Thursday, September 19, 2024
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आइज़क न्यूटन की कहानी (Story of Isaac Newton)

गति नियमों के जनक आइज़क न्यूटन / father of Laws of motion Isaac newton

सर आइज़क न्यूटन की कहानी  (Story of Isaac Newton) बेहद प्रेरणाप्रद है। उन्होंने गति के 3 नियमों  (Laws of Motion ) का प्रतिपादन किया था। आइज़क न्यूटन के नियम उनकी किताब प्रिन्सिपिआ में दर्ज हैं।

न्यूटन और गति के नियम

आइए आज महान गणितज्ञ, भौतिक शास्त्री और वैज्ञानिक सर आइजक न्यूटन की कहानी जानते हैं।

उन्होंने कई अविष्कारों के साथ ही गति के तीन नियम प्रतिपादित किए।

     सर आइज़क न्यूटन की कहानी
1.बचपन  (childhood)
2. शुरू से ही रही रचनात्मक प्रवृत्ति  (Creative Instinct from beganing)
3. कॉलेज में प्रवेश (college admission)
4. गणित से साक्षात्कार (Introduction with Mathematics)
5. गाँव लौटे (Return to the Home village)
6. लिखी किताब प्रिंसिपिआ (The Mathematical Principles of Natural Philosophy)
7. गति के नियमों का प्रतिपादन (Formulation of laws of motion
  1. प्रथम नियम (Law of Inertia)
2. द्वितीय नियम (Law of Force)
3. तृतीय नियम (Law of Action and Reaction)
8. ऐसे समझें गुरुत्वाकर्षण व गति के नियमों को (Force of Gravity and Laws of Motion in hindi)
9. अग्नि की उड़ती छड़ी रॉकेट (Flying stick of fire Rocket)
10. विनम्र सर आइजक न्यूटन (Humble Sir Isaac Newton in Hindi)
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बचपन (Childhood)

  • लिंकन शायर के वूल्सथोर्प नामक गाँव में सन् 1642 की क्रिसमस के दिन एक बालक का जन्म हुआ।
  • इस बालक का नाम था आइजक न्यूटन।
  • उसमें अन्य बच्चों के मुकाबले कोई विशेषता नहीं थी।
  • वह भी उन्हीं अनेक बातों को करता था जिनमें आज भी बच्चे आनन्द लेते हैं।
  • सबसे अधिक, वह अपने हाथों से काम करना पसन्द करता था।

शुरू से ही रही रचनात्मक प्रवृत्ति ((Creative Instinct from beganing)

  • वह खेलने के लिए छोटी- छोटी चीज़ों को बनाता था।
  • जैसे पहियोंवाली कुर्सी और बहुत-सी छोटी- छोटी मशीनें।
  • उसके कुछ खिलौने पानी के जोर से चलते थे क्योंकि  उसके घर के पास बहुत से छोटे-छोटे नाले बहते थे।
  •  आइज़क न्यूटन ने एक छोटी-सी चक्की भी बनायी थी जो पवन शक्ति से, वास्तविक चक्की की तरह चलती थी।
  • उसने पनचक्कियों और जल घड़ियाँ भी बनायी थीं।

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कॉलेज में प्रवेश (college admission)

  • 18 वर्ष के होने पर आइजक न्यूटन ‘कैम्ब्रिज के महान् विश्व विद्यालय ट्रिनिटी में प्रविष्ट हुए।
  •  कैम्ब्रिज में उन दिनों उस युग के महान् व्यक्ति ही प्राध्यापक होते थे।
  • उन्होंने प्रसिद्ध पुस्तकें लिखी थीं और विज्ञान के आश्चर्यजनक आविष्कार किए थे।
  • इन प्राध्यापकों ने आइज़क न्यूटन को चिन्तन करने और ज्ञानोपार्जन के लिए कार्य करने का मार्ग ‘दिखाया।

आइजक न्यूटन का गणित से साक्षात्कार (Isaac Newton’s Introduction with Mathematics)

  • कैम्ब्रिज विश्वविद्यालय में आइज़क न्यूटन का साक्षात्कार गणित से हुआ और उनका सोया मस्तिष्क जाग उठा ।
  • थोड़े ही समय में उस किशोर ने उस सारे गणित के ज्ञान को सीख लिया जो उस समय के संसार को ज्ञात था।
  • फिर उसने अपने विचारों और तरीकों से उस ज्ञान की वृद्धि करना आरम्भ किया।
  • उसकी बीसवीं वर्षगाँठ तक उसकी गणना संसार के महानतम् गणितज्ञों में होने लगी।

