
भरी जवानी में जब यौवन उफान मार रहा हो तब शादी करके अपने पति के साथ हनीमून पर जाना हर जवान लड़की की ख़्वाहिश होती है |
नीलम के लिए ये पंद्रह दिन किसी इम्तिहान से कम नहीं थे।
हर दिन नंदिता की यादों में बीतता और हर रात उसकी चिंता में। नई ज़िंदगी, नया घर, नए रिश्ते क्या नंदिता सबके साथ ठीक से घुल-मिल पाई होगी? क्या वो खुश होगी? ये सवाल नीलम को अंदर से परेशान कर रहे थे।
जब नंदिता के हनीमून से लौटने की खबर मिली तो नीलम का दिल खुशी से झूम उठा। उन्होंने तुरंत नंदिता को फोन किया।
“नंदिता! तुम आ गई? अब जल्दी से बताओ कैसी हो? कैसे हैं सब लोग? मालदीव में क्या-क्या देखा? ससुराल वाले कैसे हैं?”
नंदिता ने शांत स्वर में जवाब दिया “मम्मी, मैं ठीक हूं। अभी परिवार के साथ बैठी हूं। थोड़ा समय बाद आपसे बात करती हूं।”
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उसकी आवाज़ में ठहराव था जैसे वो कुछ छिपाने की कोशिश कर रही हो। नीलम के मन में बेचैनी बढ़ गई।
नीलम फोन रखते ही बेचैन हो गईं। नंदिता की आवाज़ उनके कानों में गूंज रही थी। वो ठहराव वो दूरी कुछ तो ऐसा था जो उन्हें समझ नहीं आ रहा था। उन्होंने अपने पति विजय को अपनी चिंता बताई।
“देखो जी नंदिता ठीक नहीं लग रही। उसने मुझसे ढंग से बात भी नहीं की।”
विजय ने समझाने की कोशिश की “नीलम वो नई ज़िंदगी में ढल रही है। सबके साथ एडजस्ट कर रही होगी। उसे समय दो।”
लेकिन मां का दिल कहां मानता है? नीलम रातभर करवटें बदलती रहीं। उनके मन में कई सवाल थे क्या नंदिता को ससुराल में कोई दिक्कत है? क्या वो खुश नहीं है?
नई ज़िंदगी की नई चुनौतियाँ
नंदिता ससुराल की नई ज़िंदगी में खुद को ढालने की कोशिश कर रही थी। हनीमून की खूबसूरत यादें उसके मन में थीं, लेकिन ससुराल की जिम्मेदारियां और अपेक्षाएं उसे हर दिन नई चुनौती दे रही थीं।
उसके पति अभिषेक उसे हर कदम पर सहारा देते थे। लेकिन नंदिता का मन कभी-कभी अपने मायके की निश्चिंतता को याद करने लगता। उसे मां के साथ बिताए पल और उनका निःस्वार्थ प्यार बहुत याद आता।
उसने महसूस किया कि उसकी सास, कविता देवी, उसे अपनाने की कोशिश तो कर रही थीं, लेकिन उनका स्वभाव थोड़ा सख्त था। नंदिता हर बात को संभालने की कोशिश करती लेकिन कभी-कभी उसे लगता कि वो कहीं न कहीं असफल हो रही है।
कविता देवी धीरे-धीरे नंदिता को समझने लगी थीं। उन्हें पता था कि नंदिता एक अलग परिवेश से आई है और उसे समय की जरूरत है। लेकिन उनका सख्त स्वभाव अक्सर उनके इरादों को जाहिर नहीं होने देता।
नीलम, दूसरी ओर, नंदिता की सास को लेकर चिंतित रहती थीं। उन्हें शादी के दौरान कविता देवी की बातें थोड़ी कड़वी लगी थीं। अब उनकी बेटी उस घर में थी और हर स्थिति को वो शक की नजर से देखने लगी थीं।
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मन की उलझनें
नंदिता का संघर्ष भीतर ही भीतर जारी था। वो अपनी मां को परेशान नहीं करना चाहती थी और ससुराल वालों को भी यह नहीं दिखाना चाहती थी कि वो संघर्ष कर रही है।
