Monday, October 13, 2025
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कोजागरा शरद पूर्णिमा पूजा/Kojagara Sharad Poornima Puja

 

कोजागरा शरद पूर्णिमा पूजा/Kojagara Sharad Poornima Puja
कोजागरा शरद पूर्णिमा पूजा/Kojagara Sharad Poornima Puja

हिंदुस्तान की संस्कृति की खासियत यह है कि यहाँ हर त्यौहार का अपना महत्व है और हर अवसर में जीवन के विभिन्न पहलुओं का जश्न मनाया जाता है। चाहे त्योहारों का मौसम हो या फसलों की कटाई का समय, हमारे देश में हर अवसर को श्रद्धा और उत्साह के साथ मनाया जाता है। ऐसी ही एक परंपरा है शरद पूर्णिमा की, जिसे कोजागरा पूर्णिमा या कुआनर पूर्णिमा के नाम से भी जाना जाता है। इस दिन केवल चाँदनी रात ही खूबसूरत नहीं होती, बल्कि इसे मां लक्ष्मी की पूजा के लिए भी समर्पित किया जाता है।

शरद पूर्णिमा: चाँद की रोशनी और आध्यात्मिक अनुभव

शरद पूर्णिमा की रात का दृश्य अत्यंत मनमोहक होता है। अगर आप अपनी छत या आंगन में खड़े होकर चाँद की ओर देखें, तो लगता है जैसे चाँद आपसे कदम से कदम मिलाकर चल रहा हो। कविताई में भी इसे बखूबी व्यक्त किया गया है:

“चलने पर चलता है सिर पर नभ का चन्दा,
थमने पर ठिठका है पाँव मिरगछौने का।”

खेतिहर इलाकों में धान की बालियों के बीच खड़े होकर इस रात चाँद को निहारना एक अद्वितीय अनुभव है। बालियों से निकलती सुगंध और छिटकी हुई चाँदनी एक शांत और ठंडी अनुभूति देती है। यह रात केवल प्रकृति की सुंदरता ही नहीं, बल्कि आध्यात्मिक अनुभव का भी अवसर है।

कोजागरा शरद पूर्णिमा पूजा/Kojagara Sharad Poornima Puja

कोजागरा: लक्ष्मी पूजा की पहली परंपरा

शरद पूर्णिमा की रात लक्ष्मी पूजा की परंपरा सबसे पहले मिथिला क्षेत्र में देखी गई। इसे कोजागरा इसलिए कहा जाता है क्योंकि इस रात मान्यता है कि माता लक्ष्मी जागरूक होती हैं और जो जागकर उनकी पूजा करता है, उसके घर में सुख-समृद्धि आती है। इस दिन घरों में दीपक जलाए जाते हैं, पूजा की जाती है और विशेष रूप से खीर का भोग बनाया जाता है। खीर बनाते समय कई लोग चाँद की रोशनी में खीर रखकर उसे पूर्णिमा की रात में ठंडे वातावरण में ठंडा होने देते हैं, जिसे सौभाग्य और समृद्धि का प्रतीक माना जाता है।

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शरद पूर्णिमा का कृषि और सांस्कृतिक महत्व

असल में, शरद पूर्णिमा एक फसली उत्सव भी है। आश्विन माह में जब खेती-बाड़ी के सारे कामकाज खत्म हो जाते हैं और मॉनसून का मौसम समाप्त हो जाता है, तब यह उत्सव आता है। इसे कौमुदी महोत्सव भी कहा जाता है, जिसका अर्थ है ‘चाँदनी का उत्सव’। यह उत्सव केवल धार्मिक ही नहीं, बल्कि कृषि परंपराओं का भी प्रतीक है।

कौमुदी महोत्सव का सम्बन्ध कृष्ण और गोपियों के रास से भी जोड़ा जाता है। कहा जाता है कि इस रात गोपियां चाँदनी के बीच कृष्ण के रास में भाग लेती थीं। इस तरह, शरद पूर्णिमा का उत्सव न केवल धार्मिक है, बल्कि सांस्कृतिक और सामाजिक परंपराओं से भी जुड़ा हुआ है।

दंतकथाएँ और लोककथाएं

कहानियों के अनुसार, एक समय की बात है जब एक राजा अपने बुरे दिनों में दरिद्र हो गया। उसकी रानी ने कोजागरा की रात जागकर माता लक्ष्मी की पूजा की। उनकी भक्ति और जागरण के कारण राजा की समृद्धि लौट आई। यही कारण है कि आज भी इस रात को जागरण और लक्ष्मी पूजन का विशेष महत्व माना जाता है।

इसके अलावा, कोजागरा की रात देवताओं के राजा इंद्र को भी समर्पित होती है। माना जाता है कि इंद्र देवता इस रात धरती पर आते हैं और अपने भक्तों की रक्षा करते हैं। इस दिन पूजा करने से न केवल धन-संपत्ति की वृद्धि होती है, बल्कि जीवन में सुख-शांति और सौभाग्य भी आता है।

कोजागरा शरद पूर्णिमा पूजा/Kojagara Sharad Poornima Puja

शरद पूर्णिमा की तैयारी और परंपराएँ

शरद पूर्णिमा से जुड़े कई रीति-रिवाज हैं। सबसे प्रमुख है घर की सफाई और दीपक जलाना। लोग रातभर जागकर माता लक्ष्मी की स्तुति करते हैं। इसके अलावा चाँद की रोशनी में खीर, फल और अन्य व्यंजन रखकर उनकी भोग के रूप में पूजा की जाती है। कुछ स्थानों पर लोग खेतों में जाकर फसल की सुरक्षा और समृद्धि की कामना भी करते हैं।

इस रात का अनुभव केवल धार्मिक या आध्यात्मिक नहीं होता, बल्कि यह प्राकृतिक सौंदर्य और सांस्कृतिक परंपराओं का अद्भुत मिश्रण भी प्रस्तुत करता है। शरद पूर्णिमा की रात चाँद की ठंडी और चमकदार रोशनी के बीच जागरण करना आत्मा को शांति और आनंद प्रदान करता है।

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निष्कर्ष/Conclusion

दिवाली की तरह ही शरद पूर्णिमा भी हमारे समाज में समृद्धि, सौभाग्य और आध्यात्मिकता का प्रतीक है। कोजागरा की रात जागकर माता लक्ष्मी की पूजा करना न केवल धन-संपत्ति बढ़ाता है, बल्कि मन और आत्मा को भी संतोष और शांति देता है। खेतों में खड़े होकर चाँद और बालियों की खुशबू का अनुभव करना हमारी परंपराओं की खूबसूरती और प्राकृतिक सौंदर्य का अद्भुत संगम है।

शरद पूर्णिमा, कोजागरा और लक्ष्मी पूजा की ये परंपराएँ हमें यह याद दिलाती हैं कि प्रकृति, संस्कृति और भक्ति हमारे जीवन के अभिन्न हिस्से हैं। इस रात चाँदनी में जागरण और पूजा करके हम न केवल अपनी समृद्धि बढ़ाते हैं, बल्कि अपने जीवन में संतुलन और आध्यात्मिक आनंद भी प्राप्त करते हैं।

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– सारिका असाटी

 

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