
“पकाओ कम, खाओ ज्यादा” की जीवनशैली का उदय (The Rise of “Cook Less, Eat More” Lifestyle)
आजकल, भारतीय समाज में एक नई जीवनशैली तेजी से पनप रही है, जिसे हम “पकाओ कम, खाओ ज्यादा” कह सकते हैं। यह जीवनशैली खासकर शहरों में रहने वाले कामकाजी लोगों के बीच लोकप्रिय हो रही है। दिल्ली जैसे महानगरों में युवा कामकाजी लोग अब खाना बनाने के बजाय बाहर से खाना मंगवाने या बाहर खाने की आदत बना रहे हैं। ऐसे लोगों में एक आम सोच है कि खाना पकाने के बजाय बाहर से खाना मंगवाने से उनका समय बचता है, जिससे वे अपने काम में ज्यादा उत्पादक हो सकते हैं।
दिवाकर और रजत का उदाहरण (The Example of Divakar and Rajat)
बिहार के दिवाकर और हरियाणा के रजत जैसे युवाओं का उदाहरण लें, जो दिल्ली में रूम शेयर करते हैं। दोनों का ही मानना है कि खाना बनाना समय की बर्बादी है। इन दोनों ने अपने कमरे में सिर्फ चाय बनाने और मैगी बनाने की व्यवस्था की है। इसके अलावा, वे बाहर से खाना मंगवाते हैं या फिर ऑफिस के पास स्थित फूड कोर्ट्स में खाना खाते हैं। ऐसा केवल इन दोनों का मामला नहीं है, बल्कि यह आदत देशभर के बड़े शहरों में आम होती जा रही है।

महानगरों में बढ़ती खाना बाहर खाने की आदत (The Growing Habit of Eating Out in Metros)
आजकल बड़े शहरों जैसे दिल्ली, मुंबई, बेंगलुरू, और हैदराबाद में कामकाजी युवाओं के बीच बाहर खाने की आदत तेजी से बढ़ रही है। हॉस्टल, पेइंग गेस्ट्स, और अकेले रहने वाले छात्र ही नहीं, बल्कि ऑफिस जाने वाले लोग भी घर से खाना नहीं ले जाते। इसके पीछे की वजह यह है कि वे अपना समय बचाना चाहते हैं ताकि उनका कार्यक्षमता में कोई कमी न हो। खासकर लंच और डिनर के वक्त, जब लोग घर पर खाना बनाने की बजाय बाहर का खाना पसंद करते हैं, तो उनका मानना होता है कि इससे उनका काम प्रभावित नहीं होगा।
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खाने के प्रकार और फूड कोर्ट्स (Food Types and Food Courts)
आजकल के ऑफिस एरिया में फूड कोर्ट्स और फूड स्ट्रीट्स बड़े पैमाने पर बन रहे हैं। इन जगहों पर बर्गर, फ्रेंचफ्राई, मैगी, नूडल्स, छोले भटूरे, डोसा, परांठा, बिरयानी, फ्राइड चिकन, और मोमो जैसे लोकप्रिय खाद्य पदार्थ आसानी से मिल जाते हैं। यही कारण है कि लोग इन आउटलेट्स में खाने के लिए खिंचे चले आते हैं। लंच के समय कामकाजी लोग बाहर खाना खाने के लिए इन जगहों पर जुट जाते हैं। इस बढ़ती आदत ने अब डब्बेवाले जैसे पारंपरिक व्यवसायों को भी नुकसान पहुंचाया है। मुंबई जैसे शहर में जहां पहले लाखों डब्बेवाले थे, अब उनकी संख्या बहुत कम हो गई है।
इस आदत के संभावित नुकसान (Potential Drawbacks of This Habit)
हालांकि यह आदत बहुत ही आकर्षक लग सकती है, लेकिन इसके कई नुकसान भी हैं। विशेषज्ञों का कहना है कि बाहर से बार-बार खाना खाने से कई शारीरिक समस्याएं उत्पन्न हो सकती हैं।
