जो हासिल है उसमें रहें खुश
हम अक्सर किसी ना किसी बात को लेकर या तो चिंतित रहते हैं या तनाव में रहते हैं या दुखी रहते हैं या अपनी कमियों को कोसते रहते हैं कि काश, ऐसा होता तो कितना अच्छा होता। कहने का मतलब यह है कि जो हमारे पास नहीं है या जिसे हमने खो दिया है, हम उसेे लेकर परेशान रहते हैं, जबकि होना यह चाहिए कि जो हमारे पास है, उसे लेकर हमें खुश होना चाहिए और उत्साहित होकर भगवान का शुक्रगुजार होना चाहिए।
एक घटना के बारे में कहीं पढ़ा था कि एक दार्शनिक टैक्सी में बैठ कहीं जा रहे थे। उन्होंने देखा की टैक्सीवाले की शक्ल उदास है। दार्शनिक ने उससे पूछा, `क्या तुम्हारी तबियत ठीक नहीं है?’ टैक्सीवाले ने कहा, `सर! क्या आप डॉक्टर हैं?’ दार्शनिक ने जवाब दिया, `नहीं, दरअसल तुम्हारा चेहरा तुम्हें थका हुआ और बीमार बता रहा है।’
तीस वर्षीय उस टैक्सी वाले ने दुखी मन से बताया कि आजकल उसकी पीठ में दर्द रहता है। इस पर दार्शनिक ने कहा, `इतनी कम उम्र में पीठ दर्द। यह तो मात्र व्यायाम से बिना दवा के ही ठीक हो सकता है।’
दार्शनिक ने फिर दूसरा प्रश्न पूछा, `क्यों भाई, क्या आजकल धंधा मंदा चल रहा है?’ टैक्सीवाले ने आश्चर्य से कहा, `साहब, आपको कैसे पता चला? क्या आप कोई ज्योतिषी हैं?’ दार्शनिक ने कहा, `भैया, मैं ही क्या, कोई भी तुम्हें यही कहेगा। अरे, जब तुम हर वत्त बुझे हुए चेहरे से सवारियों का स्वागत करोगे तो भला कौन तुम्हारी टैक्सी में बैठना चाहेगा? तुम्हारी आमदनी तो कम होगी ही। जीवन में सफलता के लिए प्रसन्नता एवं उत्साह का होना जरूरी है।’
यह सुनकर टैक्सीवाला जैसे सोते में जागा हो और बोला, `सर! आज आपने मुझे मेरी गलती का अहसास करा दिया, इसके लिए आपको बहुत बहुत धन्यवाद।’
कुछ वर्षों बाद इन दोनों की फिर मुलाकात हुई। हुआ यू कि एक दिन एक सज्जन ने उसी दार्शनिक की पीठ पर हाथ रखते हुए, मुस्कुराते हुए पूछा `सर जी! कैसे हैं आप! दार्शनिक ने कहा `ठीक हूं! पर मैंने तुम्हें पहचाना नहीं।’ इस पर सज्जन ने कहा, `सर, मैं वही टैक्सीवाला हूं जिसे आपने खुशी और उत्साह का पाठ पढ़ाया था। आज आपकी दी हुई शिक्षा के कारण ही मेरी बारह टैक्सियां किराए पर चल रही हैं और व्यवसाय खूब फल-फूल रहा है तथा परिवार में भी खुशहाली है। अब मैं भी हर उदास मायूस व्यत्ति को उत्साह के साथ मुस्कुराते हुए काम करने की सलाह देता हूं।’
दार्शनिक ने कहा, `यह बेहद जरूरी है कि उत्साह से अपना भला स्वयं करें।’ उस सज्जन ने दार्शनिक से आशीर्वाद लिया और प्रसन्नता व खुशी से पुनः मिलने का वायदा किया।
अक्सर हम अपनी समस्याओं को लेकर चिंतित रहते हैं और यह भूल जाते हैं कि हम पर विधाता की कितनी कृपा है और जिस दिन इस कृपा को समझ लेंगे, उस दिन जीवन आनंद से सराबोर हो जाएगा। यह तो स्वाभाविक बात है कि जब आप अच्छा महसूस करते हैं तो आप मुस्कुराते हैं, लेकिन जब आप मुस्कुराते हैं तो आप अच्छा महसूस करते हैं, अंदर की खुशी प्रकट हाती है। अंदर की खुशी हमेशा बरकरार रहे, इसके लिए जीवन में `खुश और उत्साहित’ होना ज़रूरी है। यह उत्साह परप्त करने के लिए `स्व’ को जानकर `स्व-चिंतन’ करना चाहिए। अपना उद्धार स्वयं करें इसके लिए अपने आपको को जानना व पहचानना है।
चित्त में उत्साह के बीज बोएंगे तो उत्साहवर्धन होगा और यदि हम निराशा के बीज बोएंगे तो निराशा ही निराशा होगी। ज्ञानीजन हमेशा कहते हैं कि हमेशा अपनी मस्ती में जिओ और अपने कर्मों का चिंतन करते हुए दुनिया के सभी कर्तव्य-कर्मों को भलीभांति पूरा करो।
सारी चिंता व समस्याओं का चिंतन न करके उनके समाधान के तरीके अपनाने चाहिए तथा चिंतन `स्व’ का करना चाहिए। समस्या हमारी अपनी ही बनाई गई है और उसका फल भी हमें भुगतना है, लेकिन जीवन में आशा है तो सारी समस्याएं अपने आप हल हो जाती हैं और निराशा का कोई स्थान नहीं रहता।
सभी से प्रेमपूर्वक व्यवहार, जीवन में अनुशासन तथा अच्छे विचारों और सदकर्मों का सृजन, जीवन में उम्मीदें और उत्साह भरता है। उत्साह के महत्त्व को जानकर समझकर अपने जीवन का उद्धार स्वयं करें और दूसरों को भी प्रेरणा मिले, ऐसा जीवन खुद खुशहाली में जिएं।