Sunday, September 14, 2025
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स्वतंत्र भारत की पहली सुबह/first dawn of independent india

 

स्वतंत्र भारत की सुबह/dawn of independent india
स्वतंत्र भारत की सुबह/dawn of independent india

15 अगस्त 1947 का दिन भारत के इतिहास में स्वर्णाक्षरों से लिखा गया है। लगभग 200 वर्षों की अंग्रेजी हुकूमत के बाद पूरा देश, स्वतंत्रता के इस शुभ क्षण का साक्षी बना। आइए जानते हैं कि उस ऐतिहासिक दिवस का वास्तविक वातावरण, घटनाएं और उनसे जुड़ी कुछ खास बातें क्या थीं।

इतिहास की पृष्ठभूमि / (Background of Indian Independence)

1857 की क्रांति से लेकर 1947 तक भारतवासियों ने आज़ादी के लिए कठोर संघर्ष किया। इस लम्बे संघर्ष के परिणामस्वरूप भारत को 15 अगस्त 1947 को अंग्रेजों से आज़ादी मिली। लेकिन यह आज़ादी खुशियों के बीच-साथ विभाजन, दंगे और इंसानी दर्द भी लेकर आई।

स्वतंत्रता, विभाजन और उसके दर्द / (Partition of India and Its Sorrow)

आजादी के समय देश सांप्रदायिक दंगों की चपेट में था। लाखों लोग पाकिस्तान और भारत के नए सीमा क्षेत्रों में जा रहे थे। महात्मा गांधी (राष्ट्रपिता), जो आजादी के संघर्ष में अगुवा थे, वे पहले स्वतंत्रता दिवस के दिन दिल्ली में नहीं थे। वे पश्चिम बंगाल के नोआखली में शांति बहाली के लिए मौजूद थे। 15 अगस्त 1947 को गांधी जी ने पूरे 24 घंटे का उपवास रखा और जनता से अहिंसा और शांति बनाए रखने की अपील की।

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दिल्ली: जश्न और ऐतिहासिक आयोजन/(Delhi: Celebration and Historic Events)

स्वतंत्र भारत की सुबह/dawn of independent india

पंडित नेहरू का भाषण 

14 अगस्त की मध्यरात्रि को दिल्ली के काउंसिल हाउस (वर्तमान संसद भवन) में पंडित जवाहरलाल नेहरू ने अपना ऐतिहासिक भाषण “ट्रिस्ट विद डेस्टिनी (Tryst with Destiny)” दिया। इस भाषण में उन्होंने भारत की आज़ादी, भविष्य और जिम्मेदारी का उल्लेख किया।

तिरंगा फहराने की रस्म

15 अगस्त 1947 को पहली बार राष्ट्रपति भवन के सेंट्रल डोम पर प्रातः 10:30 बजे स्वतंत्र भारत का तिरंगा झंडा लहराया गया। संसद भवन पर भी तिरंगा फहराया गया। इसे देखने के लिए हजारों लोग बारिश के बावजूद इंडिया गेट और संसद भवन के सामने एकत्र हुए थे।

अनोखी बातें और ऐतिहासिक तथ्य/ (Unique Facts & Historical Details)

प्रधानमंत्री का झंडा फहराना

आम धारणा के विपरीत, प्रधानमंत्री नेहरू ने 15 अगस्त को लाल किले पर झंडा नहीं फहराया था। उन्होंने 16 अगस्त 1947 को पहली बार स्वतंत्र भारत का राष्ट्रीय ध्वज लाल किला पर फहराया। क्योंकि 15 अगस्त को ही ब्रितानी यूनियन जैक को हटाया गया था और लार्ड माउंटबेटन के दुख को देखते हुए कार्यक्रम अगले दिन के लिए टाल दिया गया।

कोई राष्ट्रगान नहीं था

इस ऐतिहासिक दिन हमारे पास कोई आधिकारिक राष्ट्रगान नहीं था। रवीन्द्रनाथ टैगोर द्वारा लिखित ‘जन गण मन’ 1911 में लिखा गया था, पर 1950 में जाकर राष्ट्रगान बना।

सीमा रेखा का निर्धारण

15 अगस्त तक भारत और पाकिस्तान की सीमाएं स्पष्ट नहीं थीं। रेडक्लिफ कमीशन द्वारा 17 अगस्त 1947 को दोनों देशों की सीमाएं निर्धारित की गईं।

ये तिथि क्यों चुनी गई?/(Why 15 August Chosen?)

यह तिथि इंग्लैंड के तत्कालीन वायसराय लार्ड माउंटबेटन के सुझाव पर चुनी गई थी। इसके पीछे कारण बताया जाता है कि 15 अगस्त 1945 को जापान ने मित्र राष्ट्रों के सामने आत्मसमर्पण किया था और लार्ड माउंटबेटन इसे शुभ दिन मानते थे।

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पहले स्वतंत्रता दिवस का सजीव चित्रण** (Real Scenes from First Independence Day)

– लगातार रिमझिम बारिश के बीच हजारों लोग इंडिया गेट और संसद भवन के सामने एकत्रित हुए।

– लोगों की आंखों में मिला-जुला भाव था—नई उमंग, आजादी की खुशी, और विभाजन का दर्द।

– बच्चों से बुजुर्ग तक, हर कोई इस ऐतिहासिक बदलाव का साक्षी बना।

– विभिन्न नगरों, गांवों में स्वयंसेवी संस्थाओं द्वारा सभाएं की गईं, देशभक्ति गीत गाए गए।

– सरकारी भवनों, विश्वविद्यालयों और स्कूलों पर तिरंगा लहराया गया, मिठाईयां बांटी गईं।

26 जनवरी का इतिहास/ (History of 26 January)

स्वतंत्रता के पहले 26 जनवरी को ‘पूर्ण स्वराज दिवस’ के रूप में मनाया जाता था। 1930 में कांग्रेस द्वारा पूर्ण स्वराज की घोषणा के बाद 26 जनवरी को हर साल स्वतंत्रता दिवस के रूप में मानते थे। स्वतंत्रता के बाद 26 जनवरी को गणतंत्र दिवस घोषित किया गया।

आज की पीढ़ी के लिए संदेश/(Message for Today’s Generation)

पहले स्वतंत्रता दिवस की कहानी हमें न सिर्फ आज़ादी के लिए किए गए संघर्ष, बल्कि आपसी सौहार्द और बलिदान का भी एहसास कराती है। आइए, हम सब मिलकर अपने देश की अखंडता, एकता और सांस्कृतिक विरासत को सुरक्षित रखने का संकल्प लें।

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निष्कर्ष | Conclusion

भारत का पहला स्वतंत्रता दिवस सिर्फ जश्न का दिन नहीं था, बल्कि एक नये युग के अवतरण का दिन था। इसमें जहां आजादी की खुशी थी, वहीं विभाजन की वेदना और जिम्मेदारियों का नया पहर भी था। यह दिन हर वर्ष हमें हमारी आजादी की कीमत, बलिदानों की कहानी और देशभक्ति के रंग से जोड़ता है।

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