उसने अभिषेक से अपने मन की बात साझा की, “अभिषेक, मुझे कभी-कभी ऐसा लगता है कि मैं यहां सबके साथ तालमेल नहीं बिठा पा रही हूं। तुम्हारी मम्मी बहुत सख्त हैं। मुझे डर लगता है कि मैं उन्हें निराश न कर दूं।”
अभिषेक ने उसे सांत्वना दी, “नंदिता, तुम्हें किसी से डरने की जरूरत नहीं है। मम्मी का स्वभाव ऐसा ही है, लेकिन वो तुम्हें पसंद करती हैं। बस, थोड़ा समय लो।”
नंदिता को अभिषेक के शब्दों से कुछ राहत मिली, लेकिन मां से खुलकर बात करने का मन अब भी उसके अंदर कहीं दबी हुई थी।
मां की चिंता और एक अनकहा सच
नीलम हर रोज़ नंदिता के फोन का इंतजार करतीं। लेकिन नंदिता का फोन न आना उन्हें और परेशान करता। उन्होंने एक दिन खुद को रोका नहीं और फिर से नंदिता को फोन किया।
“नंदिता, तुम ठीक हो ना? मुझे तुमसे बात किए बिना चैन नहीं आता।”
नंदिता ने हल्की हंसी के साथ जवाब दिया, “मम्मी, मैं ठीक हूं। बस, यहां सबके साथ व्यस्त रहती हूं। आपको चिंता करने की जरूरत नहीं है।”
नीलम ने महसूस किया कि नंदिता उनके साथ खुलकर बात नहीं कर रही है। उनके मन में यह डर बैठ गया कि कहीं ससुराल में नंदिता पर ज्यादा दबाव तो नहीं है।
एक दिन कविता देवी ने नंदिता को अपने पास बुलाया।
“नंदिता, तुम्हारी मां का फोन आया था। वो तुम्हारे लिए बहुत चिंतित लग रही थीं। मुझे लगता है कि तुम्हें उनसे खुलकर बात करनी चाहिए।”
नंदिता ने हैरानी से अपनी सास की ओर देखा। उसे उम्मीद नहीं थी कि कविता देवी उसे ऐसा कहेंगी। सास के इस कदम ने नंदिता के मन में उनके प्रति सम्मान बढ़ा दिया।
उस रात नंदिता ने अपनी मां को फोन किया।
“मम्मी, मैं आपसे दिल खोलकर बात करना चाहती हूं। यहां सब बहुत अच्छे हैं। मालदीव की ट्रिप बहुत मजेदार थी। और मम्मी, सासू मां ने मुझसे कहा कि मैं आपसे बात करूं। वो मेरा ख्याल रखती हैं, मम्मी। बस, मुझे थोड़ा समय लग रहा है सब कुछ समझने में।”
नीलम ने चैन की सांस ली। उन्होंने नंदिता से कहा, “बेटा, तुम्हारी खुशी में ही मेरी खुशी है। मुझे तुम पर पूरा भरोसा है। बस, जब भी तुम्हें मेरी जरूरत हो, मुझे बताना।”
समझदारी का रिश्ता
नंदिता को पहली बार महसूस हुआ कि वो अपने दोनों परिवारों के बीच एक सेतु बन सकती है।
उसने ससुराल के माहौल को समझते हुए खुद को ढालना शुरू कर दिया। सास और बहू के बीच की दूरी धीरे-धीरे कम होने लगी। कविता देवी ने नंदिता को घर के फैसलों में शामिल करना शुरू किया।
नंदिता ने भी अपने मायके और ससुराल के बीच संतुलन बिठाना सीख लिया। वो अब खुद को इस नए परिवार का हिस्सा महसूस करने लगी थी।
परिवार का असली मतलब
इस पूरे घटनाक्रम में एक शुभ संकेत था—प्यार, समझदारी, और संवाद की ताकत। कविता देवी के छोटे से कदम
ने नंदिता और नीलम के बीच की दूरी मिटा दी।
“जहां प्यार हो, वहीं परिवार होता है।”
यह कहानी हमें सिखाती है कि हर रिश्ते में संवाद और समझदारी सबसे जरूरी हैं। सास और मां दोनों अगर साथ मिलकर चलें तो परिवार की नींव और मजबूत हो जाती है।
TAGS- नई ज़िंदगी की नई चुनौतियाँ,समझदारी का रिश्ता,परिवार का असली मतलब,मन की उलझनें
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