भी शामिल हैं।
धर्मनाथ जैन मंदिर, कर्नाटक/ Dharmanath Jain Derasar ,karnataka
कर्नाटक का धर्मनाथ जैन मंदिर जैन धर्म के 15वें तीर्थंकर धर्मनाथ को समर्पित एक प्रसिद्ध तीर्थस्थल है। यह मंदिर कर्नाटक के श्रवणबेलगोला में मौजूद है। इतिहासकारों का कहना है कि चंद्रगुप्त मौर्य की श्रवणबेलगोला की यात्रा के बाद जैन दक्षिणी राज्य में आए। इसके बाद ही यह एक प्रसिद्ध जैन तीर्थ स्थल बन गया। यहां से तीर्थयात्री दक्षिण की ओर आगे बढ़े, और जैन धर्म का संदेश केरल और तमिलनाडु में भी फैलाया।
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पालीताना गुजरात/ Palitana Gujarat:
गुजरात के भावनगर में मौजूद शत्रुन्जय पहाड़ी पर मौजूद है पालीताना। यह जैन धर्म का बड़ा तीर्थ स्थल है जहां पहाड़ी पर करीब 3000 जैन मंदिर स्थित हैं। यहां सभी मंदिरों का निर्माण साल-दर-साल हुआ है। लेकिन सबसे पुराना मंदिर करीब 11वीं शताब्दी में बना बताया जाता है। इन मंदिरों तक पहुंचने के लिए जैन धर्मावलंबियों को लगभग 3,800 पत्थर की सीढ़ियां चढ़नी पड़ती है। श्वेतांबर जैन को समर्पित पालिताना के विषयम में कहा जाता है कि यहां तिर्थंकर आदिनाथ ने ध्यान किया था। गुजरात का पालिताना भारत का एकमात्र ऐसा शहर भी है, जहां नॉन-वेज भोजन प्रतिबंधित है।
नेमिनाथ देरासर / Neminath Derasar:
गुजरात नेमिनाथ देरासर गुजरात के सबसे ऊंचे स्थान गिरनार पर्वत पर स्थित है। विशाल गिर वन के बीच में स्थित गिरनार को हिंदुओं के साथ-साथ जैनियों द्वारा भी पवित्र माना जाता है। इस पहाड़ी की चोटी पर कई जैन मंदिर हैं, लेकिन नेमिनाथ देरासर को सबसे प्रसिद्ध माना जाता है। 22वें तीर्थंकर नेमिनाथ को समर्पित इस मंदिर में दर्शन करने के लिए काफी संख्या में भक्त आते रहते हैं। नेमिनाथ उन चार तीर्थंकरों में से एक हैं जो तीर्थयात्रियों के बीच सबसे अधिक भक्ति और श्रद्धा के बारे में बात किया करते थे। कहा जाता है कि गिरनार वहीं स्थान है जहां नेमिनाथ ने 1,000 वर्ष के जीवन के बाद मोक्ष प्राप्त किया था।
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जैन समाज में पयुर्षण पर्व/paryushan festival in jain community
दशलक्षण पर्व के प्रथम दिन उत्तम क्षमा,
दूसरे दिन उत्तम मार्दव,
तीसरे दिन उत्तम आर्जव,
चौथे दिन उत्तम सत्य,
पांचवें दिन उत्तम शौच,
छठे दिन उत्तम संयम,
सातवें दिन उत्तम तप,
आठवें दिन उत्तम त्याग,
नौवें दिन उत्तम आकिंचन
दसवें दिन ब्रह्मचर्य
अंतिम दिन क्षमावाणी के रूप में मनाया जाएगा।
दशलक्षण के 10 पर्व / 10 festivals of dashalakshan
1. क्षमा– सहनशीलता। क्रोध को पैदा न होने देना। क्रोध पैदा हो ही जाए तो अपने विवेक से, नम्रता से उसे विफल कर देना। अपने भीतर क्रोध का कारण ढूंढना, क्रोध से होने वाले अनर्थों को सोचना, दूसरों की बेसमझी का ख्याल न करना। क्षमा के गुणों का चिंतन करना।
2. मार्दव– चित्त में मृदुता व व्यवहार में नम्रता होना।
आर्जव– भाव की शुद्धता। जो सोचना सो कहना। जो कहना सो करना।
4. शौच– मन में किसी भी तरह का लोभ न रखना। आसक्ति न रखना। शरीर की भी नहीं।
5. सत्य– यथार्थ बोलना। हितकारी बोलना। थोड़ा बोलना।
6. संयम– मन, वचन और शरीर को काबू में रखना।
7.तप– मलीन वृत्तियों को दूर करने के लिए जो बल चाहिए, उसके लिए तपस्या करना।त्याग- पात्र को ज्ञान, अभय, आहार, औषधि आदि सद्वस्तु देना।
9. अकिंचनता– किसी भी चीज में ममता न रखना। अपरिग्रह स्वीकार करना।
10. ब्रह्मचर्य– सद्गुणों का अभ्यास करना और अपने को पवित्र रखना।
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पयुर्षण पर्व को जैन धर्म में सभी पर्वों का ‘राजा’ माना जाता है। इस पर्व की विशेष महत्ता के कारण ही इस पर्व को ‘राजा’ कहा जाता है। इसीलिए यह पर्व का जैन धर्मावलंबियों के लिए बहुत महत्व है, क्योंकि यह पर्व समाज को ‘जिओ और जीने दो’ का संदेश देता है। भगवान महावीर स्वामी के मूल सिद्धांत अहिंसा परमो धर्म, जिओ और जीने दो की राह पर चलना सिखाता है तथा मोक्ष प्राप्ति के द्वार खोलता है।
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