
चरखा और खादी: गांधी का ब्रिटिश अर्थव्यवस्था पर प्रहार | Charkha and Khadi: Gandhi’s Economic Weapon
महात्मा गांधी के नेतृत्व में भारतीय स्वतंत्रता आंदोलन केवल राजनीतिक स्वराज के लिए नहीं था, बल्कि यह आत्मनिर्भर भारत तथा देश के आर्थिक और सामाजिक स्वावलंबन की भी लड़ाई थी। गांधी ने समझ लिया था कि भारत की असली ताकत उसकी ग्रामीण अर्थव्यवस्था और परंपरागत कारीगर हैं। अंग्रेजों ने जिस उद्योग को सबसे ज्यादा नुकसान पहुँचाया, वह था भारत का कपड़ा उद्योग। इसी को ध्यान में रखते हुए गांधी ने “चरखा और खादी” को स्वतंत्रता आंदोलन का आर्थिक और सामाजिक प्रतीक बनाया।
भारत का समृद्ध कपड़ा उद्योग और अंग्रेजों की साजिश | India’s Rich Textile Industry and British Conspiracy
15वीं शताब्दी में वास्कोडिगामा के भारत आगमन के बाद यूरोप और भारत के बीच व्यापार के नए रास्ते खुले। भारतीय रेशमी और सूती वस्त्रों की चमक इतनी थी कि यूरोपीय बाजार इनके बिना अधूरे लगते थे। आत्मनिर्भर भारत : चरखा और खादी
- 17वीं सदी में भारतीय कपास और छपाई वाले वस्त्र यूरोप में अत्यधिक लोकप्रिय हो गए।
- 1730 तक ईस्ट इंडिया कंपनी भारत से लाखों थानों का निर्यात कर रही थी।
- परंतु अंग्रेज उद्योगपतियों ने भारतीय कपड़ों की इस लोकप्रियता को अपने लिए खतरा समझा।
उन्होंने भारतीय कपड़ों पर भारी कर (Tariff) लगाया और इंग्लैंड में अपनी मिलों का विकास किया। धीरे-धीरे भारत का कपड़ा उद्योग खत्म होने लगा।
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औद्योगिक क्रांति और भारत की बर्बादी | Industrial Revolution and Decline of India
18वीं शताब्दी के उत्तरार्ध में इंग्लैंड में औद्योगिक क्रांति शुरू हुई। सूती वस्त्र उद्योग उसका प्रमुख केंद्र था। इस दौरान अंग्रेजों ने—
- भारत से कच्चा कपास लिया।
- अपने कारखानों में तैयार माल बनाया।
- वही माल बेहद सस्ते दामों पर भारत में बेचा।
परिणाम स्पष्ट था – भारत, जो कभी 23% वैश्विक अर्थव्यवस्था का हिस्सा था, अंग्रेजों के भारत छोड़ते समय केवल 3% पर सिमट गया। लाखों भारतीय बुनकर और सूत कातने वाले बेरोजगार हो गए। आत्मनिर्भर भारत : चरखा और खादी
खादी और चरखा का महत्व | Importance of Khadi and Charkha
महात्मा गांधी ने यह समझ लिया था कि भारत की सबसे बड़ी कमजोरी बनी अंग्रेजों की यह आर्थिक रणनीति। इसलिए उन्होंने चरखे और खादी को आंदोलन का केंद्र बनाया। आत्मनिर्भर भारत : चरखा और खादी
गांधी का उद्देश्य | Gandhi’s Purpose
- स्वदेशी (Swadeshi): विदेशी कपड़ों का बहिष्कार और भारतीय खादी का प्रचार।
- आत्मनिर्भरता (Self-Reliance): गाँव-गाँव में चरखा चलाकर रोजगार और उत्पादन।
- अनुशासन (Discipline): चरखा केवल आर्थिक नहीं, एक आध्यात्मिक अनुशासन भी था।
- मितव्ययिता और सादगी (Simplicity): खादी पहनना त्याग और त्यागपत्र का प्रतीक बना।
अंग्रेजी उद्योग पर सीधा प्रहार | Direct Strike on British Economy
- अंग्रेजी मिलों की बड़ी कमाई भारत के कपड़ा बाजार से होती थी।
- जब भारतीयों ने चरखे से कातकर खादी पहनना शुरू किया तो अंग्रेजी उत्पादों की बिक्री घटने लगी।
- यह सिर्फ आर्थिक प्रभाव नहीं था, बल्कि साम्राज्यवाद खिलाफ सामूहिक प्रतिरोध का प्रतीक बन गया।
गांधी ने कहा था कि खादी हर भारतीय को स्वतंत्रता की डोर से जोड़ने का माध्यम है।
खादी और चरखा: राष्ट्रीय आंदोलन का प्रतीक | Khadi and Charkha as a National Symbol
- कांग्रेस सत्रों में, गाँधीजी स्वयं खादी पहनकर जनता के बीच जाते थे।
- चरखा सिर्फ कपास कातने का यंत्र नहीं रहा, बल्कि यह “स्वराज” का प्रतीक बना।
- हर भारतीय परिवार को समझ में आ गया कि अंग्रेजों को हराने का तरीका केवल राजनीति नहीं, बल्कि आर्थिक बहिष्कार भी है।
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स्वदेशी, आत्मनिर्भर भारत और आज की प्रासंगिकता | Swadeshi, Self-Reliant India and Modern Relevance
आज भी “मेक इन इंडिया” और “आत्मनिर्भर भारत” की जो नीति अपनाई जा रही है, उसकी नींव कहीं न कहीं गांधी की स्वदेशी नीति और खादी आंदोलन में ही है।
- स्थानीय उत्पादन
- छोटे कुटीर उद्योगों को बढ़ावा
- विदेशी निर्भरता घटाना
ये सभी बातें गांधी के विचारों को आधुनिक समय में भी प्रासंगिक बनाती हैं।
निष्कर्ष | Conclusion
महात्मा गांधी का चरखा और खादी अभियान केवल कपड़ा उत्पादन तक सीमित नहीं था, बल्कि यह एक सुरचित रणनीति थी। उन्होंने अंग्रेजों की उस नब्ज को पकड़ा, जिससे ब्रिटेन की पूरी अर्थव्यवस्था चल रही थी। खादी और चरखे के माध्यम से गांधी ने न सिर्फ स्वदेशी और आत्मनिर्भरता का संदेश दिया, बल्कि इसे स्वतंत्रता आंदोलन का सबसे बड़ा हथियार बना दिया।
इसलिए कहा जा सकता है कि चरखा और खादी अंग्रेजी उद्योगवाद और साम्राज्यवाद पर भारत का सबसे शांतिपूर्ण लेकिन सबसे प्रभावशाली प्रहार था।
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