Saturday, December 6, 2025
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गोवर्धन पूजा का महत्व/Importance of Govardhan Puja

गोवर्धन पूजा का महत्व/Importance of Govardhan Puja
गोवर्धन पूजा का महत्व/Importance of Govardhan Puja

गोवर्धन पूजा क्यों मनायी जाती है?

भारत के कुछ स्थानों पर जैसे महाराष्ट्र में यह बलि प्रतिप्रदा या बलि पडवा के रुप में मनाया जाता है। यह भगवान वामन (भगवान विष्णु के अवतार) की राक्षस राजा बलि के ऊपर विजय के सम्मान में मनाया जाता है। यह माना जाता है कि राजा बलि को ब्रह्मा द्वारा शक्तिशाली होने का वरदान प्राप्त था।

कहीं-कहीं यह दिन कार्तिक के महीने की शुक्ल पक्ष की प्रतिपदा पर गुजरातियों द्वारा नए साल के रूप में मनाया जाता है।

गोवर्धन पूजा (Govardhan Puja) की किवंदतियाँ

गोवर्धन पूजा (Govardhan Puja) गोवर्धन पर्वत, जिसने भयंकर बारिश के दौरान बहुत से लोगों के जीवन की रक्षा की थी, के इतिहास के उपलक्ष्य में मनायी जाती है। यह माना जाता है कि गोकुल के लोग बारिश के देवता के रुप में देवता इन्द्र की पूजा करते थे। किन्तु भगवान कृष्ण ने गोकुल के लोगों की इस धारणा को बदला। उन्होंने कहा कि हमें अन्नकूट पहाड या गोवर्धन पर्वत की पूजा करनी चाहिये क्योंकि वे ही असली भगवान के रुप में हमारा पोषण करते है, भोजन देते है, और कठोर परिस्थितियों में हमारा जीवन बचाने के लिये आश्रय देते है।

इस प्रकार उन्होंने देवता इन्द्र के स्थान पर पर्वत की पूजा करनी शुरु कर दी। यह देखकर इन्द्र बहुत क्रोधित हुआ और उसने गोकुल पर बहुत अधिक वर्षा करनी प्रारम्भ कर दी। अन्त में भगवान कृष्ण ने अपनी छोटी अंगुली पर गोवर्धन पर्वत उठाकर गोकुल के लोगो को इस पर्वत के नीचे ढक कर उनके जीवन की रक्षा की। इस प्रकार भगवान कृष्ण ने इन्द्र का घमण्ड तोङा। अब यह दिन गोवर्धन पूजा के रुप में गोवर्धन पर्वत को सम्मान देने के लिये मनाया जाता है।

महाराष्ट्र में यह दिन पडवा या बलि प्रतिपदा के रुप में मनाया जाता है, क्योंकि यह माना जाता है कि भगवान विष्णु द्वारा वामन (भगवान विष्णु के अवतार) रुप में राक्षस राजा बलि को हराकर पाताल लोक को भेजा गया।

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अन्नकूट या गोवर्धन पूजा कैसे मनाते है

गोकुल और मथुरा के लोग बड़े उत्साह और खुशी के साथ इस त्यौहार को मनाते हैं। लोग गोवर्धन पर्वत का एक घेरा बनाते है, जिसे परिक्रमा के नाम से भी जाना जाता है (जो मानसी गंगा में नहाकर मानसी देवी, हरीदेवा और ब्रह्मकुण्ड की पूजा करके शुरु होता है। गोवर्धन परिक्रमा के रास्ते में लगभग 11 शिलायें है, जिनका अपना महत्व है) और पूजा करते है।

लोग गाय के गोबर से गोवर्धन धारा जी के रुप में बनाते है और उसे भोजन और फूलों से सुसज्जित करके पूजा करते है। अन्नकूट का अर्थ है कि लोग विविध प्रकार के भोग बनाकर भगवान कृष्ण को अर्पित करते है। भगवान की मूर्ति को दूध में नहला कर और नये कपडों के साथ साथ नये गहने पहनाये जाते है। उसके बाद पारपंरिक प्रार्थना, भोग और आरती के साथ पूजा की जाती है।

