Thursday, September 19, 2024
Google search engine

संत गुरु माँ

अवतरण दिवस पर विशेष

संत गुरु माँ
संत गुरु माँ

संत गुरु माँ लगभग पिछले दो दशकों से सग्दुरु रमेश और उनकी जीवन संगिनी गुरु माँ अपने व्यावहारिक और आध्यात्मिक प्रवचनों, सत्संगों तथा सान्निध्य के माध्यम से जगत के कल्याण में रत हैं। 26 मई को गुरु माँ का जन्म चेन्नई में हुआ। माता-पिता ने इनका नाम कुसुम रख। विवाह के बाद हैदराबाद आकर इसे ही अपनी धर्म और कर्म-स्थली मान लिया। एक सामान्य महिला से आत्मज्ञानी गुरु माँ के सफ़र का आधार उनका समर्पण भाव है। सदैव अपने पति के कार्य में सहर्ष सहयोग दिया। व्यवसाय के सिलसिले की विदेश यात्रा हो या श्रीशैलम निवासी पूर्णानंद स्वामी के आश्रम में बारंबार उनका सान्निध्य और दर्शन पाने की आध्यात्मिक यात्रा, हर प्रकार की यात्रा, कार्य, विचार, इच्छा, भावना में गुरु माँ सग्दुरु रमेश की शत्ति बनकर उनके साथ चलीं।

Read this also – परम आनंद का अनुभव/Param anand ka Anubhav
अपने गुरु स्वामी पर दोनों का पूर्ण विश्वास था, इसीलिए संत गुरु माँ अपने और अपने परिवार के भविष्य के बारे में निाश्चत तथा निर्भय रहे। सांसारिक जीवन के चरमोत्कर्ष पर जाकर गुरुजी ने आध्यात्मिकता में कदम रखा तब गुरु माँ ने परिवार व बच्चों की चिंता न करते हुए, गुरुजी के कदम से कदम मिलाया। जीवन में हमेशा गुरु सेवा और गुरु ज्ञान को परथमिकता दी। उन्होंने न केवल भौतिक रूप से गुरु सेवा की बल्कि मन, वचन और कर्म से सद् व्यवहार, पारिवारिक सद्भावना और गुरु ज्ञान को श्रद्धा से जीवन में अपनाया। इस तरह गुरु सान्निध्य से शुद्ध आत्मिक ज्ञान उनके भीतर सहज रूप से ही उतरता चला गया। गुरु कृपा से दोनों एकसाथ एक ही दिन आत्मज्ञान में स्थित हो गए। यह एक अत्यंत दुर्लभ घटना और महायोग है।

Read this also – सबकी भली करेंगे राम/Ram will do good to everyone
गुरु पर पूर्ण श्रद्धा और दृढ़-विश्वास से ही शिष्य के भीतर गुरु कृपा से पूर्ण समर्पण की घटना घटती है। समर्पण से ही दिव्यानंद की अनुभूति होती है। अलौकिक ज्ञान भीतर से प्रकट होता है। लगभग चौबीस वर्षों से पूर्णानंद स्वामी सशरीर न होते हुए भी सूक्ष्म रूप में अपने शिष्यों सग्दुरु रमेश और संत गुरु माँ के माध्यम से जगत का उद्धार कर रहे हैं यानी ये दोनों न केवल सत् शिष्य रहे, बल्कि सग्दुरु के रूप में निरंतर सत्संग, प्रवचन, शंक, समाधान , काउंस्लिंग के द्वारा जिज्ञासुओं को पूर्णानंद की दिव्य अनुभूति करा रहे हैं।
पूर्ण समर्पण और शत-प्रतिशत सद् व्यवहार से कुसुम रूपी सामान्य महिला लगभग पिछले ढ़ाई दशकों से संत रूपी गुरु संत गुरु माँ के रूप में अलौकिक दर्शन और ज्ञान बरसा रही हैं। आज भी वे एक आदर्श पुत्री, बहन, बहू, पत्नी, नंद, भाभी, माँ, दादी, नानी और समस्त सांसारिक रिश्तों के साथ-साथ लोक-कल्याणकारी संत की भूमिका भी खुशी-खुशी निभा रही हैं। ऐसे दिव्य जीवंत संतों के कल्याणकारी दर्शन व ज्ञान का हमें अवश्य लाभ उठाना चाहिए।

RELATED ARTICLES

LEAVE A REPLY

Please enter your comment!
Please enter your name here

- Advertisment -
Google search engine

Most Popular

Recent Comments