Sunday, December 7, 2025
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संस्कृत का महत्व/importance of sanskrit

 

संस्कृत का महत्व/importance of sanskrit
संस्कृत का महत्व/importance of sanskrit
  • पहलाविश्व संस्कृत दिवस वर्ष 1969 में मनाया गया था।
  • विश्व संस्कृत दिवस प्रत्येक वर्षश्रावण मास की पूर्णिमा तिथि (Full Moon) को मनाया जाता है।
  • यह एक प्रतिष्ठित संस्कृत विद्वान और व्याकरणविद्पाणिनि की जयंती पर श्रद्धांजलि के रूप में मनाया जाता है।
  • यह दिनसंस्कृत भाषा के प्रति कृतज्ञता और सम्मान प्रकट करने के लिये मनाया जाता है।

संस्कृत भाषा के बारे में कुछ महत्त्वपूर्ण तथ्य:

  • यह एकइंडो-आर्यन भाषा है और इसे सबसे पुरानी भाषाओं में से एक माना जाता है तथा भारत की अधिकांश भाषाओं की जननी के रूप में भी जाना जाता है।
  • ऐसा माना जाता है कि इसकी उत्पत्तिलगभग 3500 वर्ष पहले भारत में हुई थी और इसे अक्सर देव वाणी (देवताओं की भाषा) के रूप में जाना जाता है।
  • इसेवैदिक और शास्त्रीय दो भागों में विभाजित किया गया है।
    • वैदिकसंस्कृत ऋग्वेद, उपनिषद और पुराण का एक हिस्सा है।
  • संस्कृतभारतीय संविधान की आठवीं अनुसूची में शामिल 22 आधिकारिक भाषाओं में से एक है।
  • यह तमिल, तेलुगू, कन्नड़, मलयालम और उड़िया के अलावा6 शास्त्रीय भाषाओं में भी शामिल है।
  • वर्ष 2010 में संस्कृत कोउत्तराखंड की दूसरी आधिकारिक भाषा के रूप में घोषित किया गया था।
  • कर्नाटक केमत्तूर गाँव में सभी लोग बोलचाल में संस्कृत भाषा का प्रयोग करते हैं।

विश्व संस्कृत दिवस का परिचय/Introduction to World Sanskrit Day:

भारत की ही नहीं, विश्व की सबसे प्राचीन भाषा संस्कृत के संरक्षण दिवस के रूप में हर साल श्रावण मास की पूर्णिमा पर संस्कृत दिवस मनाया जाता है। भारत सरकार ने इसे 1969 में मनाने की शुरुआत की, ताकि लोगों में हमारी प्राचीन, समृद्ध और सक्षम भाषा के प्रति संरक्षण का भाव जागे।

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सभी भारतीय भाषाओं की मूल है संस्कृत/Sanskrit is the origin of all Indian languages

इस अवसर पर बाल निकेतन संघ की सचिव डॉ. नीलिमा अदमणे ने कहा कि संस्कृत सभी भारतीय भाषाओं का मूल है, हमारी संस्कृति की जड़ें भी वहीं से निकलती हैं। संस्कृत सबसे बड़े शब्दकोश वाली भाषा है। हम गौरवान्वित महसूस करते हैं कि हम ऐसी माटी से आते हैं जहां से यह देवभाषा निकली।

संस्कृत एक ऐसी भाषा है जिसमें मनुष्य का स्वाभाव एवं विचार अपने आप ही उसके वचनों से व्यतीत हो जाता है और उसका व्यक्तित्व समझ आ जाता है। उदाहरण के तौर पर रामायण का एक प्रसंग है, जहा युद्ध के पहले भगवान राम और रावण दोनों ने ही भगवान शिव की आराधना और भक्ति में एक एक श्लोक गाया।

अपने स्वाभाव अनुसार रावण ने शिवताण्डवस्तोत्रम् गाया तथा भगवान राम ने रुद्राष्टकम् रचा। रावण के श्लोक में उसका घमंड एवं अहंकार दिखाई देता है वही दूसरी ओर भगवान राम के श्लोक में उनकी विनम्रता और सौम्यता झलक की दिखाई देती है।

धरोहर के रूप में मिली संस्कृत/Sanskrit found as heritage

इस अवसर पर संस्कृत का महत्त्व समझाते हुए लेखक एवं म.प्र. हिंदी साहित्य समिति इंदौर के उपसभापति, सूर्यकांत नागर ने कहा कि संस्कृत सीखे बिना हम अपने उस साहित्य को नहीं जान सकते, जो ऋषि मुनि और तपस्वी धरोहर के रूप में छोड़ गए हैं। इस भाषा को बोलने, सीखने से उच्चारण शुद्ध और प्रभावी होता है।

हमें अपनी भाषा और अपनी संस्कृति पर अधिक जोर देना चाहिए और बच्चों को बचपन से ही संस्कृत का अध्ययन शुरू करना चाहिए। भाषा के प्रति हमें बच्चों में लगन जगाना जरूरी है और आने वाले समय में संस्कृत को भी हिंदी जैसे ही शिक्षा में उचित स्थान प्राप्त होना चाहिए।

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दूसरी भाषाओं की जननी है संस्कृत/Sanskrit is the mother of other languages

कर्मचारी राज्य बीमा निगम से सेवानिवृत एवं लेखक अरविंद रामचंद्र जवलेकर ने अपने उद्बोधन में कहा कि मैं बाल निकेतन संघ को बहुत बधाई देना चाहता हूं की उन्होंने संस्कृत को बढ़ावा देने के लिए इस प्रकार का आयोजन किया। आज कल संस्कृत भाषा को एक वैकल्पिक भाषा का दर्जा दे दिया गया है जबकि संस्कृत दूसरी भाषाओं की जननी मानी जाती है। इसकी जगह दूसरी क्षेत्रीय भाषाओं ने ले ली है।

भारत की शिक्षा प्रणाली अंग्रेजो के आने से पहले बहुत मजबूत थी और संस्कृत भाषा में कई ग्रंथो को लिखा गया और हमारी उस समय आर्थिक स्थति भी बहुत मजबूत थी किन्तु अंग्रेजो ने देश को कमजोर करने के लिए यहां की शिक्षा प्रणाली को बदला। आज सरकार भी कोशिश कर रही है की बच्चों को भारत की पुरानी संस्कृति से जोड़ा जाए और जिसके लिए संस्कृत भाषा का ज्ञान बहुत जरूरी है।

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– सारिका असाटी
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