ना रहें निष्क्रिय
खाली बैठ कर व्यक्ति निष्कर्मावस्था का आनंद प्राप्त नहीं करता। शरीर के द्वारा निष्क्रिय हो गए तो क्या लाभ, क्योंकि बंधन और मोक्ष का कारण तो मन है। तो मन को निष्क्रिय बनाना होगा। मन की निष्क्रियता है– कर्म और कर्मफल से अनासक्त रहना। जानें कर्म और पाखंड में अंतर क्या है–
उद्योग करना ना छोड़ें/ don’t stop doing business
- आलसी बनकर बैठे मत रहो।
- मत सोचो कि फल में अपना अधिकार ही नहीं तो फिर कर्म क्यों करना।
- उद्योग करने पर भी फल प्राप्त होगा, यह निश्चित नहीं, यह सोचकर निष्क्रिय ना रहें। फल प्राप्त हो भी, तो वह प्रारब्ध से होता है, उद्योग उसका कारण नहीं, ऐसा समझकर उद्योग करना ही मत छोड़ दो।
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कर्म है कर्तव्य/ karma is duty
- कर्म करना तुम्हारा कर्त्तव्य है, अतः तुम्हें कर्म तो करना ही चाहिए।
- तुम कर्म को छोड़ नहीं सकते, कर्म करने के लिए विवश हो।
गीता में कहा गया है –
न कश्चित्क्षणमपि जातु तिष्ठत्यकर्मकृत्।
कार्यते ह्यवशः कर्म सर्वः प्रकृतिजैर्गुणैः ॥
कोई उत्पन्न हुआ प्राणी एक क्षण भी बिना कर्म किए नहीं रह सकता।
प्रकृति के गुणों से विवश होकर गुणों द्वारा उससे कर्म कराया ही जाता है।
सभी इस प्रकार प्रतिक्षण कर्म करते ही रहते हैं।
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पाखंडी कौन/ who is hypocrite
- चाहे हम इंद्रियों को रोककर कर्म करने से विरत भी रख सकें, पर मन तो मानने से रहा। उसकी उधेड़बुन तो चला ही करेगी।
- फिर इस प्रकार इंद्रियों से कर्म न करना कोई अच्छा तो है नहीं।
- जो मूर्खबुद्धि मनुष्य कर्मेंद्रियों को कर्मों से रोककर मन के द्वारा विषयों का चिंतन करता है, वह पाखंडी कहा जाता है।
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