Thursday, September 19, 2024
Google search engine
Homeविशेषत्योहारजैन पर्वाधिराज पर्युषण

जैन पर्वाधिराज पर्युषण

आठ दिनों का महापर्व पर्युषण

लेखक – दीपेश सुराणा प्रचार मंत्री, श्री वर्धमान स्थानकवासी जैन श्रावक संघ, बोलारम (सिकंदराबाद)

पर्युषण के आठ दिनों में अधिकाधिक सामायिक, संवर, पौषध आदि धर्म-साधना करते हुए संवत्सरी पर्व के पूर्व की तैयारी की जाती है। वर्ष भर में कहाँ-कहाँ कौन से दोषपूर्ण कार्य किए, इसका चिंतन और आलोचना की जाती है। सभी मित्रों, रिश्तेदारों और संपूर्ण जीवजगत से उन्हें प्रत्यक्ष या अप्रत्यक्ष रूप से पहुँचाई गई पीड़ा के लिए क्षमायाचना की जाती है।

  • दुनिया में दो तरह के पर्व मनाये जाते हैं
  • लौकिक पर्व (सांसारिक पर्व)
  • इन पर्वों में आमोद (मिलना), प्रमोद (झुलना), खाना-पीना, खेल-कूद आदि किये जाते हैं। लौकिक पर्वों को मनाने में अक्सर हिंसा आदि पापकर्म भी हो जाते हैं,
  • होली, दीपावाली, रक्षाबंधन, दशहरा, गणेश चतुर्थी आदि लौकिक पर्व के अंतर्गत आते हैं।

Read this also – समन्वय साधने का अनमोल मार्ग महावीर का स्यादवाद

लोकोत्तर पर्व (धार्मिक पर्व)

  • इन पर्वों को मनाने में 6 कायों के जीवों में से किसी भी जीव की हिंसा नहीं होती (100% non-violence) ।
  • यह पर्व आत्मा को पापों से, कर्मों से हल्का करने वाले पर्व होते हैं।
  • इन्हें धर्म-ध्यान, त्याग तप, सामायिक, संवर, पौषध से मनाया जाता है।
  • पर्युषण एक लोकोत्तर महपर्व है।

महापर्व पर्युषण

  • यह आठ दिन का महापर्व है।
  • इसे पर्वाधिराज पर्युषण भी कहते हैं।
  • इन आठ दिनों में अधिकाधिक सामायिक, संवर, पौषध करते हुए संवत्सरी पर्व के पूर्व की तैयारी की जाती है।
  • इसके पहले के सात दिनों में वर्ष भर में कहाँ-कहाँ कौन से दोषपूर्ण कार्य किए इसका चिंतन किया जाता है।
  • 12 व्रतों के पालन में कहाँ-कहाँ गलती हुई, किसी को कटु वचन कहे,  किसी का हृदय दुखाया, पीड़ित किया इन सब बातों का गहन चिंतन किया जाता है।
  • चिंतन करने के पश्चात हृदय को आलोचना, क्षमायाचना और प्रायश्चित करने के लिए तैयार किया जाता है।
  • अंतिम दिन यानि आठवें दिन क्षमापर्व संवत्सरी मनाया जाता है।
  • संवत्सरी के दिन अपने द्वारा किए गए गलत कार्यों के प्रति प्रायश्चित करते हुए समस्त जीव जगत से क्षमा याचना की जाती है।
  • सभी जीवों से मैत्री भाव का संकल्प लिया जाता है।

Read this also – जैन धर्म में है अक्षय तृतीया की महिमा/ The glory of Akshaya Tritiya in Jainism

क्यों आते हैं पर्युषण के दिवस

  • दान-शील-तप-भाव को जगाने पर्युषण के दिवस आते हैं।
  • अपने आपको भीतर में बसाने पर्युषण के दिवस आते हैं।
  • अंतर का अंतर्नाद जगाने पर्युषण के दिवस आते हैं।
  • अंतगढ़ सूत्र को भीतर में उतारने पर्युषण के दिवस आते हैं।
  • कल्पसूत्र का आदर सत्कार कराने पर्युषण के दिवस आते हैं।
  • लोकोत्तर जिनशासन की प्रभावना कराने पर्युषण के दिवस आते हैं।
  • देव-गुरु-धर्म का शरण लेने आते हैं पर्युषण के दिवस आते हैं।
  • वैर भाव को दिल से मिटाने पर्युषण के दिवस आते हैं।

Read this also – पुरी का जगन्नाथ मंदिर

संवत्सरी पर्व

  • यह पर्युषण पर्व का अंतिम (आठवां) दिन होता है।
  • इस दिन पर्युषण पर्व के आरंभिक सात दिनों में की गई तैयारी के अनुसार साल भर के पापों की आलोचना, प्रतिक्रमण, प्रायश्चित और क्षमायाचना की जाती है।
  • जिससे भी अन-बन, वैर-विरोध हो उसे भुला कर एक-दूसरे को क्षमा प्रदान की जाती है।
  • एक-दूसरे से क्षमा-याचना की जाती है।
  • हमें भी सभी कर्मों को क्षय करने के लिए इन पर्वों पर अधिकाधिक त्याग, तप, धर्म-ध्यान, सामायिक, संवर, पौषध करना चाहिए।
  • मित्रों, रिश्तेदारों और समस्त जीवजगत से क्षमायाचना

यदि आपको यह लेख पसंद आता है तो कृपया इसे ज्यादा से ज्यादा शेयर करें। अपने सुझाव और राय कमेंट बॉक्स में लिखें। धन्यवाद।

 

 

RELATED ARTICLES

1 COMMENT

LEAVE A REPLY

Please enter your comment!
Please enter your name here

- Advertisment -
Google search engine

Most Popular

Recent Comments