गाँव लौटे आइजक न्यूटन (Return to the Home village)

  • सन् 1665 में एक भयानक बीमारी ने इंग्लैण्ड पर आक्रमण किया।
  • वहाँ हज़ारों लोगों की मृत्यु हो गई।
  • कैम्ब्रिज विश्वविद्यालय बन्द कर दिया गया।
  • जो विद्यार्थी वहाँ अध्ययन कर रहे थे, वे उस बीमारी से बचने के लिए देहात में, अपने घरों को चले गये।
  • आइज़क न्यूटन उस छोटे से गाँव में वापस चले गये जहाँ उनका जन्म हुआ था।
  • वूल्सथोर्प नामक उस गांव में आइज़क न्यूटन ने बहुत अकेलापन महसूस किया।
  • कैम्ब्रिज विश्वविद्यालय में उन्होंने जो आश्चर्यजनक नई बातें सीखीं थीं, उन्हें उनका कोई मित्र या सम्बन्धी नहीं समझ सकता था।
  • जिस समय वे कैम्ब्रिज विश्वविद्यालय में थे, उन्हें कुछ दिलचस्प बातें सूझा करती थीं।
  • घर के लम्बे प्रवास को उन्होंने उनकी जाँच-पड़ताल में व्यतीत किया।
  • आइज़क न्यूटन को ऐसा प्रतीत होता था कि प्राकृतिक शक्तियाँ निश्चय ही कुछ नियमों में बँधी हैं।
  • लेकिन किसी को उन नियमों का पता नहीं था।
  • वे उन नियमों को मालूम करने के कार्य में जुट गए।
  • नियमों के पता लगते ही वे गणित द्वारा उनकी सत्यता जाँचते रहते थे।

लिखी किताब प्रिंसिपिआ (The Mathematical Principles of Natural Philosophy)

  • जब कैम्ब्रिज विश्वविद्यालय पुनः खुला तब वे गाँव से लौटे और फौरन प्राध्यापक बना दिए गये।
  • महामारी के दिनों में उन्होंने जिस कार्य को आरम्भ किया था, उसे वे कई वर्ष तक पूरा नहीं कर सके।
  • आइज़क न्यूटन को बहुत-सा धन कमा लेने या प्रसिद्धि प्राप्ति की इच्छा नहीं थी।
  • आखिरकार उनके मित्रों ने उन्हें अपनी खोजों के बारे में एक पुस्तक लिखने के लिये राजी कर ही लिया।
  • आइज़क न्यूटन ने अपनी पुस्तक का नाम प्रिन्सिपिआ रखा।
  • पुस्तक को पढ़कर विद्वानों ने उसके लेखन की वास्तविक महानता को समझ लिया।

गति के नियमों का प्रतिपादन (Formulation of laws of motion)

  • अपनी पुस्तक प्रिन्सिपिआ में आइजक न्यूटन ने गति के उन 3 सिद्धान्तों का वर्णन किया है
  • जो अंतरिक्ष यात्रा के लिये आवश्यक नियम हैं।

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प्रथम नियम (Law of Inertia in Hindi)

इस नियम के अनुसार, “प्रत्येक वस्तु जिस अवस्था में है, वह उसी अवस्था में रहेगी

अर्थात स्थिर है तो स्थिर रहेगी तथा गति की अवस्था में है तो उसी वेग से गति करती रहेगी जब तक कि उस पर कोई और बाह्य बल न लगाया जाए ।”

द्वितीय नियम (Law of Force in Hindi)

“किसी वस्तु के संवेग परिवर्तन की दर, उस वस्तु पर लगाए गए बल के अनुक्रमानुपाती होती है।

तथा संवेग में परिवर्तन की दिशा वही होती है। जिस दिशा में वस्तु पर बल आरोपित किया गया है।”

तृतीय नियम (Law of Action and Reaction in Hindi)

  • “प्रत्येक क्रिया के बराबर तथा विपरीत प्रतिक्रिया होती है। अर्थात् दो वस्तुओं (या विण्डों) की पारस्परिक क्रियाएं सदैव विपरीत व बराबर होती हैं।”

स्पेस वैज्ञानिकों के लिए उपयोगी ज्ञान (useful knowledge for space sciencetists in Hindi )

