Friday, September 12, 2025
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डोल ग्यारस पूजा विधि

डोल ग्यारस पूजा विधि
डोल ग्यारस पूजा विधि

डोल ग्यारस हिन्दू धार्मिक ग्रंथों और मान्यताओं के अनुसार भाद्रपद मास के शुक्ल पक्ष की एकादशी को मनाया जाता है। इस दिन भगवान विष्णु करवट बदलते हैं। इसीलिए यह ‘परिवर्तनी एकादशी’ भी कही जाती है। इसके अलावा यह एकादशी ‘पद्मा एकादशी’ और ‘जलझूलनी एकादशी’ के नाम से भी जानी जाती है। मान्यता है कि इस दिन जो भी व्रत पूजन करता है उसे वाजपेय यज्ञ का फल मिलता है। यानी सारे संकट हर कर भगवान कृष्ण खुशहाली, सम्पन्नता और समृद्धि से आपका आंगन भर देंगे।

इन दिनों गणेशोत्सव जारी है। आज डोल ग्यारस के दिन कई लोग गणेश विसर्जन भी करेंगे। कुछ भक्त इन झांकियों में भगवान श्रीकृष्ण के साथ ही गणपति को भी बैठाकर शहर भर की सैर कराते हुए विसर्जित करने की परम्परा निभाते हैं।

क्यों मनाई जाती है डोल ग्यारस

  • माना जाता है कि डोल ग्यारस के दिन भगवान श्रीकृष्ण के बाल रूप का जलवा पूजन किया गया था। माता यशोदा ने बालगोपाल कृष्ण को नए वस्त्र पहनाकर सूरज देवता के दर्शन करवाए थे। उसके बाद उनका नामंकरण किया गया था। इस दिन भगवान कृष्ण के आगमन के कारण गोकुल में जश्न मनाया गया था। यही कारण है आज भी उसी प्रकार से कई स्थानों पर इस दिन मेले एवं झांकियों का आयोजन किया जाता है।
  • माता यशोदा की गोद भरी जाती है। कृष्ण भगवान को डोले में बिठाकर झांकियां सजाईं जाती हैं। कई कृष्ण मंदिरों में नाट्य-नाटिका का आयोजन भी किया जाता हैं। मान्यता है कि इस दिन जो भी व्रत पूजन करता है उसे वाजपेय यज्ञ का फल मिलता है।
  • वाजपेय यज्ञ का विशिष्ट धार्मिक एवं वैदिक महत्व है। यह सोमा यज्ञों का सबसे महत्वपूर्ण यज्ञ है। यज्ञ आमतौर पर उच्च स्तर और बड़े पैमाने पर किया जाता है। भारतीय इतिहास बताता है कि सवाई जय सिंह ने कम से कम दो यज्ञ प्रदर्शन किए जो वैदिक साहित्य में वाजपेय और तथा अश्वमेध नामों से वर्णित हैं।
  • ‘ईश्वरविलाश महाकाव्य’ के अनुसार ‘जय सिंह प्रथम ने वाजपेय यज्ञ किया और सम्राट उपाधि धारण की। आधुनिक भारत में बाजपेयी लोगों ने अभिनय शिक्षा, साहित्य, कूटनीति, राजनीति में महत्वपूर्ण सम्मान अर्जित किया है।

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भगवान विष्णु के वामनावतार की पूजा

डोल ग्यारस पूजा विधि

डोल ग्यारस के दिन भगवान विष्णु के वामन अवतार की भी पूजा की जाती है, क्योंकि इसी दिन राजा बलि से भगवान विष्णु ने वामन रूप में उनका सर्वस्व दान में मांग लिया था एवं उसकी भक्ति से प्रसन्न होकर अपनी एक प्रतिमा को राजा बलि को सौंप दी थी। यही कारण है कि इसे वामन ग्यारस के नाम से भी जाना जाता है।

