Thursday, September 19, 2024
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नकारात्मकता है एक भ्रम Negativity is an Illusion

नकारात्मकता समुद्र की लहरों के समान उठती रहती है

नकारात्मकता है एक भ्रम

जीवन भर मनुष्य सकारात्मकता और नकारात्मकता में समुद्र की लहरों के समान उठता और गिरता रहता है। लेकिन यदि वो समुद्र के जल की तरह भाप बनकर ऊपर उठ जाए तो बादल के रूप में बरसकर सृष्टि की प्यास बुझा सकता है। नकारात्मकता एक भ्रममात्र है।

प्रत्येक गुण है उत्थान के लिए

  • आसक्ति, मोह, क्रोध और लोभ आदि को सामान्य रूप से हम नकारात्मक गुण मानते हैं।
  • जबकि परमात्मा ने हमें प्रत्येक गुण केवल हमारे उत्थान के लिए दिया है।
  • भगवान ने हमको हर प्रकार से बहुत ही सक्षम बनाया है।
  • सबसे पहले आत्मा, फिर बुद्धि, फिर मन, फिर इंद्रियां और अंत में शरीर पर ध्यान देना चाहिए।
  • लेकिन अज्ञानतावश हम सबसे पहले और ज्यादा शरीर पर ध्यान देते हैं। दुनियादारी में हमारा पहला ध्यान होता है शरीर पर, फिर इंद्रियों और उसके विषयों पर।
  • उसके बाद मन, बुद्धि और अंत में आत्मा पर हमारा ध्यान होता है।
  • अज्ञानतावश सारा जीवन हम मन के मना करने पर भी शरीर की आवश्यकताओं की पूार्ति में लगे रहते हैं।
  • अपनी बुद्धि को भी शरीर तथा संसार में ही लगाए रखते हैं।
  • आत्मा की ओर कभी हमारा ध्यान जाता ही नहीं है।
  • यही नकारात्मकता है।

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नैसर्गिक गुणों की दिशा करें सही

  • सभी धर्म, गुरु और शास्त्र कहते हैं कि मनुष्य को मोह नहीं करना चाहिए।
  • लेकिन मोह, आसक्ति, क्रोध और लोभ आदि तो हमारे मन के नैसार्गिक गुण हैं।
  • यदि हम संसार और सांसारिक विषयों से आसक्ति हटाकर भजन, कीर्तन या सत्संग में लगा लेते हैं।
  • तब हमारा यह गुण सार्थक हो जाता है।
  • अन्यथा हम जीवनभर आसक्ति जैसे धूम्रपान, मद्यपान आदि से छुटकारा पाने के उपाय करते रहते हैं।
  • और आसक्ति बार-बार हमारे ऊपर हावी होती रहती है।
  • इसी प्रकार हमारा मोह परिवार के सदस्यों या वस्तुओं में होने पर हम उनकी सलामती के बारे में चिंतित रहते हैं।
  • और थोड़ा भी कुछ हो जाने पर विचलित हो जाते हैं।
  • जब हम ज्ञान और ध्यान से मोह करने लगते हैं तब हमारी व्याकुलता परमात्म मुखी हो जाती है।
  • यह हमें मोहजाल में फंसने से बचाती है और मोह के मधुर रस का पान कराती है।

ज्ञान से करें मोह

  • शरीर, मन और इंद्रियों से मोह की अपेक्षा बुद्धि यानी ज्ञान से मोह करें।
  • इससे आपके भीतर आत्मज्ञान की तड़प होगी, जो आपका कल्याण करेगी।
  • लोगों के आचार-व्यवहार से दुःखी होकर क्रोध करने से बचें।

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क्रोध पर क्रोध करें

  • और क्रोध के ऊपर ही क्रोध करें कि तू हमें क्यों विचलित कर रहा है तो  क्रोध भी सही दिशा में काम करने लगेगा।
  • मन में क्रोध आने पर मन को कहें कि तू इधर-उधर क्यों जा रहा है?
  • लोगों से अपेक्षाएं और आशाएं क्यों करता है? आत्मा, चेतना या ब्रह्म पर ध्यान दे।
  • लोभ का अर्थ है और अधिक पाने की इच्छा करना।
  • संसार में जो कुछ जितना भी हमारे पास है, उससे संतुष्ट न होना।

गुरु दर्शन का करें लोभ

  • अगर यही लोभ संत या गुरु के दर्शन, शरण और चरण से हो जाए तो मानव जीवन सार्थक हो जाएगा।
  • जैसे संसार में लोभ का कोई अंत नहीं होता है, वैसे ही आध्यात्मिक लोभ हमें उस अनंत से मिला देता है।
  • आध्यात्मिक लोभ का अर्थ है- सत्संग का कोई अवसर न चूकना।
  • गुरु सान्निध्य का पूरा-पूरा लाभ उठाना, ब्रह्म में स्थित होने के लिए सदा प्रयास करना।
  • आध्यात्मिकता का लोभी ही आध्यात्मिक योगी है।
    परमात्मा ने हमें सभी गुण उस परम आत्मा में स्थित होने के लिए दिए।
  • लेकिन अज्ञानतावश हमने उन्हें इस संसार में लगा दिया।
  • सांसारिक नकारात्मकता-सकारात्मकता में उलझकर न केवल हम जीवन भर परेशान रहते हैं,
  • बल्कि आवागमन के चक्र से भी मुक्त नहीं हो पाते हैं। अभी भी देर नहीं हुई है।
  • हमें अपनी हर क्रिया, हर विचार, हर भावना और हर गुण को आध्यात्मिकता की ओर उन्मुख करना है।
  • ताकि हम मुक्त होकर उसके सम्मुख जा सकें। क्योंकि नकारात्मकता एक भ्रम है।

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