  • अंतरिक्ष यानों के चालकों को, जिन्हें ऐस्ट्रोनॉट अर्थात तारों के बीच यात्रा करने वाला कहा जाता है, इन नियमों का ज्ञान होना आवश्यक है।
  •  भविष्य के सब अंतरिक्ष यान चालकों के लिये भी यह ज्ञान आवश्यक बना रहेगा।

ऐसे समझें गुरुत्वाकर्षण व गति के नियमों को (Force of Gravity and Laws of Motion in hindi)

  • आइज़क न्यूटन द्वारा प्रतिपादित एक नियम से ज्ञात होता है कि गुरुत्वाकर्षण कैसे कार्य करता है।
  • उन्होंने सिद्ध कर दिया कि ज्यों- ज्यों हम पृथ्वी से परे चलते जाते हैं, गुरुत्वाकर्षण घटता जाता है।
  • पहले यह समझा जाता था कि अंतरिक्ष में, किसी खास स्थान पर, पृथ्वी का गुरुत्वाकर्षण एकदम समाप्त हो जाता है।
  • आइज़क न्यूटन ने बताया कि बड़े-बड़े तारे से लेकर धूल के कण तक, ब्रह्माण्ड के सब पदार्थ एक-दूसरे को आकर्षित करते हैं।

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  • इस अदृश्य आकर्षण को गुरुत्वाकर्षण कहते हैं।
  • पृथ्वी का गुरुत्वाकर्षण प्रत्येक वस्तु को हमारे ग्रह पृथ्वी के केन्द्र की ओर अधिकाधिक जोर के साथ खींचता रहता है।
  • आइज़क न्यूटन के नियम के अनुसार, अंतरिक्ष यान में भी गुरुत्वाकर्षण होता है।
  • अतः पृथ्वी और अंतरिक्ष यान भी एक-दूसरे को अपनी ओर खींचते हैं।
  • पृथ्वी पर जब अंतरिक्ष यान खड़ा होता है तब वह गुरुत्वाकर्षण के कारण भूमि से जुड़ा रहता है।
  •  अंतरिक्ष की तरफ उठने के लिए यह आवश्यक है कि अंतरिक्ष यान अपने और पृथ्वी के बीच उपस्थित आकर्षण को हटा सके।
  •  इसके लिए हमें ऊपर उठाने की शक्ति को इतना बढ़ाते जाना होगा कि अन्तरिक्ष यान गुरुत्वाकर्षण की सीमा से बाहर निकल जाए।
  • जब अंतरिक्ष यान पर ऊपर उठाने वाला बल अधिक हो जाता है,
  • तब वह धरती को छोड़ देता है और ऊपर की ओर अधिकाधिक वेग के साथ चलने लगता है।
  •  यदि उसका वेग पर्याप्त रहे तो वह पृथ्वी के खिंचाव से मुक्त हो जायेगा और अंतरिक्ष में उड़ता रहेगा।
  • उसका इंजन बंद कर दिया जाए तो भी उसका उड़ना जारी रहेगा।
  • अंतरिक्ष-यान की गति धीरे-धीरे मंद होती जाएगी; परन्तु उसको आगे ले जाने वाली गति सदा इतनी बनी रहेगी कि वह पृथ्वी से दूर हटता जाए।
  •  इसका कारण, जैसा कि आइज़क न्यूटन ने बताया था, यह है कि
  • जैसे- जैसे हम पृथ्वी से दूर होते जाते हैं, इसका गुरुत्वाकर्षण कमजोर पड़ता जाता है। यदि अंतरिक्ष यान पृथ्वी के बंधन से मुक्त होना चाहता है
  • तो पृथ्वी तल को छोड़ते समय उसकी गति सात मील प्रति सेकिण्ड से कुछ अधिक ही होनी चाहिए।
  • जो अंतरिक्ष यान सात मील प्रति सेकिण्ड वाला पलायन वेग प्राप्त करने में सफल नहीं होता, वह..
  • सीधे ऊपर की ओर छोड़े जाने पर वापस पृथ्वी पर गिर पड़ेगा और नष्ट हो जायेगा।
  • अतः अंतरिक्ष यान को जरा तिरछी दिशा में छोड़ना चाहिए।
  • यदि ऐसा ठीक तरह से किया जाए और वेग काफी तेज़ हो तो अंतरिक्ष यान एक दीर्घ वृत्ताकार कक्षा में पृथ्वी के केन्द्र की ओर खिंचेगा;
  • परन्तु चूँकि वह अपनी कक्षा में बहुत अधिक वेग से घूम रहा है, उसकी ऊँचाई कम नहीं होगी।
  • अंतरिक्ष यान पृथ्वी को घेरने वाले एक बड़े वृत्त में गिरता रहेगा
  • और उसी बिन्दु पर लौटता रहेगा, जहाँ से उसका गिरना आरम्भ हुआ था।
  • यदि अंतरिक्ष यान को कक्षा में स्थापित करना हो तो
  • उसको इतनी शक्ति से छोड़ना चाहिए कि उसका वेग कम-से-कम पाँच मील प्रति सैकिण्ड हो।
  • यदि अंतरिक्ष यान की कक्षा वायुमण्डल से ऊपर होगी तो वह हजारों वर्ष तक कक्षा में घूमता रह सकता है।
  • मनुष्य द्वारा निर्मित उपग्रह इन्हीं नियमों के तहत अंतरिक्ष में घूम रहे हैं।
  • अर्थात् वे वैज्ञानिक वस्तुएँ जिन्हें मनुष्य ने पृथ्वी की परिक्रमा करने के लिए अंतरिक्ष में भेजा है,
  • आजकल इन्हीं नियमों के अनुसार चल रही हैं।