जानें महत्व

* डोल ग्यारस के दिन व्रत करने से व्यक्ति के सुखों में वृद्धि होती है।
* उसे सौभाग्य की प्राप्ति होती है।
* डोल ग्यारस के विषय में यह भी मान्यता है कि इस दिन माता यशोदा ने भगवान श्रीकृष्ण के वस्त्र धोए थे। इसी कारण से इसे एकादशी को ‘जलझूलनी एकादशी’ भी कहा जाता है।
* इस व्रत के प्रताप से सभी दुखों का नाश हो जाता है और खुशियां आपके घर-आंगन में हमेशा के लिए बस जाती हैं।
* इस दिन भगवान विष्णु के साथ बाल कृष्ण के रूप की पूजा की जाती हैं। जिनके प्रभाव से सभी व्रतों का पुण्य मनुष्य को मिलता हैं।
* जो मनुष्य इस एकादशी को भगवान विष्णु के वामन रूप की पूजा करता है, उसके हर संकट का अंत होता है।

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  • कुछ स्थानों पर ऐसा माना जाता है कि देवशयनी एकादशी पर योग निद्रा में गए भगवान विष्णु इस दिन निद्रा में करवट लेते हैं। भगवान के करवट बदलने का समय भाद्रपद मास के शुक्ल पक्ष की एकादशी को आता है। इसलिए इस एकादशी को परिवर्तिनी एकादशी के रूप में भी जाना जाता है।
  • यह एकादशी समस्त पापों का नाश करने वाली मानी जाती है। इस एकादशी के विषय में एक मान्यता है, कि इस दिन माता यशोदा ने भगवान श्री कृष्ण के वस्त्र धोए थे। इस दिन कान्हा की पालना रस्म भी संपन्न हुई थी। अत: इस एकादशी को जलझूलनी एकादशी भी कहा जाता है।

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  • सूर्यवंश में मान्धाता नामक चक्रवर्ती राजा हुए उनके राज्य में सुख संपदा की कोई कमी नहीं थी, प्रजा सुख से जीवन व्यतीत कर रही थी परंतु एक समय उनके राज्य में तीन वर्षों तक वर्षा नहीं हुई प्रजा दुख से व्याकुल थी तब महाराज भगवान नारायण की शरण में जाते हैं और उनसे अपनी प्रजा के दुख दूर करने की प्रार्थना करते हैं। राजा भादों के शुक्लपक्ष की ‘एकादशी’ का व्रत करते हैं।
  • इस प्रकार व्रत के प्रभाव स्वरुप राज्य में वर्षा होने लगती है और सभी के कष्ट दूर हो जाते हैं। राज्य में पुन: खुशियों का वातावरण छा जाता है। इस उत्तम व्रत का अनुष्ठान अवश्य करना चाहिए ‘पदमा एकादशी’ के दिन सामर्थ्य अनुसार दान करने से शुभ फलों की प्राप्ति होती है।
  • जलझूलनी एकादशी के दिन जो व्यक्ति व्रत करता है, उसे भूमि दान करने और गोदान करने के पश्चात मिलने वाले पुण्यफलों से अधिक शुभ फलों की प्राप्ति होती है। इस दिन भगवान विष्णु करवट बदलते हैं, इसीलिए यह ‘परिवर्तनी एकादशी’ भी कही जाती है। इसके अतिरिक्त यह एकादशी ‘पद्मा एकादशी’ और ‘जलझूलनी एकादशी’ के नाम से भी जानी जाती है। यह व्रत करने से वाजपेय यज्ञ का फल मिलता है।
  • जो मनुष्य इस एकादशी को भगवान विष्णु के वामन रूप की पूजा करता है, उससे तीनों लोक पूज्य होते हैं। इस व्रत के बारे में भगवान श्रीकृष्ण ने स्वयं युधिष्ठिर से कहा है कि-‘जो इस दिन कमल नयन भगवान का कमल से पूजन करते हैं, वे अवश्य भगवान के समीप जाते हैं। जिसने भाद्रपद के शुक्ल पक्ष की एकादशी को व्रत और पूजन किया,उसने ब्रह्मा, विष्णु, सहित तीनों लोकों का पूजन किया। अत: इस एकादशी का व्रत अवश्य करना चाहिए।

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– सारिका असाटी

 

 

 

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