यह पूरे भारत में भगवान कृष्ण के मन्दिरों को सजाकर और बहुत सारे कार्यक्रमों को आयोजित करके मनाया जाता है और पूजा के बाद भोजन लोगो के बीच में बाँट दिया जाता है। लोग प्रसाद लेकर और भगवान के पैर छूकर भगवान कृष्ण से आशीर्वाद लेते है।

गोवर्धन पूजा का महत्व/Importance of Govardhan Puja

गोवर्धन पूजा का महत्व

लोग गोवर्धन पर्वत की अन्नकूट (विभिन्न प्रकार के भोजन) बनाकर गोवर्धन पर्वत की नाच कर और गाकर पूजा करते है। वे मानते है कि पर्वत ही असली भगवान है और वह हमें जीने का रास्ता प्रदान करता है, गंभीर स्थिति में आश्रय प्रदान करता है और उनके जीवन को बचाता है। हर साल गोवर्धन पूजा विभिन्न रीति रिवाजों और परंपराओं बहुत के साथ खुशी से मनाते हैं। लोग बुराई की शक्ति पर भगवान की जीत के उपलक्ष्य में इस खास दिन पर भगवान कृष्ण की पूजा करते हैं।

लोग इस विश्वास से गोवर्धन पर्वत की पूजा करते हैं कि वे कभी इस पहाड़ के द्वारा संरक्षित किये गये थे और उन्हें हमेशा रहने का स्रोत मिला था। लोग सुबह में अपनी गायों और बैलों को स्नान कराते है और उन्हें केसर और मालाओं आदि से सजाते है। वे गाय के गोबर का ढेर बनाकर खीर, बतासे, माला, मीठे और स्वादिष्ट भोजन के साथ पूजा करते है। वे छप्पन भोग (56 प्रकार के भोजन) के लिये नवैध या 108 प्रकार के भोजन पूजा के दौरान भगवान को अर्पित करने के लिये बनाते है।

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गोवर्धन पर्वत मोर के आकार में है जिसका इस प्रकार वर्णन किया जा सकता है: राधा कुण्ड और श्याम कुण्ड आँख बनाते है, दन गती गर्दन बनाती है, मुखारबिन्द मुँह का निर्माण करती है और पंचारी लम्बे पंखो वाली कमर का निर्माण करती है। यह माना जाया है कि पुलस्त्य मुनि के शाप के कारण इस पर्वत की ऊँचाई दिन प्रतिदिन (रोज सरसों के एक बीज के बराबर) घटती जा रही है।

एकबार, सतयुग में, पुलस्त्य मुनि द्रोणकैला (पर्वतों का राजा) के पास गये और उसके गोवर्धन नाम के बेटे से अनुरोध किया। राजा बहुत उदास था और उसने मुनि से अपील की कि वह अपने बेटे से वियोग सहन नहीं कर सकता। अन्त में एक शर्त के साथ उसने अपने पुत्र को मुनि के साथ भेजा कि यदि कहीं रास्ते में उसे नीचे रखा तो वह सदा के लिये वही रुक जायेगा।

रास्ते में, बृजमंडल से गुजरते समय मुनि ने शौच करने के लिये उसे नीचे रख दिया। वापस आने के बाद उन्होने देखा कि वह उसे उस स्थान से उठा नहीं पा रहे है। तब वह क्रोधित हो गये और उन्होंने गोवर्धन को धीरे-धीरे आकार में छोटा होने का श्राप दे दिया। यह पहले 64 मील लम्बा, 40 मील चौडा और 16 मील ऊँचा था जो घटकर केवल 80 फीट रह गया है।

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– सारिका असाटी

 

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