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  • कभी-कभी किसी मानव निर्मित उपग्रह की कक्षा पृथ्वी के वायुमंडल के बहुत निकट आ जाती है।
  • इससे उसका अग्रिम वेग कुछ कम हो जाता है।
  • उसकी ऊँचाई कम होने लगती है और वह नीचे आने लगता है।
  • जब वह अधिकाधिक घने वायुमण्डल में से वेगपूर्वक गुजरता है तो वायु के करोड़ों सूक्ष्म कणों से रगड़ खाता है।
  • इससे उपग्रह का धातु का बना बाह्य कवच गरम हो जाता है और यान जल जाता है।
  • अंतरिक्ष यात्रा के लिए आइज़क न्यूटन का गुरुत्वाकर्षण नियम इसलिए महत्त्वपूर्ण है
  • क्योंकि उससे हम मालूम कर सकते हैं कि पृथ्वी के बंधन से यान को मुक्त करने के लिए कितने बल का मुकाबला करना होगा।
  •  ‘प्रिन्सिपिआ’ में दिये गए कुछ अन्य नियमों की सहायता से हम ऐसे यान की योजना बना सकते हैं
  • जो वायुहीन अंतरिक्ष में उड़ सकता है।
  • अंतरिक्ष यात्रा के लिए आवश्यक इन नियमों को गति के नियम कहते हैं।
  • एक ऐसे विशाल, रिक्त अंतरिक्ष की कल्पना कीजिए जिसमें न तारे हों न ग्रह, न गुरुत्वाकर्षण हो न वायु।
  • अब एक ऐसे अंतरिक्ष यान की कल्पना कीजिये जिस पर किसी प्रकार के बलों का भी प्रभाव नहीं है।
  •  मान लीजिए कि यान चालक इस अंतरिक्ष में गति करना चाहता है।
  •  वह अपने इंजन को चालू कर इतनी शक्ति उत्पन्न करता है कि यान आवश्यक वेग से मुक्त हो जाता है।
  •  अब वह इंजन को बन्द कर देता है।

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  •  चूँकि यान पर किसी प्रकार के बल का प्रभाव नहीं पड़ रहा, अतः वह एक सरल रेखा में, सदा चलता रहेगा।
  • यदि चालक यान को मोड़ना चाहता है तो उसे इंजन के बल का केवल इतना उपयोग करना होगा कि यान दायें या बायें मुड़ जाये।
  • वह अपने इंजन का उपयोग यान के वेग को तेज या मन्द करने के लिए भी करता रहता है।
  • जब यान इच्छित वेग से मुक्त हो जाता है तब वह इंजन को बन्द कर देता है और नई दिशा में पुनः चलने लगता है।
  • यह अन्तरिक्ष यान आइज़क न्यूटन के गति सम्बन्धी प्रथम और द्वितीय नियमों के अनुसार कार्य कर रहा है।
  • उस अंतरिक्ष में, अंतरिक्ष के लिए उपयोगी गति का तीसरा नियम है।
  • जहाँ ऐसी कोई वस्तु नहीं है जिस पर दबाव डालकर यान को मोड़ा जाये।
  • यान चालक यान को मोड़ने के लिए इंजन का उपयोग किस तरह कर सकता है ?
  • इस प्रश्न का उत्तर, आइज़क न्यूटन के तीसरे गति नियम में निहित है। इस नियम को प्रायः समान और विपरीत क्रिया का नियम कहते हैं।
  • इसका उदाहरण यह है जब बन्दूक दागी जाती है तब गोली बन्दूक के मुँह से बलपूर्वक आगे को धकेली जाती है।
  • साथ ही उतना ही बल विपरीत दिशा में काम करता है और बन्दूक पिछली तरफ को झटका खा जाती है।
  • अंतरिक्ष यान का चालक जब यान को आगे ले जाना चाहता है तब उसे चाहिए कि बन्दूक की तरह उस पर वापसी धक्का लगने दे।
  • उसके यान के ईंधन, साथ लाई हुई वायु द्वारा जलते हैं।
  • इससे गरम गैसें उत्पन्न होती हैं।

