Saturday, December 6, 2025
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श्रीराम ने दिया जयंत को दंड

जयंत ने खोई एक आँख

हारकर वह भगवान् श्री रामचन्द्र और माता जानकी की शरण में गया। उनके चरण छूकर क्षमा माँगी। भगवान् राम ने कहा, “तुम्हें प्राणदण्ड दिया जाना था।अब तुम्हारे प्राण बच जायेंगे; परन्तु तुम्हें अपनी एक आँख से हाथ धोना पड़ेगा।”

प्रभु श्रीराम, सीताजी और लक्ष्मणजी उन दिनों चित्रकूट पर निवास कर रहे थे।

एक दिन की बात है, किसी कौए की बाधा के कारण सीताजी के चरण से खून बहने लगा।

सीताजी दर्द से कराह उठीं।

उनकी आँखों में आँसू छलछला आये।

रामचन्द्रजी ने ध्यान लगाकर देखा।

यह कौआ मामूली कौआ नहीं था, वरन् देवराज इन्द्र का लाड़ला बेटा जयन्त था।

उसके मन में आया था कि राम की सामर्थ्य का जायजा लिया जाये।

जयन्त की मूर्खता पर भगवान् मन ही मन हँसे और एक सींक को धनुष पर चढ़ाकर छोड़ दिया।

बस वह सींक यमदूत की तरह जयन्त के पीछे पड़ गयी।

आगे-आगे जयन्त, पीछे-पीछे आग की तरह जलती हुई वह सींक।

उसकी हालत क्रोधी ऋषि दुर्वासा की-सी हो गयी थी।

जैसे आगे-आगे महर्षि दुर्वासा भाग रहे थे और पीछे-पीछे भगवान् का सुदर्शन चक्र उनको खदेड़ रहा था।

ठीक उसी तरह वह मामूली-सी सींक जयन्त का पीछा कर रही थी।

भगवान् राम के धनुष से छूटने के बाद अब वह मामूली सींक नहीं रह गयी थी।

जयन्त भागकर अपने पिता देवराज इन्द्र के पास गया।

देवराज इन्द्र ने टका-सा जवाब दे दिया-

“राम के अपराधी को शरण नहीं दे सकता।”

वह भागकर माता शची की शरण गया।

माता ने भी उल्टा जवाब दे दिया- “माता सीता का अपराध कर आये हो और उम्मीद करते हो कि मैं तुम्हें शरण दूंगी, यह सम्भव नहीं है।”

जयन्त भागता हुआ ब्रह्माजी की शरण गया।

ब्रह्माजी ने कहा, “मूर्ख, राम के विरुद्ध मैं तुम्हें शरण दूँगा!”

वह फिर भागा-भागा शंकरजी की शरण गया।

शंकरजी ने कहा- “बेटे जयन्त, भगवान् राम के विरुद्ध मैं तुम्हारी कोई सहायता नहीं कर सकता।

हाँ, नेक सलाह दे सकता हूँ कि तुम उन्हीं भगवान् श्रीराम एवं माता जानकी शरण जाओ, वे ही तुम्हारी रक्षा कर सकते हैं। ”

जयन्त एक-एक देवी-देवता, गन्धर्व, यक्ष की शरण गया।

अपनी दुख-गाथा सुनायी।

किसी ने शरण नहीं दी और हर किसी ने उसे सलाह दी कि उसे भगवान् राम एवं माता जानकी की ही शरण में जाना चाहिए।

हारकर वह भगवान् श्री रामचन्द्र और माता जानकी की शरण में गया।

उनके चरण छूकर क्षमा माँगी।

भगवान् राम ने कहा- “तुम्हें तो प्राणदण्ड दिया जाना था।

अब तुम्हारे प्राण बच जायेंगे; परन्तु तुम्हें अपनी एक आँख से हाथ धोना पड़ेगा।”

वह सींक जयन्त की एक आँख फोड़कर आकाश में विलीन हो गयी।

कहा जाता है, उस दिन से आज तक कौआ काना है।

वह एक समय में एक ही आँख से देख पाता है।

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