Friday, September 12, 2025
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अनंत चतुर्दशी का महत्व/Importance of Anant Chaturdashi

अनंत चतुर्दशी का महत्व/Importance of Anant Chaturdashi
अनंत चतुर्दशी का महत्व/Importance of Anant Chaturdashi

अनंत चतुर्दशी पर भगवान विष्णु की पूजा की जाती है। हिन्दू पंचांग के अनुसार हर साल भाद्रपद महीने के शुक्ल पक्ष की चतुर्दशी तिथि को अनंत चतुर्दशी का पर्व मनाया जाता है। पौराणिक मान्यता है कि अनंत चतुर्दशी व्रत पर भगवान विष्णु की पूजा करने से सारे दुख दूर हो जाते हैं।

अनंत चतुर्दशी भारतीय संस्कृति और धर्म में विशेष महत्त्व रखती है। यह पर्व मुख्य रूप से हिंदू धर्म में भगवान विष्णु के अनंत रूप की पूजा के रूप में मनाया जाता है। अनंत चतुर्दशी का अर्थ है ‘अनंत’ (जिसका कोई अंत न हो) और ‘चतुर्दशी’ (चौदहवां दिन), जो भाद्रपद महीने के शुक्ल पक्ष की चतुर्दशी तिथि को मनाया जाता है।

अनंत चतुर्दशी का धार्मिक महत्व

अनंत चतुर्दशी का प्रमुख धार्मिक महत्त्व भगवान विष्णु की पूजा से जुड़ा है, जिन्हें इस दिन अनंत रूप में पूजा जाता है। मान्यता है कि भगवान विष्णु सृष्टि, पालन और संहार की प्रक्रिया को नियंत्रित करने वाले देवता हैं और अनंत रूप में वह सम्पूर्ण ब्रह्मांड का संचालन करते हैं। इस दिन लोग भगवान विष्णु की पूजा कर उनसे अपने जीवन में समृद्धि, सुख और शांति की कामना करते हैं।

अनंत चतुर्दशी व्रत के दौरान करें विशेष उपाय

अनंत चतुर्दशी पर भक्तगण उपवास रखते हैं और अनंत सूत्र धारण करते हैं। यह एक धागा होता है जिसमें चौदह गांठें होती हैं और इसे पुरुष दाहिने हाथ में तथा महिलाएं बाएं हाथ में बांधती हैं। इसे धारण करने से भगवान विष्णु की कृपा प्राप्त होती है और जीवन में सभी बाधाओं का अंत होता है। मान्यता है कि अनंत सूत्र बांधने से व्यक्ति के जीवन में किसी भी प्रकार की समस्या या संकट का निवारण होता है।

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अनंत चतुर्दशी व्रत की पौराणिक कथा

अनंत चतुर्दशी से जुड़ी एक प्रमुख पौराणिक कथा महाभारत के काल से संबंधित है। पांडवों के वनवास के समय, श्रीकृष्ण ने युधिष्ठिर को अनंत चतुर्दशी का व्रत रखने का परामर्श दिया था ताकि उनकी कठिनाइयां समाप्त हों। कथा के अनुसार, इस व्रत से युधिष्ठिर को अपना खोया राज्य फिर से प्राप्त हुआ और उनके सभी कष्ट दूर हो गए। इस कथा के आधार पर, यह पर्व संकटों के निवारण और अनंत भगवान की कृपा प्राप्ति के लिए विशेष महत्त्व रखता है।

अनंत चतुर्दशी का सामाजिक और सांस्कृतिक महत्त्व

अनंत चतुर्दशी का महत्व केवल धार्मिक नहीं बल्कि सांस्कृतिक और सामाजिक भी है। इस दिन लोग सामूहिक रूप से भगवान विष्णु की पूजा करते हैं और व्रत रखते हैं, जिससे समाज में एकता और सहयोग की भावना को बढ़ावा मिलता है। कई जगहों पर इस पर्व के साथ-साथ गणेश विसर्जन का भी आयोजन होता है, जिससे यह पर्व और भी विशेष महत्व रखता है। महाराष्ट्र और कुछ अन्य राज्यों में गणेशोत्सव के अंतिम दिन यानी अनंत चतुर्दशी पर गणपति बप्पा की प्रतिमाओं का विसर्जन किया जाता है। इस दिन गणेश भक्त बड़ी श्रद्धा और धूमधाम से गणेश प्रतिमाओं का विसर्जन करते हैं।

अनंत चतुर्दशी पर आध्यात्मिक संदेश

अनंत चतुर्दशी का पर्व हमें यह संदेश देता है कि जीवन में आने वाले कष्ट और समस्याएं अस्थायी होती हैं, और भगवान विष्णु की कृपा से इनका अंत हो सकता है। यह पर्व यह भी सिखाता है कि हमें धैर्य, श्रद्धा और विश्वास के साथ जीवन के कठिनाइयों का सामना करना चाहिए और भगवान का आश्रय लेना चाहिए। सन्त तुलसी दास ने भी कहा है –
श्रद्धा बिनु न होय विश्वासा,
बिनु विश्वास न भव भय नाशा ।

अनंत सूत्र इस बात का प्रतीक है कि भगवान विष्णु का आशीर्वाद हमेशा हमारे साथ है और उनके अनंत रूप का ध्यान करने से हम जीवन में आने वाली सभी बाधाओं को पार कर सकते हैं। इस प्रकार, अनंत चतुर्दशी भारतीय संस्कृति और धार्मिक परंपराओं में अत्यंत महत्त्वपूर्ण पर्व है, जो जीवन में सुख-शांति, समृद्धि, और संकटों के निवारण की कामना के साथ मनाया जाता है।

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– सारिका असाटी
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