अपने व्यवहार से रखें सभी को प्रसन्न
एकांत में बैठकर बंद आंखों से किया गया ध्यान दिन में आधा या एक घंटा ही हो पाता है। हमारे मन की शांति इस ध्यान के साथ-साथ उस व्यवहार पर बहुत निर्भर करती है जो शेष 23 घंटे हम सभी कार्य करते हुए घर और समाज में करते हैं। आंखें बंद करके ध्यान में बैठने से हमारी चेतना का स्तर बढ़ता है, जिससे मन को सकारात्मकता और शांति महसूस होती है, परंतु आंखें खोलते ही मन जब बाहर व्यावहारिक दुनिया में आता है तो उसे फिर से नाम और रूप की माया घेर लेती है। अपेक्षाएं,क्रोध, ईर्ष्या, द्वेष के भाव फिर से उभरने लगते हैं और चेतना के स्तर को नीचे गिरा देते हैं। सद्गुरु रमेशजी, हाउस आफ़ एनलाइटनमेंट के अनुसार जानें कि क्या है ध्यान और व्यवहार-निपुणता का आध्यात्मिक महत्त्व।
ध्यान साधना
- ध्यान साधना द्वारा हम स्व-जागरूकता, भावनात्मक स्वास्थ्य, एकाग्रता , मन की शांति व आत्म भाव को बढ़ाने का अभ्यास करते हैं।
- एकांत में बैठकर बंद आंखों से किया गया ध्यान दिन में आधा या एक घंटा ही हो पाता है।
- हमारे मन की शांति इस ध्यान के साथ-साथ उस व्यवहार पर बहुत निर्भर करती है जो शेष 23 घंटे हम सभी कार्य करते हुए घर और समाज में करते हैं।
- आंखें बंद करके ध्यान में बैठने से हमारी चेतना का स्तर बढ़ता है, जिससे मन को सकारात्मकता और शांति महसूस होती है।
- परंतु आंखें खोलते ही मन जब बाहर व्यावहारिक दुनिया में आता है तो उसे फिर से नाम और रूप की माया घेर लेती है।
- अपेक्षाएं,क्रोध, ईर्ष्या, द्वेष के भाव फिर से उभरने लगते हैं और चेतना के स्तर को नीचे गिरा देते हैं।
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व्यवहार पर दें ध्यान
- ध्यान करना ऐसे है जैसे कि किसी इमारत की पहली मंज़िल से एक-एक सीढ़ी चढ़कर बड़ी मुश्किल से सौवीं मंजिल तक पहुंचना
- और ज़रा सा ध्यान हटते ही सौवीं मंजिल से धड़ाम से ज़मीन पर आ जाना।
- ध्यान द्वारा चेतना का विस्तार होता है लेकिन व्यवहार पर ध्यान न देने से-
- नकारात्मक भाव जैसे क्रोध, अहंकार, अपेक्षाएं, चिड़चिड़ापन, ईर्ष्या, द्वेष आदि चेतना के स्तर को पुनः नीचे गिरा देते हैं
- और ध्यान की सारी कमाई व्यर्थ चली जाती है ।
व्यवहार में शुद्धता और निपुणता
- ध्यान करने से भी ज़्यादा आवश्यक है व्यवहार में शुद्धता और निपुणता लाना।
- व्यवहार-निपुण व्यक्ति को कोई भी परिस्थिति या घटना विचलित या प्रभावित नहीं कर पाती
- इसलिए उसकी चेतना का स्तर गिरता-उठता नहीं है।
- व्यवहार में निपुणता न होने से छोटी सी कठिनाई भी बहुत बड़ी लगने लगती है।
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ऐसा हो व्यवहार
- ध्यान के साथ-साथ शब्दों, मीठी वाणी, अपनी क्रिया और प्रतिक्रिया पर ध्यान देते हुए हमारा व्यवहार ऐसा हो
- जिससे दूसरों को सुख, प्रेम व शांति की अनुभूति हो।
- हमारे अच्छे व्यवहार से हमारा अपना मन भी शांत होता है।
- इसलिए जीवन में अच्छा व्यवहार सर्वाधिक महत्वपूर्ण है।
- अच्छे व्यवहार से ध्यान स्वत: हो सकता है और हम अपने स्वरूप में स्थित हो सकते हैं।
- बंद आंखों का ध्यान न करते हुए भी ध्यान की स्थिति का आनंद उठा सकते हैं।
व्यवहार संबंधी अज्ञानता
- हमें ज्ञान न होने के कारण यह जान नहीं पाते कि हमारे व्यवहार या शब्दों का दूसरों पर क्या प्रभाव पड़ रहा है।
- हमारे व्यवहार से सामने वाला व्यक्ति खुश है या दुःखी है।
- भीतर ही भीतर वह क्रोध का अनुभव कर रहा है या प्रेम का।
- यदि कोई हमें हमारा व्यवहार सुधारने के बारे में बताता भी है तो हम अहंकारवश अपने व्यवहार को ही सही ठहराते हैं
- और स्वयं को बदलना नहीं चाहते। फलस्वरूप दुखी रहते हैं।
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करें चेतना का विस्तार
- संकीर्ण चेतना दूसरों में गलतियां, बुराईयां ,दोष इत्यादि दिखाती है।
- विस्तृत चेतना हर परिस्थिति को सामान्य रूप से देखती है।
- उसमें हलचल नहीं होती। वह बाहरी परिस्थितियों से प्रभावित नहीं होती। शांत और स्थिर रहती है।
- अतः हमें जितना हो सके, ध्यान और शुद्ध व्यवहार निपुणता द्वारा अपनी चेतना के स्तर को बढ़ाते रहना है।
अच्छे व्यवहार का दर्शन
- हमारा व्यवहार अच्छा तब माना जाएगा जब हमें यह अहसास होने लगे
- कि दूसरे हमसे बात करना चाहते हैं, हमारे पास बैठना चाहते हैं, हमारे संपर्क में खुश होते हैं।
- बाहरी लोगों को ही नहीं बल्कि परिवार के सदस्यों को भी जब हमारे साथ रहने और
- हमसे बात करने में अच्छा लगने लगे
- तो समझना चाहिए कि व्यवहार में निपुणता आ रही है।
- व्यवहार निपुणता का यही मापदंड है।
- शुद्ध व्यवहार द्वारा आत्मभाव में स्थित होकर बंधनमुक्त जीवन जिया जा सकता है।
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