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  • अंतरिक्ष यान के इंजन का पिछला भाग खुला होता है अतः गैसें इंजन के पिछले भाग पर दबाव नहीं डाल सकतीं।
  •  वे केवल उसकी अगली दीवार पर दबाव डालती हैं, इससे इंजन और यान आगे की ओर चलते हैं।
  • इंजन के पिछले खुले भाग से गैसें उसी तरह बाहर निकलती हैं जिस तरह बन्दूक के मुँह से गोली आगे की ओर बाहर निकलती है।
  • जिस तरह बन्दूक पीछे की ओर उछलती है, उसी प्रकार यान आगे की ओर उछलता है। सारे धक्के अन्दर की तरफ से इंजन की अगली दीवार पर लगते हैं।
  • आइज़क न्यूटन को मालूम था कि वायुहीन अंतरिक्ष में किसी यान को चलाने और घुमाने के लिए
  • उनका बताया गति का तीसरा नियम ही सहायक हो सकता है।
  • अपनी महान् पुस्तक में उन्होंने लिखा था, यही नियम आने वाली शताब्दियों में मनुष्यों को तारों तक पहुँचाने में सहायक होगा।
  • आइजक न्यूटन के नियमों के आधार पर अंतरिक्ष के लिए उपयुक्त यान की रूपरेखा निश्चित की जा सकती है।
  • अंतरिक्ष यान के लिए इतने वेग से चलना आवश्यक है कि वह पृथ्वी के बंधन से मुक्त हो जाये।
  • उसके इंजन को ईंधन जलाने के लिए या सही दिशा में चलने के लिए बाह्य वायु पर निर्भर नहीं होना चाहिए।
  • अंतरिक्ष-यान का संचालन समान और विपरीत क्रियाओं के नियम के आधार पर होना चाहिए
  • अर्थात् उसे बन्दूक की तरह वापसी धक्के लगते रहने चाहिए ।

अग्नि की उड़ती छड़ी रॉकेट (Flying stick of fire Rocket)

  • आइज़क न्यूटन द्वारा आविष्कृत गुरुत्वाकर्षण नियम तथा गति- नियमों का पृथ्वी पर कई प्रकार से उपयोग किया गया।
  • परन्तु उनके बाद के महान् वैज्ञानिकों में से किसी ने भी यह नहीं महसूस किया कि ये नियम तारों तक जाने का तरीका बताते हैं।
  • फिर भी, ‘प्रिन्सिपिआ’ की रचना से 400 वर्ष पूर्व एक ऐसी वस्तु का आविष्कार हो चुका था
  • जो अंतरिक्ष यान के लिए आइज़क न्यूटन के बताए नियमों से मेल खाती थी ।
  • इस वस्तु का आविष्कार चीनियों ने किया था और वे इसे ‘अग्नि की उड़ती हुई छड़ी’ कहते थे।
  • आजकल हम उस पुरानी चीनी ‘अग्नि- छड़ी’ को एक और नाम ‘राकेट’ से पुकारते हैं।

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विनम्र सर आइजक न्यूटन (Humble Sir Isaac Newton in Hindi)

  • यद्यपि सर आइजक न्यूटन को इंग्लैण्ड के उच्चतम सम्मान मिले,
  • फिर भी वे यह न भूले कि कोपर्निकस, गैलीलियो और केप्लर बहुत कार्य पहले ही कर चुके हैं।
  • उन्होंने कहा था, `यदि मैंने अन्य लोगों की अपेक्षा अधिक दूर तक देखा है तो कारण यह है कि मैं महान पुरुषों के कंधों पर खड़ा रहा हूँ।’

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