Thursday, September 19, 2024
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त्याग और समर्पण की देवी माता सीता

आदर्श चरित्र जानकी

माँ सीता का चरित्र मानव जगत में एक आदर्श महिला का प्रतीक है।

सभी चाहते हैं कि उनके यहाँ देवी सीता जैसी कन्या हो।

वे अपने समर्पण, ईमानदारी, साहस, पवित्रता और आत्म-बलिदान के लिए जानी जाती हैं।

ऋग्वेद में माँ सीता

अर्वाचीसुभगेभवः सीते वंदा महेत्वा।

यथा नःसुभगास्सियथाः नः सुफलास्सि।।

ऋग्वेद 4.57.6 का सीता श्लोक

अर्थात, हे मां सीते, हमें दर्शन दीजिए। हम आपके समक्ष शीश झुकाते हैं।

हे रिद्धि-सिद्धि की सर्वोच्च देवी, कृपया अपनी दया और उदारता दिखाएं।

और हमारे लिए शुभ फल प्राप्ति के अग्रदूत बनें।

 

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प्रकटीकरण

  •  मां सीता का प्रकटीकरण वैशाख मास के शुक्लपक्ष की नवमी तिथि को हुआ था।
  • यह शुभ दिवस राम नवमी के ठीक एक माह बाद पड़ता है
  • और पूरे देश में धूम-धाम और उल्लास के साथ मनाया जाता है।
  • माँ सीता मिथिला के राजा (विदेह) राजा जनक की दत्तक पुत्री थीं।
  •  इसलिए उन्हें जानकी  के नाम से भी संबोधित किया जाता है।

जनक को मिलीं खेत में

  • सनातन धर्म की पौराणिक कथाओं में एक कथा है।
  • राजा जनक बिहार स्थित वर्तमान स्थली सीतामढ़ी में यज्ञ अनुष्ठान के दौरान भूमि की जुताई कर रहे थे।
  • इस दौरान उन्हें खेत के गड्ढे में एक सोने के घड़े में एक बच्ची मिली।
  • राजा जनक निःसंतान थे।
  • दिव्य उपहार स्वरूप प्राप्त इस बच्ची को उन्होंने बेटी के रूप में अपना लिया।
  • श्रीराम भगवान विष्णु के अवतार थे।
  • माँ सीता को उनकी पत्नी देवी लक्ष्मी का अवतार माना जाता है।
  • भूमि के गर्भ से प्रकट होने के कारण उन्हें भूमिजा भी कहा जाता है।

आदर्श युगल

  • प्रभु श्रीराम और मां सीता को एक आदर्श युगल माना जाता है।
  • उनके सांसारिक मार्ग में अनेकानेक बाधाएँ आईं।
  • लेकिन अपने संबंधों को लेकर वे सदैव अटल रहे।
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आदर्श चरित्र

  • माँ सीता का चरित्र मानव जगत में एक आदर्श महिला का प्रतीक है।
  • सभी परिवार चाहते हैं कि उनके यहाँ बेटी, जीवनसाथी, बहू या माँ के रूप में देवी सीता जैसी कन्या हो।
  • वे अपने समर्पण, ईमानदारी, साहस, पवित्रता और आत्म-बलिदान के लिए जानी जाती हैं।
  • वे एक राजकुमारी थीं।
  • लेकिन वनवास गमन में पतिव्रता स्त्री की भांति उन्होंने अपने पति का साथ दिया।
  • वह लक्ष्मण और हनुमान को अपने भाई और पुत्र के रूप में प्यार करती थीं।
  • उन्होंने छद्म साधु वेशधारी रावण को भिक्षा देकर गरीबों और संतों की मदद की परंपरा निभाई।
  • अपहरण के दौरान वानरों के बीच अपने आभूषण फेंक कर उन्होंने बुद्धिमत्ता का परिचय दिया।

  • बाद में ये आभूषण श्रीराम-सेना को माँ सीता के अपहरण के मार्ग का पता लगाने में सहायक सिद्ध हुआ।
  • अपहरण के बाद, उन्होंने रावण को अपने कुकर्मों के कारण उसके वंश के सर्वनाश की चेतावनी भी दी।
  • गर्भावस्था के दौरान सीता पति से अपने अलगाव से वेदनापूरित थीं।
  • परन्तु उन्होंने इस विकट परिस्थिति का साहस पूर्वक सामना किया।
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  • उन्होंने अपने बच्चों को जन्म देने और उन्हें सभी गुणों से सुसज्जित करने का निर्णय किया।
  • अपनी मानव-जीवन-यात्रा के अंतिम दौर में वे एक एकल माँ के रूप में रहीं।
  • उन्होंने स्वयं को पीड़ित नहीं माना और समान अधिकारों की मांग के लिए अयोध्या वापस नहीं गईं।
  • वे राजा एवं पति के बीच भूमिका चुनने में श्रीराम के आंतरिक द्वंद्व को समझती थीं।
  • उन्होंने राजा जनक के परिवार की प्यारी बेटी, दशरथ के परिवार की बहू के रूप में अपने कर्तव्य का निर्वहन किया।

  • प्रभुराम की पत्नी के रूप में अपने शील का परिचय दिया।
  • और अंत में महाराज लव और कुश की माँ के रूप में कर्तव्यों का सम्यक पालन किया।
  • जब लव और कुश को अयोध्या की प्रजा और पिता राम ने स्वीकार कर लिया।
  •  तो माता के रूप में उनकी अंतिम भूमिका भी पूर्ण हो गई।
  • इस क्रूर जगत में पवित्रता हेतु महिलाओं से प्रमाण की आवश्यकता होती है।

  • इससे मुक्ति पाने के लिए वे धरती माता के गर्भ में वापस लौट आईं।
  • माँ सीता, उनका चरित्र और संघर्षमय जीवन भारतीय उपमहाद्वीप की समृद्ध संस्कृति का अभिन्न अंग है।

 

 

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