Saturday, December 6, 2025
Homeआर्थिकजानकारीकिताबों का भविष्य/future of books

किताबों का भविष्य/future of books

किताबों का भविष्य/future of books
किताबों का भविष्य/future of books

कभी न कभी आपने भी यह सोचा होगा कि दुनिया में कुल कितनी किताबें हैं। गूगल के एक अनुमान के अनुसार, दुनिया में 12,98,64,880 किताबें मौजूद हैं। हालांकि यह आंकड़े विवादित हैं क्योंकि हर किताब अंतर्राष्ट्रीय ISBN के अंतर्गत रजिस्टर्ड नहीं होती। 

किताबों का वास्तविक आंकड़ा | The Real Count of Books 

किसी भी व्यक्ति या संस्था के लिए सटीक आंकड़ा बताना असंभव है। हर दिन नई किताबें छपती हैं, और पुराने संस्करण गायब हो जाते हैं। इसलिए “दुनिया में कितनी किताबें हैं” का प्रश्न हमेशा खुला रहेगा।

पढ़ाकुओं की दुनिया | The World of Avid Readers

दुनिया में हर दसवें व्यक्ति को किताब पढ़ने का शौक होता है, और लाखों में किसी एक को यह जुनून होता है जो इसे जीवन का हिस्सा बना लेता है। भारत में आमतौर पर पढ़ने की आदत कमजोर है। लेकिन बिहार, बंगाल, केरल, महाराष्ट्र और कर्नाटक जैसे राज्यों में किताब संस्कृति मजबूत है। भारत में औसतन लोग साल में 1 से 5 किताबें ही पढ़ते हैं, जबकि यूरोप में यह संख्या 6 से 10 और अमेरिका में 7 किताबें है।

Read this also – अमिताभ बच्चन जन्मदिन कहानी/amitabh bachchan birthday story

इतिहास के सबसे बड़े पढ़ाकू | History’s Greatest Readers 

– 15वीं शताब्दी के स्पेनिश हर्नांडो कोलन ने लगभग 7000 किताबें पढ़कर रिकॉर्ड बनाया।

– आधुनिक काल में रजनीश (ओशो) को पढ़ाकुओं का राजा माना जाता है, जिन्होंने लगभग डेढ़ लाख किताबें पढ़ीं।

– ओशो की पसंदीदा किताबों में ‘द आउटसाइडर’, ‘द बुक ऑफ मिरदाद’, ‘ताओ ती चिंग’ और उमर खय्याम की ‘रुबाइयात’ शामिल हैं।

किताबों का भविष्य/future of booksकिताबों का भविष्य | The Future of Books  

एक वैश्विक सर्वे के अनुसार:

– 30% लोग मानते हैं कि दुनिया बदलने वाली किताबें आने वाले समय में भी जीवित रहेंगी।

– 70% का मानना है कि ई-बुक और मल्टीमीडिया किताबें पारंपरिक किताबों की जगह लेंगी।

 

ई-बुक्स के बढ़ते चलन के बावजूद, किताबों की अपनी खुशबू, स्पर्श और भावनात्मक जुड़ाव है। तकनीक बदल सकती है, लेकिन ज्ञान पाने की इच्छा हमेशा बनी रहेगी।

पढ़ाकू बनाम डिजिटल रीडर | Bookworms vs Digital Readers 

वीडियो एपिसोड, ऑडियोबुक और डिजिटल कंटेंट भी ज्ञान देते हैं, लेकिन क्लासिक “पढ़ाकुओं” के हावभाव, संस्कार और जुड़ाव अलग होते हैं। पढ़ाकू किताबों को सिर्फ पढ़ते नहीं, बल्कि उसी दुनिया में जीते हैं।

निष्कर्ष | Conclusion 

भले ही आने वाले दशकों में पारंपरिक पढ़ाकुओं की संख्या घट सकती है, लेकिन ज्ञान की चाह और संस्कार कभी खत्म नहीं होंगे। किताबें चाहे कागज पर हों या डिजिटल स्क्रीन पर — विचार, कहानियां और प्रेरणा का प्रवाह जारी रहेगा।

Read this also – 93वां वायुसेना दिवस 2025/93rd Air Force Day 2025

यह लेख सामान्य जानकारी पर आधारित है लेख पसंद आये तो इसे ज़्यादा से ज्यादा शेयर करें। अपने विचार और सुझाव कमेंटबॉक्स में ज़रूर लिखे।

 

 

 

RELATED ARTICLES
- Advertisment -
Google search engine

Most Popular

Recent Comments