- पाचन समस्याएं (Digestive Issues)
बार-बार बाहर का खाना खाने से कब्ज, गैस, अपच जैसी समस्याएं बढ़ सकती हैं। वहीं, कुछ लोग तो साल में एकाध बार फूड प्वाइजनिंग का भी शिकार हो जाते हैं।
- स्वास्थ्य पर असर (Health Impact)
डॉक्टरों के अनुसार, इस तरह के खानपान से शरीर की रोग प्रतिरोधक क्षमता कम हो जाती है, और व्यक्ति छोटी-मोटी बीमारियों का शिकार हो सकता है। उच्च कैलोरी वाले, तले-भुने खाद्य पदार्थों का अधिक सेवन सेहत के लिए हानिकारक हो सकता है।
- मोटापा और अन्य बीमारियां (Obesity and Other Diseases)
आदत से बाहर का भोजन खाने से मोटापा, डायबिटीज, हृदय रोग और अन्य lifestyle-related बीमारियां हो सकती हैं। जैसे कि मनोज का उदाहरण लिया जाए, जो दो साल की नौकरी में अच्छे खासे एथलीट थे, लेकिन अब उनका पेट निकल आया है। वही हाल साहिल का है, जिसे सहकर्मियों के बीच “मोटू” के नाम से जाना जाता है।
- कार्य दक्षता में कमी (Reduced Work Efficiency)
लंच के बाद, खासकर तला-भुना भोजन खाने से, कर्मचारियों में सुस्ती और उबासी आने की समस्या आम है। इससे कार्य दक्षता और निर्णय लेने की क्षमता पर भी प्रभाव पड़ता है। लंच के बाद मीटिंग्स में अधिकतर लोग ऊर्जावान और चुस्त नहीं दिखते।
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कंपनियों पर प्रभाव (Impact on Companies)
कामकाजी लोगों की यह आदत न केवल उनके स्वास्थ्य पर असर डाल रही है, बल्कि कंपनियों पर भी इसके दूरगामी प्रभाव हो रहे हैं। अनुमान है कि कंपनियों को हर साल 142 अरब डॉलर से ज्यादा का नुकसान हो रहा है, क्योंकि कामकाजी लोग बाहर से खाना खाने के कारण मोटापे और अन्य स्वास्थ्य समस्याओं से ग्रस्त हो रहे हैं। यह कंपनियों को अतिरिक्त खर्च का कारण बन रहा है, और कार्य दिवसों की हानि भी हो रही है।

कैसे रखें अपनी सेहत का ध्यान (How to Maintain Health)
इस बढ़ती आदत को देखते हुए, यह जरूरी है कि लोग समझें कि बाहर का खाना हमेशा सेहतमंद नहीं होता। बेहतर होगा कि कम से कम सप्ताह में कुछ दिन घर का बना खाना खाया जाए। यदि बाहर का खाना खा रहे हैं, तो उसे संतुलित और कम मसालेदार चुनें। इसके अलावा, लंच के साथ जूस, लस्सी, छाछ, सूप, या सलाद जैसी स्वस्थ चीजें भी खा सकते हैं।
निष्कर्ष (Conclusion)
कामकाजी जीवनशैली और तेजी से बदलते खानपान के रुझान से यह स्पष्ट होता है कि “पकाओ कम, खाओ ज्यादा” का चलन सिर्फ आराम और समय बचाने की आदत नहीं, बल्कि एक बड़ी समस्या बनती जा रही है। इससे न केवल शारीरिक स्वास्थ्य पर असर पड़ता है, बल्कि कार्यक्षमता पर भी प्रभाव डालता है। ऐसे में, यह जरूरी है कि हम अपने खाने की आदतों को संतुलित और स्वास्थ्यप्रद बनाएं, ताकि हम न केवल खुद का भला कर सकें, बल्कि अपने पेशेवर जीवन और कार्यकुशलता को भी सुधार सकें।
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