
अल्सर क्या है? | What is an Ulcer?
अल्सर तब होता है जब पेट (आमाशय) या ग्रहणी (ड्यूडेनम) की दीवार में घाव बन जाता है। आमाशय में बनने वाले घाव को पेप्टिक अल्सर (Peptic Ulcer) कहते हैं, जबकि ग्रहणी में बनने वाले घाव को ड्यूडीनल अल्सर (Duodenal Ulcer) कहा जाता है।
जब ये दोनों जगहों पर एक साथ घाव बनता है तो इसे गैस्ट्रो ड्यूडीनल अल्सर (Gastro Duodenal Ulcer) कहते हैं। आज के समय में अल्सर एक सामान्य रोग बनता जा रहा है, और युवाओं में ड्यूडीनल अल्सर अधिक पाया जाता है।
अल्सर के प्रकार | Types of Ulcers
- पेप्टिक अल्सर (Peptic Ulcer): आमाशय की अंदरूनी दीवार में घाव बनना।
- ड्यूडीनल अल्सर (Duodenal Ulcer): ग्रहणी की दीवार में घाव बनना।
- गैस्ट्रो ड्यूडीनल अल्सर (Gastro Duodenal Ulcer): दोनों जगह एक साथ घाव बनना।
अल्सर के कारण | Causes of Ulcer
अल्सर का कारण पूरी तरह स्पष्ट नहीं है, लेकिन इसका संबंध पेट में बनने वाले अम्ल (सोडियम हाइड्रोक्लोराइड) की अधिक सक्रियता से है। अम्ल की अधिकता से पेट की श्लेष्मिका को नुकसान पहुंचता है, और ‘पेप्टीन’ नामक एंजाइम पेट की आंतों को पचाने लगता है, जिससे घाव (अल्सर) बन जाता है।
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प्रमुख कारण:
- पेप्टिक अम्ल की अधिकता।
- आनुवंशिकता।
- कुछ दवाइयां: जैसे एस्प्रिन, डाइक्लोफेनिक, एनलजीन आदि का लगातार सेवन।
- संक्रमण: पेट में हानिकारक जीवाणु।
- मानसिक तनाव, चिंता, अवसाद।
- हार्मोनल असंतुलन।
खाली पेट रहना क्यों खतरनाक है? | Why is Staying Empty Stomach Dangerous?
अल्सर के दौरान खाली पेट रहना बेहद जोखिम भरा हो सकता है क्योंकि:
- पेट का अम्ल बिना भोजन के सीधे पेट की दीवार को नुकसान पहुंचाता है।
- इससे पेट में जलन और दर्द बढ़ जाता है।
- खाली पेट रहने से पेट की श्लेष्मिका और अधिक संवेदनशील हो जाती है।
- लंबे समय तक भूखे रहने से अल्सर की स्थिति गंभीर हो सकती है।
इसलिए अल्सर रोगियों को खाली पेट बिल्कुल नहीं रहना चाहिए, और हल्का-फुल्का, सुपाच्य भोजन थोड़ी-थोड़ी देर पर लेना चाहिए।
अल्सर के लक्षण | Symptoms of Ulcer
- पेट के ऊपरी भाग में जलन या घंटों चलता हुआ दर्द होना।
- खाली पेट में तेज दर्द और खाने के बाद कुछ राहत मिलना।
- डयूडीनल अल्सर में दर्द खाने के 3-4 घंटे बाद शुरू होता है।
- पेट में दर्द रात को अधिक महसूस होना।
- भूख तीव्र होना और कभी-कभी उल्टी होना।
- दर्द एक निश्चित स्थान पर होना, अक्सर पेट के बाएँ या बाएँ उपरी भाग में।
- तनाव, चिंता, और मौसम का प्रभाव दर्द को बढ़ा सकता है।
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अल्सर में क्या खाएं? | What to Eat When You Have Ulcer?
अल्सर रोगी के लिए सही आहार बेहद आवश्यक है ताकि घाव जल्दी ठीक हो सके और पेट को ज्यादा जलन न हो।
लाभकारी आहार:
- गाय या बकरी का दूध मिश्री के साथ।
- हल्का, सुपाच्य और पोषक तरल आहार जैसे खिचड़ी, दलिया।
- हरी सब्जियां: गाजर, लौकी, तुरई, कद्दू, सहिजन, परमल, पेठा, बथुआ आदि।
- दालें: मूंग और मसूर की दाल सर्वोत्तम मानी जाती हैं।
- दिन में बार-बार थोड़ा-थोड़ा खाना।
- गर्म भोजन जो पचाने में आसान हो।
अल्सर में क्या न खाएं? | What to Avoid When You Have Ulcer?
- मांसाहार, अंडा, और भारी भोजन।
- शराब, तंबाकू, गुटका।
- चाय, बहुत अधिक कॉफी या ठंडी ताज़ी चीजें।
- उड़द और अरहर की दाल।
- बासी, तला-भुना या मसालेदार भोजन।
- ज्यादा तीखा और खट्टा खाना।
- अधिक तेल-मसाले का सेवन।
अल्सर का घरेलू उपचार | Home Remedies for Ulcer
1. दूध और मिश्री
गाय या बकरी के दूध में मिश्री मिलाकर रोजाना पियें। यह पेट की जलन कम करता है और अल्सर में राहत देता है।
2. हल्का एवं सुपाच्य भोजन
दिनभर में हल्के छोटे-छोटे भोजन करें, जैसे- खिचड़ी, दलिया, सूप।
3. हरी सब्जियों का सेवन
गाजर, लौकी, कद्दू जैसी सब्जियां पेट के लिए फायदेमंद होती हैं।
4. मूंग और मसूर दाल
यह दालें सुपाच्य होती हैं और पेट को आराम देती हैं।
5. तनाव को कम करें
तनाव और चिंता से पेट में अम्लता बढ़ती है, इसलिए योग, ध्यान और आराम की आदत डालें।
अल्सर के दौरान जीवनशैली में बदलाव | Lifestyle Changes During Ulcer
- दिन में कई बार हल्का भोजन लें, खाली पेट ना रहें।
- भारी और तैलीय भोजन से बचें।
- तंबाकू, शराब और ड्रग्स से पूरी तरह परहेज करें।
- पर्याप्त नींद लें और तनाव से बचें।
- व्यायाम और योग अपनाएं ताकि शरीर स्वस्थ रहे।
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कब डॉक्टर से संपर्क करें? | When to Consult a Doctor?
- पेट में अत्यधिक तीव्र दर्द होना।
- उल्टी में खून आना या काला मल आना।
- खाने-पीने में असामान्य कठिनाई।
- पेट फूलना या अचानक वजन कम होना।
- दर्द लगातार बनी रहे या बढ़े।
अर्थात्
अल्सर एक गंभीर स्थिति हो सकती है यदि इसका सही इलाज और संतुलित आहार न लिया जाए। खाली पेट रहना अल्सर के लिए खासकर खतरनाक होता है क्योंकि इससे पेट का अम्ल बिना भोजन के सीधे पेट की दीवार को नुकसान पहुंचाता है।
इसलिए अल्सर रोगी को समय-समय पर हल्का और सुपाच्य भोजन करना चाहिए, तनाव से बचना चाहिए, और हरी सब्जी तथा दालों को अपने आहार में शामिल करना चाहिए। इसके साथ ही उचित चिकित्सकीय परामर्श और दवाओं का उपयोग आवश्यक है।
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