
भारत में शक्ति पीठों में से एक, असम में नीलाचल पहाड़ी की चोटी पर स्थित कामाख्या मंदिर कई दिलचस्प फैक्ट्स से जुड़ा हुआ है। देश के अन्य मंदिरों के अलावा, कामाख्या मंदिर (Kamakhya Temple) में देवी कामाख्या की कोई मूर्ति नहीं है, साथ ही यहां योनि की पूजा की जाती है। इस मंदिर में होती है मां की योनि की पूजा और प्रसाद में देते हैं खून से लिपटी रूई, ऐसे ही दिलचस्प फैक्ट्स से जुड़ी है यहां की कहानीभारत में शक्ति पीठों में से एक, असम में नीलाचल पहाड़ी की चोटी पर स्थित कामाख्या मंदिर कई दिलचस्प फैक्ट्स से जुड़ा हुआ है। देश के अन्य मंदिरों के अलावा, कामाख्या मंदिर में देवी कामाख्या की कोई मूर्ति नहीं है, साथ ही यहां योनि की पूजा की जाती है। चलिए ऐसे ही कुछ दिलचस्प फैक्ट्स के बारे में आपको इस लेख में बताते हैं।
यह सभी 108 शक्ति पीठों में प्रमुख 18 महा शक्ति पीठों में से एक है/IT IS ONE OF THE 108 MAHA SHAKTI PEETHAS AMONG ALL THE 108 SHAKTI PEETHAS
कामाख्या मंदिर सभी 108 शक्ति पीठों में से एक प्राचीन मंदिरों में से एक है, जिसकी उत्पत्ति 8वीं शताब्दी में हुई थी। इसे 16वीं शताब्दी में कूचबिहार के राजा नारा नारायण ने फिर से बनवाया था। इसके बाद से इसे कई बार फिर से पुनर्निमित किया गया है।
‘मासिक धर्म‘ देवी/MENSTURAL GODDESS
कामाख्या मंदिर में देवी की योनि की मूर्ति की पूजा की जाती है। इसे गुफा के एक कोने में रखा गया है। इसके अलावा मंदिर में देवी की कोई मूर्ति नहीं है। हालांकि, मासिक धर्म के दौरान महिलाओं को मंदिर के अंदर जाने की अनुमति नहीं है।
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मंदिर के पीछे की कहानी/STORY BEHIND THE TEMPLE
कामाख्या मंदिर कामरूप के क्षेत्र में स्थित है, जहाँ मां की योनि गिरी थी। ये मंदिर काफी रहस्यों से घिरा हुआ है। जून आषाढ़) के महीने में कामाख्या के पास से गुजरने वाली ब्रह्मपुत्र नदी लाल हो जाती है। ऐसा कहा जाता है कि नदी लाल होने का कारण है कि इस दौरान मां को मासिक धर्म हो रहे हैं। यह भी कहा जाता है कि मंदिर के चार गर्भगृहों में ‘गरवर्गीहा’ सती के गर्भ का घर है।
शक्तिवाद के पीछे की कहानी/STORY BEHIND SHAKTISM
जब भगवान राजा दक्ष अपनी बेटी के साथ भगवान शिव का विवाह रचाने के इच्छुक नहीं थे और उन्होंने इस वजह से उन्हें यज्ञ में निमंत्रण भी नहीं दिया था। सती को जब इस बात का पता चला तो उनसे शिव का अपमान सहा नहीं गया। गुस्से में सती आग में कूद गई, जब शिव को इस बारे में पता चला, तो वो दुखी होकर सती को गोद में लेकर तांडव करने लगे। देवताओं को जब इस बात की चिंता हुई तब उन्होंने भगवान विष्णु से इसको लेकर मदद मांगी। उन्होंने फिर अपने सुदर्शन चक्र से सती की लाश के 108 टुकड़े कर दिए और शरीर के वो अंग देश के अलग-अलग हिस्सों में जा गिरे।
वार्षिक प्रजनन उत्सव/ANNUAL FERTILITY FESTIVAL
कामाख्या मंदिर एक वार्षिक प्रजनन उत्सव का आयोजन करता है जिसे अंबुबासी पूजा के नाम से जाना जाता है। ऐसा माना जाता है कि इस दौरान देवी का मासिक धर्म होता है। तीन दिनों तक बंद रहने के बाद, मंदिर चौथे दिन उत्सव के साथ फिर से खुल जाता है। इस पर्व के दौरान कहा जाता है कि ब्रह्मपुत्र नदी भी लाल हो जाती है। इस दौरान शक्ति प्राप्त करने के लिए साधू अलग-अलग गुफाओं में बैठक साधना करते हैं। ये जानकार आपको शायद हैरानी हो, लेकिन लोग यहां लोग मां के मासिक धर्म के खून से लिपटी हुई रूई को प्राप्त करने के लिए घंटों पर लाइन में खड़े रहते हैं।कालिका पुराण के अनुसार, कामाख्या मंदिर चार प्राथमिक शक्तिपीठों में से एक है। जगन्नाथ मंदिर, पुरी, ओडिशा में विमला मंदिर; ब्रह्मपुर, ओडिशा के पास तारा तारिणी; और कोलकाता, पश्चिम बंगाल में दक्षिणा कालिका अन्य तीन हैं।