
वैशाख माह में शुक्ल पक्ष की तृतीया तिथि को अक्षय तृतीया पर्व मनाया जाता है। इस दिन सूर्य और चंद्रमा दोनों ही अपनी उच्च राशि में मौजूद होते हैं और शुभ परिणाम देते हैं। इस दिन अन्नदान जरूर करें। इसका बहुत महत्व है।
दान-पुण्य का है महत्व

- उच्च राशि में मौजूद सूर्य और चंद्रमा की सम्मिलित कृपा का फल अक्षय तृतीया के रूप में प्राप्त होता है।
- अक्षय तृतीया पर मूल्यवान वस्तुओं की खरीदारी और दान-पुण्य के कार्य भी शुभ माने जाते हैं।
- सोना खरीदना इस दिन सबसे ज्यादा शुभ होता है। इससे धन की प्राप्ति और दान का पुण्य अक्षय बना रहता है।
- कहते है, अक्षय तृतीया पर सोने-चांदी की चीजें खरीदने से जातक का भाग्योदय हो जाता है।
- इसके अलावा, पवित्र नदियों में स्नान, दान, ब्राह्मण भोज, श्राद्ध कर्म, यज्ञ और ईश्वर की उपासना जैसे उत्तम कार्य इस तिथि पर अक्षय फलदायी माने जाते हैं।
- इस दिन शुरू किया गया कोई भी शुभकार्य आसानी से संपन्न हो जाता है। इस दिन आप शुभ मुहूर्त देखे बिना कोई भी शुभकार्य संपन्न कर सकते हैं।
अक्षय तृतीया तिथि
- इस बार 10 मई को सुबह 4 बजकर 17 मिनट पर आरंभ होकर 11 मई को सुबह 02 बजकर 50 मिनट तक रहेगी।
- उदया तिथि के कारण अक्षय तृतीया 10 मई को मनाई जा रही है।
अक्षय तृतीया की मान्यता

- मान्यता यह भी है कि सतयुग और त्रेतायुग की शुरुआत अक्षय तृतीया से ही हुई थी।
- भगवान विष्णु ने परशुराम के रूप में अवतार इसी दिन लिया था।
- इस शुभ तिथि से ही भगवान गणेश ने महाभारत काव्य लिखना शुरू किया था।
- अक्षय तृतीया पर ही बद्रीनाथ के कपाट खुलते हैं।
- इसी दिन वृन्दावन में भगवान बांके-बिहारी जी के चरणों के दर्शन होते हैं।
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आखातीज
- वैशाख शुक्ल तृतीया तिथि को आखा तीज के रूप में भी मनाया जाता है।
- इसी कारण कुछ लोग इसे अक्षय तीज भी कहते हैं।
- रवि योग के साथ-साध धन योग, गजकेसरी योग, शुक्रादित्य योग , मालव्य योग के साथ शश राजयोग इस दिन बन रहा है।
- ऐसे में इस शुभ योगों में मां लक्ष्मी और भगवान कुबेर की पूजा करने से कई गुना अधिक फलों की प्राप्ति होती है।
- इसके साथ ही सुख-समृद्धि का आशीर्वाद प्राप्त होता है।
पौराणिक मान्यता

- यह तिथि श्री कृष्ण और सुदामा से संबंधित मानी जाती है।
- अक्षय तृतीया के दिन श्री कृष्ण अपने मित्र सुदामा से काफी समय के बाद मिले थे।
- सुदामा बहुत गरीब थे इसलिए अपने परम मित्र से सहायता मांगने के लिए आए थे।
- जब श्री कृष्ण को सुदामा के बारे में पता चला, तो वह खुद दौड़कर नंगे पैर अपने महल के द्वार पर उन्हें लेने गए थे।
- सुदामा अपने मित्र द्वारा भव्य स्वागत देखकर दंग रह गए थे।
- ऐसे में श्री कृष्ण ने सुदामा से पूछा कि आखिर भाभी ने मेरे लिए क्या भेजा हैं?
- लेकिन केवल कच्चे चावल लाने के कारण सुदामा शर्मिंदा हो गए और वह अपने मित्र को न दे सके।
- श्री कृष्ण के जिद करने पर सुदामा ने वह चावल की पोटली उनके तरफ बढ़ा दी।
- बिना संकोच किए श्री कृष्ण ने उन चावलों को खा लिया।
- इसके साथ ही सुदामा से इतने साल बाद आने का कारण पूछा। तो उन्होंने संकोच में अपने मित्र को कुछ नहीं बताया।
- फिर वह अपने मित्र श्री कृष्ण के पास कुछ दिन रहकर बिना कुछ मांगे अपने घर की ओर निकल गए।
- लेकिन जैसे ही वह अपने घर के पास पहुंचे, तो वह अचंभित हो गए।
- उनकी झोपड़ी की जगह इतना भव्य महल बना हुआ है, जिससे उन्हें लगा कि वह रास्ता भटक गए है।
- जैसे ही सुदामा की पत्नी को पता चला कि उनके पति आए हैं, तो वह खुद द्वार में उनके आदर के लिए पहुंची।
- गहनों से लदी अपनी पत्नी को देख वह कहने लगे कि देवी शायद में गलत जगह आ गया हूं। तब पत्नी ने पूरी घटना बताई।
- जब सुदामा को इस बात का अहसास हुआ कि यह उन्हीं का महल है, तो वह भाव विभोर हो गए।
- अपने परम मित्र से बिना कुछ कहे उन्होंने सबकुछ पा लिया।
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सिद्धि योग, रोहिणी नक्षत्र
- अक्षय तृतीया के दिन सिद्धि योग और रोहिणी नक्षत्र होने के साथ ही मध्याह्न काल में चंद्रमा वृषभ राशि में रहेंगे।
- इस अवसर पर एक आसान उपाय कर सकते है, जिससे पूरे साल घर में अन्न की कमी नहीं रहेगी।
- अक्षय तृतीया के दिन पीतल के एक बर्तन में गाय का दूध रख लें और उसमें चावल, शक्कर डालकर खीर बना लें।
- उसके बाद मां अन्नपूर्णा को उस खीर का भोग लगाएं।
- फिर घर के लोगों को खीर का प्रसाद दें।
- बाद में उस बर्तन में गेहूं या चावल भरकर रख दें व उसे खाली न करें।
- इस उपाय से घर में पूरे साल अन्न की कमी नहीं होगी,साथ ही परिवार में सुख और शांति होगी।
आदिशक्ति को मिला अक्षय पात्र
- अक्षय तृतीया के दिन मां आदिशक्ति को बाल्यकाल में कुछ ऋषियों से अक्षय पात्र प्राप्त हुआ था।
- उन्होंने देवी को आशीर्वाद दिया था कि अक्षय पात्र में जो भी अन्न रखा जाएगा, वह कभी खत्म नहीं होगा।
- भगवान शिव ने धरती पर जीवों के पोषण के लिए मां अन्नपूर्णा से भिक्षा मांगी थी।
- तब उन्होंने उनको अन्न दान किया था, जिससे उनके भी प्राण बचे।
- मां अन्नपूर्णा को देवी पार्वती का स्वरूप माना जाता है।
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