
नरक चतुर्दशी का महत्व और तिथि
नरक चतुर्दशी, जिसे छोटी दिवाली, काली चौदस, रूप चौदस, और रूप चतुर्दशी के नाम से भी जाना जाता है, दीपावली से एक दिन पूर्व और धनतेरस के एक दिन बाद मनाई जाती है। यह पर्व अश्विन माह के कृष्ण पक्ष की चतुर्दशी तिथि को पड़ता। यह पर्व बुराई पर अच्छाई की विजय का प्रतीक है, और माना जाता है कि इस दिन श्रीकृष्ण ने राक्षस नरकासुर का वध किया था। यह दिन हमें हमारे जीवन से आलस्य, अज्ञानता और दुष्ट विचारों को निकाल फेंकने की प्रेरणा देता है, ताकि हम शुद्ध मन से दीपावली का स्वागत कर सकें।
परंपराएँ और अभ्यंग स्नान की रस्में
नरक चतुर्दशी का सबसे महत्वपूर्ण अनुष्ठान है – अभ्यंग स्नान। इस दिन सूर्योदय से पहले उठकर विशेष उबटन या स्नान सामग्री से शरीर को स्नान कराया जाता है। यह उबटन आमतौर पर तिल के तेल, जड़ी–बूटियों, फूलों और अन्य शुभ तत्वों से तैयार किया जाता है। मान्यता है कि इस स्नान से शरीर और आत्मा की शुद्धि होती है, और जो इस दिन स्नान नहीं करता, वह जीवन में नकारात्मकता से घिरा रहता है।
अभ्यंग स्नान का शुभ मुहूर्त:
- स्नान की अवधि: 1 घंटा 28 मिनट (सूर्योदय से पूर्व)
- इस समय स्नान करने से पापों का नाश और पुण्य की प्राप्ति होती है।
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पूजा सामग्री:
पूजा में उपयोग की जाने वाली वस्तुएं हैं – तिल का तेल, फूल, कपूर, नारियल, दीपक, अगरबत्ती, मिठाई और आरती थाली। पूजा के बाद लोग नये वस्त्र पहनते हैं, आंखों में काजल लगाते हैं, और बुरी दृष्टि से रक्षा के लिए विशेष उपाय करते हैं।
इस दिन विशेष रूप से देवी काली माता की आराधना भी की जाती है, जिनके द्वारा नरकासुर जैसे असुरों का विनाश हुआ। तांत्रिक साधना करने वालों के लिए यह दिन अत्यंत शुभ माना गया है, क्योंकि यह दिन उनकी साधनाओं को और अधिक शक्ति प्रदान करता है।
शाम को लोग अपने घरों में दीप जलाते हैं, और परिवार के साथ पटाखे छोड़ने तथा मिष्ठान्न भोजन का आनंद लेते हैं।
नरक चतुर्दशी से जुड़ी पौराणिक कथाएँ
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श्रीकृष्ण और नरकासुर की कथा:
पौराणिक मान्यता के अनुसार, नरकासुर नामक राक्षस ने 16,000 कन्याओं को बंदी बना रखा था। भगवान श्रीकृष्ण ने उसकी सेना को पराजित कर नरकासुर का वध किया और सभी कन्याओं को मुक्त कराया। उसी दिन की स्मृति में नरक चतुर्दशी मनाई जाती है, जो बुराई पर अच्छाई की विजय का प्रतीक है।
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राजा रंतीदेव की कथा:
प्राचीन काल में राजा रंतीदेव नामक एक धर्मात्मा राजा थे। उन्होंने अपना जीवन धार्मिक कार्यों में लगाया था। लेकिन एक बार उन्होंने एक भूखे ब्राह्मण को द्वार से लौटा दिया। मृत्यु के देवता यमराज जब उन्हें नरक ले जाने आए, तो राजा ने पूछा, “मैंने तो कोई पाप नहीं किया, फिर नरक क्यों?”
यमराज ने बताया कि ब्राह्मण को भोजन न देना उनका पाप था। राजा ने एक वर्ष का समय मांगा, जिसे यमराज ने स्वीकार कर लिया। राजा ने तपस्वियों की सलाह पर नरक चतुर्दशी के दिन व्रत, स्नान, और दान किया और अपने पापों से मुक्त हो गया।
इस कथा से यह संदेश मिलता है कि नरक चतुर्दशी आत्मशुद्धि और पश्चाताप का दिन है, जब व्यक्ति अपने पापों से मुक्ति पा सकता है।

निष्कर्ष: आत्मशुद्धि और नई शुरुआत का पर्व
नरक चतुर्दशी केवल एक धार्मिक रस्म नहीं, बल्कि आत्मशुद्धि, आत्मावलोकन और सकारात्मक जीवन की शुरुआत का पर्व है। यह पर्व हमें याद दिलाता है कि दीपावली की असली तैयारी केवल घर को सजाना नहीं, बल्कि मन और आत्मा को भी पवित्र करना है।
इस दिन उबटन और स्नान, भक्ति और पूजा, और अच्छे कर्मों का संकल्प व्यक्ति को जीवन की नकारात्मकता से दूर करते हैं। जब हम अपने भीतर की बुराई को दूर करते हैं, तभी सच्चे रूप में रोशनी का पर्व दीपावली हमारे जीवन में उजाला भरता है।
इस नरक चतुर्दशी, आइए हम सभी नकारात्मक भावनाओं, ग़लतियों और मानसिक आलस्य को त्यागें और एक नई रोशनी की ओर कदम बढ़ाएं।
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आप सभी को नरक चतुर्दशी की हार्दिक शुभकामनाएं!
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