माता कामाख्या मंदिर के बारे में कौन नहीं जानता, असम की ये धार्मिक जगह 51 शक्तिपीठों में शुमार है। इस मंदिर को लेकर कई ऐसी रोचक घटनाएं हैं, जिसे सुन लोगों के पैरों तले जमीन खिसक जाती है और यही सोचने पर मजबूर कर देती है, आखिर ऐसा कैसे हो सकता है? बता दें, इस मंदिर में कोई मूर्ती नहीं है, बल्कि यहां माता के योनि कुंड की पूजा की जाती है। जो हमेशा कुछ फूलों से ढकी रहती है। इस कुंड की खासियत ये है यहां से हमेशा पानी निकलता रहता है, और साल के तीन दिन यहां मर्दों की एंट्री पर बैन रहता है। और एक अंश देख भी लिया तो यहां के लोग नराज भी हो जाते हैं और उनका कहना है ऐसा करने से माता का अपमान होता है। चलिए आपको यहां की इस अनोखी चीज के बारे में बताते हैं।
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इन तीन दिनों के लिए बंद रहता है मंदिर/THE TEMPLE REMAINS CLOSED FOR 3 DAYS
22 जून से 25 जून के बीच मंदिर के कपाट बंद रहते हैं, इस समय ब्रह्मपुत्र नदी का पानी लाल रहता है। ऐसा मानते हैं, इन दिनों माता सती रजस्वला (periods) में होती हैं। इन 3 दिनों के लिए पुरुषों को मंदिर में एंट्री करने की अनुमति नहीं मिलती। वहीं, 26 जून को सुबह भक्तों के लिए मंदिर खोलते हैं, जिसके बाद भक्त माता के दर्शन के लिए आते हैं।भक्तों को यहां एक अनोखा प्रसाद भी मिलता है। तीन दिन देवी सती के मासिक धर्म की वजह से माता के दरबार में सफेद कपड़ा रखा जाता है। तीन दिन बाद कपड़े का रंग लाल रहता है, और फिर इसे भक्तों को प्रसाद में बांट दिया जाता है।
कहानी कुछ ऐसी है, माता सती के पिता दक्ष द्वारा एक यज्ञ रखा गया था, जिसमें उन्होंने जानकार शिव भगवान को नहीं बुलाया। वहीं, शंकर जी के इस अपमान को देख माता यज्ञ में कूद जाती हैं, और इस तरह वे अपने प्राणों की आहुति दे देती हैं। भगवान शंकर को जब ये पता चलता है, तो वो क्रोध में आकर तीसरी आंख खोल लेते हैं।
उसके बाद भगवान शंकर यज्ञ कुंड से सती के मृत शरीर को उठाकर दुखी होकर पूरे संसार में घूमने लगते हैं। इस बीच भगवान विष्णु शंकर जी की ये हालत देख अपना चक्र घुमाते हैं और सती के शरीर को काट देते हैं। जो टुकड़े यहां-वहां गिरते हैं, उन सभी स्थानों को आज 51 शक्तिपीठों में गिना जाता है। बता दें, असम की इस जगह पर माता सती की योनि का भाग गिरा था।
क्या है इस जगह की मान्यता/ WHAT IS THE RECOGNITION OF THIS PLACE
इस मंदिर में ये मान्यता है कि जो भी बाहर से आए भक्तगण जीवन में तीन बार दर्शन के लिए आते हैं, उनका सांसारिक जीवन दुखों से मुक्त हो जाता है। ये मंदिर तंत्र विद्या के लिए भी फेमस है। यही कारण है मंदिर के कपाट खुलने पर दूर-दूर से साधू-संत और तांत्रिक करने के लिए पहुंचते हैं।
कामाख्या देवी मंदिर जाने का अच्छा समय/GOOD TIME TO VISIT KAMAKHYA DEVI TEMPLE
कामाख्या देवी मंदिर जाने का सबसे अच्छा समय सितंबर से फरवरी तक है। इस दौरान यहां का मौसम ठंडा और घूमने-फिरने के लिए अच्छा होता है। इस समय तापमान आम तौर पर 15 से 25 डिग्री सेल्सियस के बीच रहता है। इस सुहावने मौसम में आप आसानी से घूम सकते हैं और बाहर की गतिविधियों का आनंद ले सकते हैं।
कामाख्या मंदिर कैसे पहुंचे/HOW TO REACH KAMAKHYA TEMPLE
वायु मार्ग: कामाख्या मंदिर गुवाहाटी में स्थित है। आप पहले गुवाहाटी एयरपोर्ट तक फ्लाइट में आ सकते हैं। फिर एयरपोर्ट से टैक्सी या ऑटो-रिक्शा लेकर सीधे मंदिर तक पहुंच सकते हैं।
रेल मार्ग: गुवाहाटी रेलवे स्टेशन पर पहुंचकर, आप टैक्सी, ऑटो-रिक्शा या स्थानीय बस सेवाओं का उपयोग करके कामाख्या मंदिर जा सकते हैं।
सड़क मार्ग: यदि आप गुवाहाटी में हैं, तो आप टैक्सी, ऑटो-रिक्शा, या बस का उपयोग करके सीधे कामाख्या मंदिर पहुंच सकते हैं। गुवाहाटी शहर से मंदिर की दूरी लगभग 8 किलोमीटर है, और टैक्सी से यात्रा करने पर लगभग 20-30 मिनट लग सकते हैं।
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