Thursday, September 19, 2024
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अधिकार और कर्त्तव्य

अधिकार का दूसरा पहलू है कर्त्तव्य

पृथ्वी पर जो संघर्ष मचा हुआ है, उसका एक मात्र कारण यह है कि आज सब अपने अधिकारों पर ही दृष्टि रखते हैं। यह भूल जाते हैं कि अधिकार का दूसरा पहलू कर्त्तव्य है। जो एक का अधिकार है, वह दूसरे का कर्त्तव्य है।

  • यदि हमको स्वयं पर निष्ठा है।
  • अपनी परंपरा पर श्रद्धा है।
  • तो विश्वास भी हमें होना ही चाहिए कि अपनी संस्कृति और सभ्यता पर हमारी अमिट छाप होगी।
  • भारतीय संस्कृति का मूल मंत्र धर्म है।
  • पृथ्वी पर जो संघर्ष मचा हुआ है, उसका एक मात्र कारण यह है कि आज सब अपने अधिकारों पर ही दृष्टि रखते हैं।
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  • यह भूल जाते हैं कि अधिकार का दूसरा पहलू कर्त्तव्य है।
  • जो एक का अधिकार है, वह दूसरे का कर्त्तव्य है।
  • यदि सब अपने कर्त्तव्यों पर ध्यान दें, तो सबको अधिकार आप ही प्राप्त हो जाएँ।
  • अधिकार का भूखा कहता है, ‘दूसरों से मुझे अमुक-अमुक बातें प्राप्त होनी चाहिए।’
  • कर्त्तव्य का उपासक कहता है, ‘दूसरों को मुझ से अमुक-अमुक बातें प्राप्त होनी चाहिए।’
  • पहला भाव कटुता, दूसरा सौहार्द्र फैलाता है।
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  • यदि हम यह समझ लें कि सबका सब पर ऋण है।
  • सबका सबके कल्याण से संबंध है।
  • मुझे अपना ऋण चुकाना ही है।
  • तो सभी अनायास श्रेय के भागी हो जाएँगे।
  • इसी का नाम धर्म है।
  • राष्ट्रीय और अंतर्राष्ट्रीय जीवन के लिए इससे अच्छा कोई मार्ग नहीं हो सकता।

  • भारत का नागरिक हिंदू, मुसलमान, ईसाई या चाहे जो हो, उसको प्रत्येक काम धर्मबुद्धि से करना चाहिए।
  • धर्म भारतीय संस्कृति का एकमात्र मूल है, धर्म का अर्थ मजहब नहीं है।
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